स्टेन ली और कॉमिक्स की दुनिया: सुपर हीरो जिनसे पढ़ना सीखा...
जिन सुपरहीरो ने हमें उम्मीद दी, उन तमाम सुपर हीरो को बच्चों की दुनिया में लाने वाले स्टेन ली 12 नवंबर को दुनिया को अलविदा कह गए हैं.
सन नब्बे की बात है. सुबह के कोई 2 बज रहे होंगे. मैं अपनी पढ़ाई में लगा हुआ था. अगले दिन से पांचवी की परीक्षा शुरू होने वाली थी. पिताजी की रात में जगने की आदत थी, तो वो आदत हमारे अंदर भी आ गई. हमारे घर में परीक्षा के एक दिन पहले दस बजे सोने और फिर एक बजे उठकर रात भर पढ़ने का चलन था. चूंकि पांचवी बोर्ड था, इसलिए ये प्रक्रिया उसी साल से शुरू होती थी.
तो इस तरह से पढ़ने का ये मेरा पहला साल था. मैं पढ़ने में तल्लीन था. जागे हुए करीब एक घंटा बीत चुका था. पिताजी ने मुझे इस तरह से पढ़ता देख, सोचा मुझे चाय पिला दी जाए. अक्सर चाय, तंबाकू जैसी छोटी-छोटी बातों के लिए भी मम्मी को याद करने वाले मेरे पिताजी उठे और किचन में जाकर मेरे लिए चाय बनाई.
जब वो चाय का कप लेकर मेरे पास पहुंचे, तो मैं अपनी किताब में मुंह घुसाए पढ़ने में व्यस्त था. इतनी तल्लीनता से पढ़ता देख, शायद मेरे पिताजी की आंखो में आंसू भर आए होंगे. वैसे ऐसा होते मैंने देखा नहीं, क्योंकि मैं पढ़ाई कर रहा था. पिताजी ने जैसे ही चाय का कप मुझे थमाने के लिए आवाज लगाई, मैं हड़ब़डा गया.
हड़बड़ाहट में किताब मेरे हाथ से गिर गई और सामने फर्श पर मेरी पूरी 'पढ़ाई' बिखर गई. फर्श पर पड़ी हुई 'पढ़ाई' के साथ वो सच्चाई भी पड़ी हुई थी जो मैं अपनी किताब के पन्नों के बीच दबाए हुए था. वो सच्चाई थी कॉमिक्स.
अगले दिन परीक्षा हो और उस पर किताब में कॉमिक्स छिपाए पढ़ता देख किसी भी पालक का पारा घूम सकता था. मैंने अपने भविष्य को देख लिया था और मेरी हालत उस अपराधी की तरह थी जो न्यायाधीश के सामने ही अपराध करता पकड़ाया हो. मैं खुद को तैयार कर रहा था. लेकिन हुआ सोच के विपरीत. पिताजी ने कॉमिक्स उठाई और सिर्फ इतना कहा कि परीक्षा के खत्म होने तक तो इंतजार कर लो. फिर खुलकर पढ़ लेना.
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दरअसल पिताजी ने ही हमें सबसे पहले कॉमिक्स लाकर दी थी. उनका मानना था कि इससे हमारी पढ़ने की आदत बनेगी. वो काफी हद तक सही थे. मुझे बचपन से कॉमिक्स का जो चस्का लगा था तो एक वक्त ये हालत हो गई थी कि मैं कॉमिक्स बेचने वाले के यहां नई कॉमिक्स आने पर दुकान पर ही खड़े खड़े पूरी कॉमिक्स पढ़ लेता था. क्योंकि मुझे उसे सबसे पहले पढ़ना होता था. यहां तक कि हम गर्मियों की छुट्टियों में लाइब्रेरी तक चलाया करते थे. किराये पर कॉमिक्स देना और उससे जो पैसे आए उससे नई कॉमिक्स खरीदना. यही हमारा पूरी गर्मी भर काम रहता था.
हमारे घर में कॉमिक्स का अच्छा खासा कलेक्शन हो गया था. यहां तक कि पांचवी की गर्मियों की छुट्टियों में ही लाइब्रेरी की कमाई से भाइयों के साथ अकेले जाकर पहली फिल्म देखी थी. फिल्म थी अग्निपथ.
ये सब बातें इसलिए, क्योंकि जिन सुपर हीरो ने हमें उम्मीद दी है उन तमाम सुपर हीरो को बच्चों की दुनिया में लाने वाले स्टेन ली 12 नवंबर को दुनिया से अलविदा हो गए. जब मैंने कॉमिक्स पढ़ना शुरू किया, जब मैं स्पाइडरमैन, सुपरमैन जैसे किरदारों को पढ़कर अपने कंधे पर टॉवेल बांधकर दुनिया को बचाने की सोचा करता था. तब मुझे पता भी नहीं था कि इन किरदारों को रचने वाला भी कोई हो सकता है. मेरी दुनिया में तो ये सभी किरदार असली थे. यही नहीं जब इन किरदारों ने कार्टून की शक्ल में रविवार की सुबह 8 बजे दूरदर्शन के माध्यम से हमारी टीवी में आना शुरू किया तो मेरी रविवार की सुबह जल्दी होने लगी. पिताजी के कमरे में टीवी होने के कारण कितने समय तक मैं लगभग टीवी के अंदर मुंह घुसा कर सुबह स्पाइडरमैन देखा करता था.
बाद में सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, डोगा, फैंटम, कैप्टन अमेरिका की तर्ज पर इन्सपेक्टर मनोज, अंगारा, भोकाल जैसे कई सुपर हीरो जिंदगी में आए. इनको पढ़ने के दौरान कभी नहीं सोचा था कि इन्हें कोई रच भी सकता है.
बाद में परिपक्वता बढ़ती गई और दूसरी तरह की कई किताबों के साथ दिल जुड़ने लगा, लेकिन कॉमिक्स उस पहले प्यार की तरह है जो हमेशा दिल की गहराइयों में रहा. इतना वक्त बीत गया, लेकिन आज भी कहीं कोई कॉमिक्स मिलती है तो उसे पढ़े बगैर रहा नहीं जाता. यहां तक कि सुपर हीरो की फिल्में, कॉर्टून किरदार आज भी पहली पसंद में हैं.
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नई पीढ़ी जो मोबाइल में मुंह घुसाए हुए बढ़ रही है. शायद ये उस कॉमिक्स के प्यार को समझने में नाकाम रहे. उन्हें स्टेन ली अन्य रचनाकारों जैसे ही आम रचनाकार लग सकते हैं लेकिन जिन्होंने कॉमिक्स के साथ बचपन जिया है, वो जानते हैं कि स्टेन ली आखिर कौन थे.
स्टेन ली ने दरअसल समाज को वो दिया जो वो हमेशा से अंदर ही अंदर चाहता रहा है. सुपर हीरो.
स्टेन ली ने जो सुपर हीरो गढ़े उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वो हमारे अंदर उम्मीद जगाते थे. वो उस वक्त हमें जिंदा रहने का भरोसा देते हैं जब लगता है कि सबकुछ खत्म होने वाला है. इसके साथ साथ स्टेन ली के सुपर हीरोज काफी हद तक हम आम लोगों की तरह ही थे. वो हमारी तरह ही जीते हैं, उनमें हम लोगों की तरह ही जलन की भावना है, वो गलतियां करते, गलतियां सुधारते और असाधारण शक्तियों के बावजूद भी वो हम इंसानों की तरह ही हैं.
यूं कहें कि उनके सुपर हीरोज अक्सर इन्सान से ही सुपर हीरो बनते हैंॉ.यही नहीं उनकी असीमित शक्तियां की भी एक सीमा थीं. ये सुपहीरोज एक आम इंसान की तरह ही गुस्सा करते हैं, दुखी होते हैं और चिढ़ते भी हैं यही नहीं इनका बचपन भी है और इनका प्यार भी है और रिश्ते भी हैं. शायद यही वो वजह रही, जिन्होंने स्टेन ली के सुपर हीरोज को हम लोगों के साथ इस कदर जोड़ दिया.
ऐसे सुपर हीरोज जो किसी भी विपरीत परिस्थिति में घबराते नहीं हैं और जो लड़ना जानते हैं, उनको रचने वाले स्टेन ली खुद किस्मत को सबसे बड़ा सुपर हीरो मानते थे. उन्होंने बताया था, “जबभी उनका कोई प्रशंसक उनसे पूछता है कि सबसे बड़ी शक्ति क्या है? तो मैं हमेशा कहता हूं कि किस्मत सबसे बड़ी शक्ति है, क्योंकि यदि आपके पास अच्छी किस्मत है तो सबकुछ आपके हिसाब से होता है."
खैर भले ही स्टेन ली चले गए हों, लेकिन उनसे मुझे जो मिला वो पढ़ने की आदत मिली. और ये वो आदत है जो मेरी यादों में उन्हें हमेशा जिंदा रखेगी. अगर कॉमिक्स नहीं होती तो शायद मैं पढ़ने को लेकर इतना उत्सुक नहीं रहता. उन्होंने खुद भी एक बार रेडियो पर बताया था किवह पढ़ने को बहुत याद करते हैं.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)