Airavatesvara Temple: चमत्कारिक है भगवान शिव का 800 साल पुराना मंदिर, सीढ़ियों से गूंजते हैं संगीत के सुर
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Airavatesvara Temple: चमत्कारिक है भगवान शिव का 800 साल पुराना मंदिर, सीढ़ियों से गूंजते हैं संगीत के सुर

God Shiva Airavatesvara Temple: सावन का महीना चल रहा है. इस महीने भगवान शिव की अराधना करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. आज आपको भगवान शिव के करीब 800 साल पुराने मंदिर से रूबरू कराने जा रहे हैं. इस मंदिर का अपना धार्मिक महत्व है.

 

Airavatesvara Temple: चमत्कारिक है भगवान शिव का 800 साल पुराना मंदिर, सीढ़ियों से गूंजते हैं संगीत के सुर

Tamil Nadu Airavatesvara Temple: तमिलनाडु में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है 'एरावतेश्वर मंदिर'. यह मंदिर यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर घोषित है. यह हिंदू मंदिर है, जिसे दक्षिणी भारत में 12वीं सदी में बनाया गया था. ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. भगवान शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी.

  1. दक्षिण भारत के इस शिव मंदिर की है धार्मिक मान्यता
  2.  800 साल पुराना है यह एरावतेश्वर मंदिर
  3. मंदिर की सीढ़ियों से निकलता है संगीत 

मंदिर की वास्तुकला

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां की सीढ़ियों से संगीत की धुन निकलती है, जिस वजह से ये मंदिर काफी अलग है. मंदिर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि ये प्राचीन वास्तुक्ला के लिए भी प्रसिद्ध है. मंदिर की आकृति और दीवारों पर उकरे गए चित्र लोगों को काफी आकर्षित करते हैं.

द्रविड़ शैली में मंदिर

इस मंदिर को द्रविड़ शैली में भी बनाया गया था. प्राचीन मंदिर में आपको रथ की संरचना भी दिख जाएगी और वैदिक और पौराणिक देवता इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, विष्णु, सप्तमत्रिक, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, गंगा, यमुना के चित्र यहां मौजूद हैं.

सीढ़ियों से निकलता है संगीत

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यहां की सीढ़ियां हैं. मंदिर के एंट्री वाले द्वार पर एक पत्थर की सीढ़ी बनी हुई है, जिसके हर कदम पर अलग-अलग ध्वनि निकलती है. इन सीढ़ियों के माध्यम से आप आप संगीत के सातों सुर सुन सकते है. आप सीढ़ियों पर चलेंगे तब भी आपको धुन सुनने को मिल जाएंगे.

मंदिर को लेकर यह कथा है फेमस

मान्यता है कि ऐरावत हाथी सफेद था, लेकिन ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण हाथी का रंग बदल गया. इससे वह काफी दुखी था. उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके सफेद रंग दोबारा प्राप्त किया. मंदिर में कई शिलालेख हैं. गोपुरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लाई गई, जिसे बाद में राजाधिराज चोल प्रथम द्वारा कल्याणपुरा नाम दिया गया. 
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