राजस्‍थान के झुंझुनूं से रंजीत तिवाड़ी लिखते हैं, ‘सरकारी नौकरी करने वाले बेटे के फेसबुक पर पांच हजार से अधिक दोस्‍त हैं. असल जिंदगी में मुश्किल से पांच. उसके पास माता-पिता परिवार के लिए वक्‍त नहीं, लेकिन फेसबुक के लिए उसके पास समय की कमी नहीं!’ सोशल मीडिया में मित्रता के दायरे के विस्‍तार में कुछ गलत नहीं, लेकिन यह किसकी कीमत पर हो रहा है,  इस पर ध्‍यान देना होगा. हम इतने अधिक सोशल हो गए हैं कि समाज, परिवार सबके लिए ‘अ’सोशल हुए जा रहे हैं!


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कुछ बरस पहले तक ऐसा लग रहा था कि सोशल मीडिया का प्रभाव केवल शहरों तक सीमित है, लेकिन असीमित डाटा ने सब कुछ बदल दिया. अब इसका असर ‘महानगर’ से बाहर कहीं गहरा दिख रहा है. मध्‍यम दर्जे के शहर से होता हुआ अब यह कस्‍बों, जिलों और गांव तक पहुंच रहा है. यह मनुष्‍य के एक-दूसरे से प्रत्‍यक्ष संपर्क कम करने की दिशा में बुनियादी गड़बड़ पैदा करने का काम कर सकता है. जब हम एक-दूसरे से मिलते हैं, दो यह मिलना केवल दो लोगों का नहीं होता. दो भिन्‍न प्रकार की सोच, समझ और विचार का मिलना भी होता है. लेकिन सोशल मीडिया पर यह सब बातें इस तरह लागू नहीं होतीं. यहां दूसरी प्रकार की दुनिया है. यह असल में प्रभाव की दुनिया है. आप दूसरों पर कितना असर डालते हैं, कैसा असर डालते हैं. इससे आपकी मित्रता के पैमाने तय होते हैं.


फेसबुक, मित्रों से संपर्क के लिए है, लेकिन यह यहां बनाए संबंधों की पूर्ति के लिए असली दुनिया के दोस्‍तों के हिस्‍से का समय, स्‍नेह और प्रेम खर्च करने की जगह नहीं है. जो ऐसा कर रहे हैं, उनकी स्‍थिति रंजीत जी के बेटे की तरह है. ऐसे लोग एक किस्‍म के पागलपन, नशे की चपेट में हैं. उन्‍हें कितना भी समझाइए, लेकिन उनकी नजर पर ऐसे परदों की परत है, जिसे संभालना आसान नहीं.


इसके लिए बकायदा एक प्रक्रिया है. ‘डियर जिंदगी’ के ‘जीवन संवाद’ में हम इसे ‘सोशल अगेन’ कहते हैं. सोशल मीडिया, स्‍मार्टफोन से दूर एक बार फि‍र उस मोहल्‍ले की ओर लौ‍टि‍ए, जहां लोग आपको पीछे से आवाज देकर बुलाते हैं. इस तरह से आपको पहचानते हैं.
प्रकृति की गोद में लौटिए. घर में जगह नहीं, कोई बात नहीं. अगर खूब सारे पौधों की जगह नहीं, तो कम से कम एक गमला तो लगा ही सकते हैं. उसे समय दीजिए. उससे प्‍यार से पेश आइए. उसका ख्‍याल रखिए. यकीन मानिए, धीरे-धीरे वह आपके संवाद का हिस्‍सा बन जाएगा.


अपनी मां, पिता, भाई, बहन को वक्‍त देने की कोशिश करिए, जो आपकी जिंदगी आसान बनाते हैं. जैसे आपका माली, जैसे कॉलोनी, घर, ऑफि‍स के घरेलू सहायक! उनको थोड़ा, थोड़ा शिक्षित करने का प्रयास किया जाए. अपनों से मिलिए, संवाद कीजिए. ख्‍याल रखना और करना एक संक्रामक आदत है. जितना अधिक इसका उपयोग किया जाएगा, यह उतना ही असर दिखाएगी. 


अकेले भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में सोशल मीडिया, समाज का प्रतिस्‍पर्धी बनकर उभरा है. फेसबुक पर मौजूद कुल लोगों की संख्‍या दुनिया के सबसे बड़े देश की आबादी को टक्‍कर देने वाली है. यहां इतने लोगों की उपस्थिति ही एक ऐसा आभासी सुख देती है कि आपकी बात बड़े पैमाने पर सुनी जा रही है. लोग आपके सुख-दुख का हिस्‍सा हैं.


आपके हमख्‍याल लोग आपके हमसफर भी हैं, लेकिन यह बात खुशफहमी से अधिक नहीं है. यहां मौजूद लोगों का साथ किसी खास मौके के लिए शायद कारवां की शक्‍ल अख्तियार कर ले, लेकिन यह रोजमर्रा की जिंदगी, सामान्‍य जीवन में समाज की जगह ले पाने की स्थिति में अभी नहीं आया है. इसलिए यहां मौजूद दोस्‍तों को अपने हिस्‍सा का सारा समय, स्‍नेह और साथ देने से बचना होगा. अपनी प्राथमिकता से परिवार, मित्र और समाज को बाहर मत करिए, यह एक किस्‍म के अकेलेपन का आरंभ है. इससे बचिए और दूसरों को भी इस ओर जाने से रोकिए.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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