Tulsi Ramayan: कुछ ऐसा था भगवान राम से शिव का प्रेम, जो माता सती तक न पाईं जान
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Tulsi Ramayan: कुछ ऐसा था भगवान राम से शिव का प्रेम, जो माता सती तक न पाईं जान

Tulsi Ramayan In Hindi: गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस हिंदी भाषा की विलक्षण रचना है. रामचरितमानस के अध्ययन और पाठ से लोगों को आध्यात्मिक लाभ मिलता है. मानस की हर पंक्ति मंत्र है, यदि इसको समझकर अपने जीवन में उतार लेते हैं तो ईश्वर की कृपा बरसती है. आज हम तुलसीदास के भावों को समझते हुए भगवान राम और शिवजी के अगाध प्रेम के बारे में जानेंगे.

 

तुलसी रामायण

Tulsi Ramayan Story: राम दर्शन के लिए शिवजी के मन में कितनी तड़प थी, इसका अंदाजा तो माता सती को भी नहीं था, फिर भला कोई और राम और शिव के अगाध प्रेम के बारे में कैसे जान सकता है. दर्शन न हो पाने से भोले नाथ बड़े बेचैन थे, पर दंडक वन में विचर रहे रघुनाथ जी तो कुछ अलग ही लीला रचा रहे थे. उनके प्रभाव से राक्षसराज रावण भी बिल्कुल अनजान था. चलें देखें भगवान की लीला किस ओर जा रही है. 

संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोई।

तुलसी दरसन लोभु मन डरु लोचन लालची।।

प्रभु के दर्शन न हो पाने से शिवजी के मन में बड़ा छोभ है. तुलसीदास जी कहते हैं कि एक तरफ शिवजी के मन में डर है प्रभु के पास गया तो उनका भेद खुल जाएगा. दूसरी ओर नेत्र हैं कि दर्शन का लालच छोड़ ही नहीं पा रहे हैं. भोलेनाथ की इस मनोदशा से माता सती बिल्कुल बेखबर हैं. 

रावन मरन मनुज कर जाचा।

प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा।।

जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा।

करत बिचारु न बनत बनावा।।

रावण ने विधाता ब्रह्मा जी से वरदान मांग रखा है कि उसकी मृत्यु मनुष्य के ही हाथों हो. रघुराई ब्रह्मा जी के वचन को सत्य करना चाहते हैं. अगर इस समय मैं उनके दर्शन को नहीं गया तो बाद में बड़ा पछतावा होगा. भोलेनाथ विचारों की इसी उधेड़बुन में फंसे हैं, पर कहीं से कोई बात बनती नहीं दिख रही है. 

एहि बिधि भए सोचबस ईसा। 

तेही समय जाइ दससीसा।।

लीन्ह नीच मारीचहि संगा।

भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा।।

इस प्रकार ईश्वर महेश्वर सोच के वश में हो गए. उसी समय नीच रावण ने मारीच को संग लिया जो तुरंत कपट मृग बन गया. 

करि छलु मूढ़ हरी बैदेही।

प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।।

मृग बधि बंधु सहित हरि आए।

आश्रमु देखि नयन जल छाए।।

मूर्ख रावण ने छल करके वैदेही माता सीता का हरण कर लिया. उसे प्रभु राम की वास्तविकता के बारे में कुछ भी पता नहीं था. कपट मृग का वध करके, जब भाई लक्ष्मण सहित प्रभु राम लौटे तो आश्रम को जानकी से रहित देख उनकी आंखों में जल भर आया. 

बिरह बिकल नर इव रघुराई। 

खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई।।

कबहूँ जोग बियोग न जाकें। 

देखा प्रगट बिरह दुखु ताकें।।

प्रभु राम किसी मनुष्य की भांति विरह में व्याकुल होकर भाई लक्ष्मण के साथ जानकी जी को खोजते हुए वन में इधर-उधर भटकने लगे. जिनमें न कभी कोई संयोग है, न वियोग उन प्रभु राम में विरह का दुख प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है.

अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।

जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन।।

रघुनाथ जी का चरित्र बहुत विचित्र है. इसे परम भक्त ही जान सकते हैं. जो मंद बुद्धि हैं और विशेष रूप से मोह के वश में हैं वे भगवान की यह लीला देखकर हृदय में कुछ और ही समझ बैठते हैं.
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