नजरिया! मेरे लिए यह जिंदगी में सबसे बड़ा शब्‍द है. चीज़ों के प्रति हमारा नजरिया ही सब कुछ है. दूसरी और कोई चीज़ नहीं, जो इस शब्‍द से बड़ी है. हमारी योग्‍यता, निर्णय लेने की क्षमता, मुश्किलों में हमारा व्‍यवहार यह सब हमें एक हद तक आगे ले जाने की क्षमता रखते हैं. लेकिन हमारे कहीं पहुंचने, न पहुंचने में सबसे बड़ा अंतर अगर कुछ है तो वह केवल और केवल हमारे नजरिया का है.


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नजरिए से खूबसूरत दुनिया में कोई दूसरी चीज़ नहीं. यह बेमिसाल योग्‍यता है. जो बहुत हद तक नैसर्गिक होती है, अनजाने में बनी हुई. एक ही वातावरण में, एक जैसी दी गई स्थितियों में दो लोगों के व्‍यवहार में जो अंतर है, असल में वह कुछ और नहीं बस नजरिए का ही तो अंतर है. वैसे यह भी देखा गया है कि कुछ लोग आगे चलकर अपनी संगत, अनुभव के कारण नजरिए को बदलने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन इसे अपवाद के रूप में ही देखा जाना चाहिए.


डियर जिंदगी : समय मिले तो घर आना कभी…


इस बात को परखने का एक बड़ा सीधा, सामान्‍य नियम है. अपने मित्रों पर एक नजर डालिए. ऐसे मित्रों को जिन्‍हें आप कम से कम दस बरस से जानते हों. अब आप देखें कि जो मित्र उस समय जैसी बातें करते थे, असल में उसी रास्‍ते पर हैं या उससे कितने अलग हैं! ज्‍यादातर मौकों पर आप पाएंगे कि वह अपनी 'थॉट लाइन' के आसपास ही हैं. सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता से निर्मित होकर हम जैसा स्‍वभाव पाते हैं, हमारी 'थॉट लाइन' उसके आसपास ही बनती है.


हमारे दोस्‍तों में कुछ विश्‍वासी, अंधविश्‍वासी, सहज और कुछ हमेशा संशय में रहने वाले संदेही भी होते हैं. वह ऐसे क्‍यों हैं, इसके लिए यह समझना जरूरी है कि उनकी परवरिश कैसे माहौल में हुई, उसके बाद उन्होंने चीजों को स्‍वीकार करने में किस 'एप्रोच' का परिचय दिया.


डियर जिंदगी : किससे हार रहे हैं अरबपति 'मन'


आइए, नजरिए के सामान्‍य उदाहरण से मिलते हैं. शादी. भारतीय शादियां हमारे नजरिए का सबसे सरल उदाहरण हैं. यहां दहेज, लड़की के पिता को रिवाजों के नाम पर ऐसी चीज़ों के लिए विवश करना जो संभव नहीं, वहां युवा अक्‍सर मौन दिखते हैं. कई बार यह बात जीवन में भी इसी 'सम्‍मान' के नाम पर जारी रहती है.  


कभी नहीं देखा कि कोई युवा सामने आए, कहे कि यह नहीं होना चाहिए. हमारे आसपास 99 प्रतिशत मामलों में यही दिखा कि युवा चुप रहते हैं. वह कहते हैं कि वह बड़ों का सम्‍मान करते हैं. इसलिए चुप रहते हैं. यही वजह है कि, भारत में लड़कियों की सामाजिक स्थितियों में वैसा सुधार नहीं दिखता, जैसा दिखना चाहिए. शिक्षा और उच्‍च शिक्षा के बाद भी युवाओं के नजरिए में बड़ा बदलाव आना बाकी है.


डियर जिंदगी : तुम समझ रहे हो मेरी बात!


चलिए, दूसरों की बातें जाने दीजिए. हमारी अपनी जिंदगी में हमें जो भी हासिल हुआ है, ध्‍यान से देखिएगा तो मिलेगा कि केवल चीजों के प्रति आपके रुख यानी नजरिए से ही मिला है. बाकी चीज़ें जिन्‍हें आप मंजिलों का साथी बता रहे हैं, वह केवल सहायक हैं, असली नायक तो बस नजरिया है.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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