वह बेहद प्रतिभाशाली था. खूब. दोस्‍त कहते, तुम्‍हारे अंदर आग है. तुम किसी से डरते नहीं, झूठ बोलते नहीं. और सबसे बड़ी बात तुम्‍हें पता है, क्‍या करना है! दोस्‍तों के कहे पर सब खरे नहीं उतरते. लेकिन वह उतर गया. पच्‍चीस बरस में वह देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी में टॉपलाइन मैनेजमेंट का हिस्‍सा बन गया. उसके चर्चे हर जगह थे. हर कोई उसके जैसा होना चाहता था. पागलपन की हद तक काम में डूबा. पंद्रह बरस में 28 तबादले. हर बार तरक्‍की और दूसरे शहर जाने का फरमान. उसने कभी मना नहीं किया. सोचा परिवार के लिए तो करना ही होगा. पता ही नहीं चला, कब परिवार, बच्‍चे और दोस्‍त हाशिए पर चले गए. उसका नाम होता रहा. लेकिन कुछ ऐसा था, जो भीतर-भीतर टूट रहा था.


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जब हम अंदर से धीरे-धीरे टूट रहे होते हैं, तो कई बार हमें पता नहीं चलता. जब तक पता चलता है, आत्‍मा की दीवारें दरक जाती हैं. मनोबल कमजोर पड़ जाता है. साहस और धैर्य हमसे रूठकर चले जाते हैं. हमें जरा भी अंदाजा नहीं होता कि मन की इमारत कितनी कमजोर हो गई है. हम बाहर की दीवारें तो 'अंबूजा' सीमेंट से तैयार करवाते रहते हैं, लेकिन मन और आत्‍मा तबाह होते रहते हैं. हम भीतर देखते ही नहीं. और इस तरह अंदर से आने वाली आवाजें दिमाग तक पहुंचने से पहले दम तोड़ देती हैं.


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हमारी धड़कनें दिखावे, कथि‍त प्रतिष्‍ठा बोध में उलझी रहती है. इससे जिंदगी का भला नहीं होता. उनका संसार सुखी नहीं होता, जिनसे हम प्रेम करते हैं. हम प्रेम के नाम का जाप तो करते हैं, लेकिन प्रेम करते नहीं. उसके लिए कीमत चुकाने, साहस की बारी आती है, तो भाग खड़े होते हैं. लेकिन हां, दूसरे से अपेक्षा यही होती है कि वह हमें प्रेम ही करता रहे.


यहां दूसरे की परिभाषा को समझिए. इसमें माता-पिता, पत्‍नी, भाई, बहन और वह दोस्‍त शामिल हैं, जिन्‍हें हम प्रेम करते हैं. प्रेम के साथ उनको जोड़ते रहते हैं. बार-बार उनका जिक्र करते रहते हैं, कि इनके 'प्रेम' के लिए ही वास्‍तव में आप सब कर रहे हैं. कौन, भला अपने लिए इतना संघर्ष करता है, हम तो बस 'दूसरों' के लिए जीते हैं. परिवार के लिए दुख को कंधे पर लादे घूम रहे हैं. इतना सब करते हुए हम भूल जाते हैं कि जिसके नाम पर हम जिंदगी को पीसे जा रहे हैं. तरक्‍की के हाई-वे पर जिसके लिए दौड़ रहे हैं, अगर वह साथ नहीं है, तो जिंदगी एकदम रूखी, गंधहीन, स्‍वादहीन हो जाएगी. ऐसी जिंदगी बदले में क्‍या देगी, हमें!


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मनोहर गंजू उस प्रतिभाशाली युवा का नाम है. जिसने जिंदगी में सब कुछ बहुत जल्‍दी हासिल कर लिया था. लेकिन वह अपने परिवार, बच्‍चों और दोस्‍तों का करियर के साथ तालमेल नहीं बैठा पाए. धीरे-धीरे परिवार टूटने लगा, उन्‍हें समझ नहीं आया. लेकिन जब समझ आया तो उन्‍होंने परिवार को बचाने के लिए अपने को झोंक दिया. खूब सारे समझौते किए. खुद को एक सुरक्षित लेकिन एक ऐसे खोल में कैद कर लिया.. जहां से आगे का कोई रास्‍ता नहीं था. परिवार बचाने के लिए खुद के पांव बांध दिए. इतने कि धीरे-धीरे निराश, हताश और भीतर से टूटने लगे. नौकरी से उत्‍साह, प्रेरणा और ऊर्जा चली गई. बस वह किसी तरह बची रही. लेकिन मनोहर अंदर से कमजोर होने लगे.


उनकी इकलौती समस्‍या परिवार और करियर में तालमेल की कमी रही. जब जिसको जैसा समय देना था,वैसा नहीं दिया. दिल, दिमाग और प्रेम को एक-दूसरे का विरोधी समझा. जबकि यह तो एक-दूसरे के पूरक हैं.


यह बातें खुद मनोहर ने हमसे साझा की. 


अब क्‍या. 


मनोहर को उनके ही दूसरे दोस्‍त ने नई पारी के लिए तैयार किया. उनके साथ तकरीबन छह महीने रहे,उनका मनोबल बढ़ाया, परिवार को समझाया. अपने दोस्‍त को उसकी खूबियों के बारे में बताया. उसके सूखते मन पर प्रेरणा की बूंदें बरसाईं. उसे बीस बरस बाद किसी बोर्ड के सामने प्रजेंटेशन के लिए तैयार किया.


मुझे लिखते हुए अच्‍छा लग रहा है कि मनोहर ने नई चुनौती स्‍वीकार कर ली है. वह मुख्‍यधारा में लौट रहे हैं. इस वादे के साथ कि परिवार, करियर और प्रेम एक-दूसरे के विरोधी नहीं...सहयात्री हैं.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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