जब आपका मन काम में नहीं लगता तो आप क्‍या करते हैं! दूसरों से बात करने की कोशिश करते हैं. कहीं बाहर निकलते हैं, किसी से मिलने की कोशिश करते हैं. किसी तरह व्‍यस्‍त रहना चाहते हैं. मुश्किल तब शुरू होती है, जब इनमें से कोई विकल्‍प न बचे. आपके लिए बात करना बेहद जरूरी हो जाए तो क्‍या करेंगे. जिंदगी जब ऐेसी जगह लाकर खड़ा कर दे, जहां बात करने के लिए कुछ न हो तो जो कुछ हम चुनेंगे, वह हमारी कल्‍पना से भी विचित्र, लेकिन सत्‍य होगा.


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ऐसा सत्‍य जिसे सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हो सकते हैं. डरकर, उदास होकर हमारी आंखें नम हो सकती हैं. जिंदगी की ओर इस तरह से मुड़ रही सड़क में अकेलेपन के रुखे, बेजार अकेलेपन के मोड़ आने आरंभ हो गए हैं.


तुर्की के बयरामपासा शहर से अपनी ऊब, अकेलेपन से जूझने का अनूठा मामला सामने आया है. यहां पचपन बरस के सेरेफ कैन ने केवल एक साल में पुलिस को इमरजेंसी नंबर पर 45,210 बार फोन मिलाया. फोन मिलाने के बाद सेरेन ने कोई शिकायत नहीं की, वह केवल बात करते थे. कैन की कोशिश रहती थी कि किसी तरह कुछ बात हो जाए.


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पहले इमरजेंसी नंबर पर उनसे बात की जाती रही. इससे सैम को इसकी आदत पड़ गई. जब भी उनका मन करता, वह इंमरजेंसी नंबर लगा देते. धीरे-धीरे पुलिस को उनका व्‍यवहार परेशान करने लगा. तब उन्‍होंने इसकी शिकायत इस्‍तांबुल के कम्‍युनिकेशन और इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स विभाग से की. सेरेफ को बुलाया गया. उन्‍होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘दो साल पहले मेरा तलाक हो चुका है. मैं डिप्रेशन का मरीज हूं. मुझे बहुत अकेलापन लगता था. इसलिए मैंने इमरजेंसी नंबर का उपयोग किया.’


हालांकि कोर्ट ने उनकी दलील को बहुत महत्‍व नहीं दिया. कैन को सरकारी काम में बाधा डालने पर पांच साल की सजा सुनाई गई है.


हम उम्‍मीद करते हैं, वहां की सुप्रीम कोर्ट इस मामले को मानवीय नजरिए से समझने की कोशिश करेगी. सैम से उदारता से पेश आएगी.


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हमारी निजी चाहतें, दूसरों के प्रति प्रेम में कमी, महत्वाकांक्षा का पहाड़ हमें एक ऐसी दुनिया बनाने की ओर धकेल रहा है, जहां हमारा मनुष्‍यता से संपर्क हर दिन कम हो रहा है!


हमारे पास दूसरों के लिए समय ही नहीं है. यहां ध्‍यान दीजिएगा कि ‘दूसरे’ की परिभाषा में आपका परिवार, भाई-बहन, रिश्‍तेदार और मित्र, पड़ोसी शामिल हैं. जो असल में कभी ‘आपमें’ ही गिने जाते थे. वह हमसे बिछुड़ गए, क्‍योंकि हमने अपनी गति कुछ ज्‍यादा तेज कर दी. इससे हम अक्‍सर उस मोड़ से आगे निकल जाते हैं, जहां हमको ठहरकर रुकना था. स्‍नेह, प्रेम, आत्मीयता के स्‍नेहन (लुब्रिकेशन) के लिए!   


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संभव है, आप सेरेफ कैन की बात को बहुत संजीदगी से न लें. आपको उन्‍हें दी गई सजा भी सही लगने की संभावना है. इसलिए मेरा अनुरोध है कि अपने आसपास, समाज में आ रहे परिवर्तन पर गहरी नजर रखिए. हम जिस तेजी से ‘बुजुर्गों को डंप’ करने की ओर बढ़ रहे हैं. उन्‍हें अनाथालय, आश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हैं. हमारे यहां भी सेरेफ कैन जैसे मामले सामने आने में बहुत समय नहीं बचा है.


अब समय आ रहा है कि हम ‘जीवन संवाद’ की ओर बढ़ें. संवाद के अवसर बनाएं. बुजुर्ग वह पेड़ हैं, जो न केवल हमें छांव, हवा देते हैं, बल्कि परिंदों के घोंसलों को आश्रय देने, तूफान को थामने का काम भी करते हैं.


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इसलिए, मिलकर प्रेम, आत्‍मीयता और संवाद की अलख जगाइए. न जाने कब इसकी जरूरत आपको भी पड़ जाए!


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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