डियर जिंदगी में हम निरंतर आत्‍महत्‍या और तनाव पर संवाद कर रहे हैं. हमें देशभर से इस बारे में पाठकों की ओर से निरंतर संदेश मिल रहे हैं. इन संदेशों को अगर एक अध्‍ययन मान लिया जाए तो हमें यह मानना ही पड़ेगा कि हमारा समाज तनाव बर्दाश्‍त करने की क्षमता लगातार खोता जा रहा है. यह समय की कुछ उल्‍टी धारा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

तब जब हमारे पास एक समाज के रूप में संसाधन कहीं कम थे. सामाजिक विषमता अधिक थी. आर्थिक रूप से हम कहीं अधिक कमजोर थे, हमारा मनोबल अधिक था. हम मुश्किलों का सामना करने में एक अधिक सक्षम समाज थे. युवा हर दूसरी बात पर घबराते नहीं थे, उनको सहारा देने के लिए बुजुर्गों की एक सक्षम सलाहकार पीढ़ी थी. जो उनको हर हाल में हौसला बनाए रखने का साहस देती थी और उनके दिए साहस को समाज आदेश की तरह धैर्य से ग्रहण करता था. लेकिन बीते एक दशक में इस कहानी में कई मोड़ आ चुके हैं. एक समाज के रूप में हमारी पूरी ऊर्जा उपभोक्‍ता बनने में नष्‍ट हो गई है. हम संवाद, सलाह और सुलह के लिए काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि हर छोटी छोटी मुश्किल से हारने लगे हैं, घबराने लगे हैं.


समाज के रूप में हमारा तनाव प्रबंधन असफल हो गया है. हम एक-दूसरे को पर्याप्‍त सहारा और संबल देने में असफल होते जा रहे हैं.


हम ऐसे समय में प्रवेश कर गए हैं, जबकि फ्लैट के सामने खुल रहे दरवाजे तक पर पड़ोसी के लिए मुस्‍कान और सरोकार नहीं है तो शहर से ऐसी उम्‍मीद कैसी रखी जाए. लेकिन ऐसे समय में भी अभी आशा के अनेक तारे टिमटिम कर रहे हैं. आशा के एक ऐसे ही दीए ने उदयपुर में एक जीवन को नई सुबह दी है.


उदयपुर में ‘डियर जिंदगी’ की पाठक, पत्रकार लकी जैन ने एक युवा आत्‍महत्‍या की कोशिश को समय रहते, अपनी सजगता से टालकर उसे नया जीवन दिया है.


लकी को उनके परिचित नागेश भट्ट ने एक दिन फोन करके बताया कि उसके एक दोस्‍त ने उन्‍हें फेसबुक पर आत्‍महत्‍या का मैसेज भेजा है. लेकिन उसका घर इतनी दूर है कि वहां तक जल्‍द पहुंचना मुश्किल है. समय बहुत कम है, जल्‍दी कुछ कीजिए.


लकी ने तुरंत उस इलाके की निकटतम पुलिस चौकी में एसआई सबीर खान से संपर्क किया. उनसे अनुरोध किया कि कृपया मदद करें, एक-एक पल कीमती है.


एसआई सबीर ने भी ‘रियल टाइम’ पर मदद की. कांस्टेबल जालम सिंह को तत्काल रवाना कर दिया. हालांकि वह इलाका सघन जनसंख्‍या वाले क्षेत्र में था, उसके बाद भी चंद मिनट में कांस्टेबल जालम सिंह उस पते पर न केवल पहुंच गए, बल्कि त्‍वरित कार्रवाई करते हुए उस युवा को फांसी के फंदे पर लटकने के चंद सेकंड के भीतर ही उतार लिया. तुरंत डॉक्‍टर के पास ले जाया गया. उस युवक को बचा लिया गया.


यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी : काश ! हम बच्‍चों की तरह जीना सीख लें…


डॉक्‍टर ने पुलिस की सराहना करते हए कहा कि दस सेकंड की देरी भी जानलेवा हो सकती थी. उदयपुर की यह कहानी एक-दूसरे के प्रति संवेदना के साथ व्‍यवस्‍था की सजगता को भी खूबसूरती से रेखांकित करती है. अगर हम एक-दूसरे का ख्‍याल ईमानदारी से रखने लगें तो किसी भी खतरे का सामना आसानी से कर सकते हैं.


एक बार फिर लकी जैन और उदयपुर की पुलिस खासतौर से कांस्टेबल जालम सिंह को सलाम! ऐसी ही कोशिश से हमारी जिंदगी तनाव और आत्‍महत्‍या के खतरे को पार करके हमेशा मुस्‍कुराती रहेगी.


सभी लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें : डियर जिंदगी


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


(https://twitter.com/dayashankarmi)


(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्‍स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)