डियर जिंदगी : अधूरे ख्वाबों की कहानी…
अगर हमारे सपने में भय है. आशंका है. विश्वास की कमी है तो कैसे ख्वाब पूरे होंगे. उसके बाद सारी जिंदगी बहाने खोजते हुए, ‘बहानेसाइटिस’ में खर्च होगी.
किस्सा कोई तीस बरस पुराना है. स्कूल, कॉलेज के दिनों में वह किसी हीरो से कम नहीं थे. उनकी सोच, समझ और सुंदरता पर हर कोई फना था. वह अपने नगर के राजा सरीखे थे. सब उनकी बात सुनते, दूसरों पर उनका रौब था. पढ़ने के लिए वह बेंगलुरू उस समय भेजे गए जब उत्तर भारत के लोग कर्नाटक के बारे में उतना ही जानते थे, जितना स्विट्जरलैंड के बारे में!
उन्होंने अपने चार सेमेस्टर को पार करने में सात लगा दिए. इस बीच उनके पिता नहीं रहे, चीजें एकदम उलट हो गईं, जीवन ने उन्हें सपनों से यथार्थ की जमीन पर ला पटका.
अपने जीवन में गंवाए गए चार बरस की कीमत वह जिंदगी भर चुकाएंगे. क्योंकि अब उनका जीवन के प्रति नजरिया ही बदला हुआ है. वह एकदम यथास्थितिवादी यानी 'जैसा है, वैसा चलने दो' के समर्थक हो गए हैं. हर चीज में किस्मत, भाग्य और समय को कोसने में वह पीएचडी कर सकते हैं!
अपने बच्चों को नए की ओर प्रेरित करने की जगह एकदम भाग्यवादी नजरिए पर छोड़ रखा है. मैं यहां उनका नाम नहीं दे रहा हूं. लेकिन हम आसानी से समझ सकते हैं कि ऐसे नाम एक दो नहीं. असंख्य हैं.
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हमारे आसपास ज्यादातर ऐसे ही लोग हैं. जिन्होंने उस वक्त समय को ठुकराया जब वह उनके सामने पलकें बिछाए बैठा था. अब बरसों से वह ‘समय’ की प्रतीक्षा में बुजुर्ग हुए जा रहे हैं.
हमारे आसपास ऐसी बेहिसाब प्रतिभा, ऊर्जा, क्षमता बिखरी पड़ी है, जिनमें सबकुछ था. लेकिन जिंदगी में कुछ हासिल करने करने, खुद को संघर्ष की आग में तपाने की क्षमता नहीं थी. निर्णय करने की योग्यता जीवन में सबसे अहम है.
ठीक उस पल जब दुनिया आपको ठुकराने पर आमादा हो, तब आप खड़े रहने का निर्णय करते हैं, तो असल में आप अपनी हसरतों में रंग भरने का काम शुरू करते हैं.
जिंदगी में कुछ हासिल करने की आग, लगन, इच्छा इसे आप कोई भी नाम दे सकते हैं, लेकिन यह कितनी प्रबल है, इससे आपके जीवन की धुरी तय होगी. हम अक्सर अपने ही इरादों के प्रति भयभीत होते हैं.
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अगर हमारे सपने में भय है. आशंका है. विश्वास की कमी है तो कैसे ख्वाब पूरे होंगे. उसके बाद सारी जिंदगी बहाने खोजते हुए, ‘बहानेसाइटिस’ में खर्च होगी.
इच्छा कैसी हो. इस बारे में महान दार्शनिक सुकरात का किस्सा सुनते चलिए. अपने सपनों, अरमान पूरे करने के बारे में उनका एक किस्सा बेहद लोकप्रिय है. शायद आपने पहले भी सुना हो…
सुकरात के पास एक युवक आया और उसने कहा, मुझे अपने सपने पूरे करने का रहस्य बताइए. सुकरात ने उससे कहा, हो जाएगा, बस, कल सुबह नदी के किनारे मिलना.
अगले दिन वह युवा तय समय पर नदी किनारे हाजिर हुआ. सुकरात ने कहा, मेरे पीछे नदी में उतरते चलो. वह आदेश का पालन करता रहा. धीरे-धीरे वह उस जगह पहुंच गया, जहां पानी गले के पास तक आ गया. वह कुछ समझ पाता कि इससे पहले ही अचानक सुकरात ने उसका सिर पानी में डुबो दिया. युवा ने पूरी ताकत लगा दी, लेकिन सुकरात की पकड़ बेहदे मजबूत थी. धीरे-धीरे उसकी सांसे उखड़ने लगीं, उसका रंग नीला पड़ने लगा.
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उसकी हालत और अधिक बिगड़ने से पहले सुकरात उसे पानी से निकाल किनारे की ओर ले गए. वह बुरी तरह हांफ रहा था, किसी तरह अपनी सांसों को संभालने में लगा था. वह सुकरात की ओर आश्चर्य, डर से देख रहा था.
जब वह सामान्य होने को हुआ तो सुकरात ने पूछा, जब तुम डूब रहे थे तो तुम्हारे भीतर सबसे प्रबल इच्छा क्या थी. उसने बेहद शांत, स्पष्ट आवाज में कहा, ‘सांस लेने की चाहत.’
अब सुकरात उसके प्रश्न पर लौटे और उसे समझाते हुए कहा, ‘हमारी चाहतों को असल में ऐसी ही सांसों की जरूरत है, जब तुम सफलता को उतनी प्रबलता से चाहोगे, जितना तुम अपने भीतर चलने वाली सांस को चाह रहे थे, तभी तुम्हारे अरमान, सपने पूरे होंगे.’
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आइए, सपने को अपनी सांसों जैसी चाहत बख्शें. जिंदगी को स्पष्ट, निर्णायक राह की ओर लेे चलें, जहां रास्ते में उदासी, डिप्रेशन और तनाव के स्पीडब्रेकर न हों.
आपकी यात्रा मंगलमय हो.
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