3.2 अरब साल पहले धरती पर गिरा था एवरेस्ट से चार गुना बड़ा उल्कापिंड, महासागर तक उबलने लगे; पनपा जीवन का बीज
Science News: वैज्ञानिकों के अनुसार, एक विशाल उल्कापिंड 3.2 अरब साल पहले पृथ्वी पर गिरा था. आकार में माउंट एवरेस्ट से चार गुना बड़े उस उल्कापिंड की टक्कर से महासागर उबलने लगे थे लेकिन शायद जीवन को भी खाद-पानी मिला हो.
Science News in Hindi: वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से टकराने वाले सबसे बड़े उल्कापिंड S2 का पता लगाया है. यह उल्कापिंड डायनासोरों का खात्मा करने वाले उल्कापिंड से लगभग 200 गुना बड़ा था. नई रिसर्च के मुताबिक, यह करीब 3.2 अरब साल पहले धरती पर गिरा था. 2014 में पहली बार खोजे गए इस विशाल उल्कापिंड ने मानव इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी सुनामी पैदा की थी. टक्कर इतनी भयावह थी कि धरती के महासागर उबलने लगे थे.
जीवन को फलने-फूलने में की मदद
S2 नामक यह उल्कापिंड साउथ अफ्रीका में गिरा था. वैज्ञानिक ने चट्टान के टुकड़ों से उस टक्कर के बारे में और जानकारी हासिल करने की कोशिश की. उन्हें पता चला कि इन भयावह घटनाओं ने पृथ्वी पर सिर्फ तबाही ही नहीं मचाई, बल्कि जीवन को पनपने में भी मदद की. नई रिसर्च की मुख्य लेखिका और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नादजा ड्रेबन ने कहा, 'हम जानते हैं कि पृथ्वी के बनने के बाद भी अंतरिक्ष में बहुत सारा मलबा उड़ रहा था जो पृथ्वी से टकरा सकता था. लेकिन अब हमने पाया है कि इन विशाल टकरावों के बाद भी जीवन वास्तव में लचीला था, और यह वास्तव में पनपा और फला-फूला.'
अंतरिक्ष से आई सबसे बड़ी चट्टान
66 मिलियन साल पहले जिस चट्टान के कारण डायनासोर विलुप्त हो गए थे, वह लगभग 10 किलोमीटर चौड़ी थी. या यूं कहें कि लगभग माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई जितनी थी. S2 उल्कापिंड उससे कहीं ज्यादा बड़ा था. वैज्ञानिकों के अनुसार, S2 40-60 किलोमीटर चौड़ा था और इसका द्रव्यमान 50-200 गुना ज़्यादा था. यह जब गिरा तब पृथ्वी अपने शुरुआती दौर में थी और आज से बहुत अलग दिखती थी. यह एक जलीय दुनिया थी जिसमें समुद्र से सिर्फ कुछ महाद्वीप बाहर निकले हुए थे. उस समय जीवन बहुत सरल था - एकल कोशिकाओं से बने सूक्ष्मजीव - पाए जाते थे.
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प्रोफेसर ड्रेबन और उनके तीन साथियों ने पूर्वी बार्बरटन ग्रीनबेल्ट में मौजूद इम्पैक्ट साइट का दौरा किया. यहां पृथ्वी पर सबसे पुराने जगहों में से एक है, जहां उल्कापिंड के गिरने के अवशेष मौजूद हैं. टीम ने अब यह पता लगा लिया है कि S2 उल्कापिंड ने धरती से टकराने के बाद क्या किया था. इसने 500 किलोमीटर का गड्ढा खोद दिया और चट्टानों को चूर-चूर कर दिया. इसने तेज गति से बाहर निकलकर एक बादल का रूप ले लिया, जिसने पूरी दुनिया का चक्कर लगाया.
धरती पर मच गई थी तबाही
प्रोफेसर ड्रेबन के मुताबिक, 'एक बादल की कल्पना करें, लेकिन पानी की बूंदों के बजाय, यह आकाश से पिघली हुई चट्टान की बूंदों की तरह बरस रहा है. एक विशाल सुनामी दुनिया भर में फैल गई होगी, समुद्र तल को चीर दिया होगा, और तटरेखाओं को जलमग्न कर दिया होगा. प्रोफेसर ड्रेबन के मुताबिक, 2004 की हिंद महासागर की सुनामी इसकी तुलना में बेहद फीकी साबित होती.
उस सारी ऊर्जा ने भारी मात्रा में गर्मी पैदा की होगी जिससे महासागर उबल गए होंगे और दसियों मीटर पानी वाष्पित हो गया होगा. इससे हवा का तापमान भी 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया होगा. आसमान काला हो गया होगा, धूल और कणों से भर गया होगा. अंधेरे में सूरज की रोशनी के बिना, जमीन पर या उथले पानी में सरल जीवन जो प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर था, मिट गया होगा.
लेकिन, प्रोफेसर ड्रेबन और उनकी टीम ने जो पाया, वह हैरान करने वाला था. सबूतों ने दिखाया कि इन हिंसक प्रभावों से फॉस्फोरस और आयर्न जैसे पोषक तत्व निकले जिन्हें सरल जीवन ने अपना आहार बनाया. प्रो. ड्रेबन ने कहा, 'जीवन न केवल लचीला था, बल्कि वास्तव में बहुत तेजी से उबर गया और फलने-फूलने लगा.'