डियर जिंदगी: कहां है सुख और सुखी कौन!
सुख के अपने-अपने घोंसले हैं. किसी को बया की क्रिएटिविटी लुभाती है, तो कोई ‘चट्टानों’ के बीच चैन खोजता है. जैसे परीक्षा में ‘कम से कम’ नंबर लाना जरूरी होता है, वही फॉर्मूला दूसरों को सुख देने के बारे में हमें अपनाना होगा.
सुख क्या है, इस बारे में ठीक-ठीक कहना संभव नहीं, क्योंकि यह एकदम निजी अनुभव है. मुझे बारिश भली लगती है, उसमें भीगना पसंद है. दूसरी ओर हमारी पार्किंग में काम करने वाले साथी के लिए बारिश परेशानी की सगी बहन है. विज्ञान की चर्चा किसी के लिए इतनी सुखद है कि रात और दिन का अंतर मिट जाता है. तो बहुत से मित्र हैं, जो विज्ञान का नाम आते ही नींद में सुख खोजने निकल जाते हैं. मुझे अपने चाचा से पिता जितना प्रेम है. उनका साथ मुझे सुखी कर देता है. लेकिन यह बात मेरे ही परिवार के दूसरे सदस्य के बारे में नहीं कही जा सकती.
इस तरह सुख के अपने-अपने घोसले हैं. किसी को बया की कोमलता लुभाती है. तो कोई चट्टानों के बीच चैन की नींद लेता है. जैसे परीक्षा में ‘कम से कम’ नंबर लाना जरूरी होता है, वही फाॅर्मूला दूसरों को सुख देने के बारे में हमें अपनाना होगा.
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हम एक-दूसरे से सुखी/दुखी इसलिए ही नहीं होते क्योंकि हम अपेक्षा के जंगल में भटके हुए हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि हम एक-दूसरे के प्रति कठोर होते जा रहे हैं. मिसाल के तौर पर आपकी बेटी/बेटे से गलती हो जाने पर आप उससे कैसे पेश आते हैं, लेकिन अगर यही गलती पड़ोसी के बच्चे से हो जाए, तो हम पूरी कॉलोनी को सिर पर उठा सकते हैं.
एक मिसाल, जिसका मैं भी हिस्सेदार हूं, शेयर कर रहा हूं…
कोई दो बरस पहले हम अपनी पहली कार शोरूम से ले आए. जितना महत्व नई कार को दिया जाना चाहिए, उसे मिल रहा था. तभी एक दिन किसी बच्चे ने अपने सुनहरी क्रिएटिव राइटिंग से कार के दरवाजे और ग्लास पर कुछ उकेर दिया.
जाहिर है, तकलीफ हुई. बुरा भी लगा. लेकिन अगले ही पल मुझे विचार आया कि अगर यही काम अपने घर के किसी बच्चे का होता तो क्या करते. हमने सारे बच्चों को इकट्ठा किया और उनसे कहा कि अगली बार यह किसी कार के साथ मत करना!
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इस अनुभव ने हमारी सोचने की शैली को अलग दिशा दी. कार कितने दिन नई रहेगी. दिल्ली में क्या बिना स्क्रैच के रहेगी. लेकिन इसका असर यह हुआ कि अब हम कार के भीतर बैठकर अधिक सुखी रहते हैं, उसमें छोटी-मोटी खुरचन की चिंता नहीं करते. एक प्रकार से हम ऐसे भय से मुक्त हो गए, जो हमेशा रहता है.
जिंदगी में सबसे अनमोल चीज ‘अनुभव’ को देखने का नजरिया है. यही हमें सुखी और दुखी करता है. भविष्य के प्रति कोमल, सजग नजर और दूसरों के प्रति प्रेम, उनकी चिंता हमारे समाज की सबसे अनमोल धरोहर रही है, जिसे हम हर दिन भूलते जा रहे हैं.
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मैं इन दिनों बहुत से युवा साथियों के साथ संवाद में हूं. उनके मैसेज/व्हाट्सअप पर खूब मिल रहे हैं. इनमें सबसे खतरनाक चीज देखने को मिल रही है, उनका अकेलापन. हर कोई अकेला है, दोस्तों की भारी-भरकम भीड़ के बाद भी. चैंटिंग करते हुए घायल/चोटिल हुए अंगूठे के बाद भी, कोई ऐसा दोस्त, साथी हासिल नहीं, जिससे दिल की बात कही जा सके. जिससे मन का दर्द शेयर किया जा सके.
असली चीज सुख को साझा करना नहीं है. असल में सुख कभी बांटा ही नहीं जा सकता. अगर कुछ शेयर किया जा सकता है, तो वह केवल दुख है. इसलिए हमारी परंपरा, संस्कृति में दुख के समय मिलने को इतना जरूरी माना गया है. जिससे उसकी छाया शेष जीवन पर कम से कम हो.
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इसलिए जिनसे स्नेह है, जिनकी फिक्र है, उनके चेहरे पढ़ते रहें. उनके दिल का ख्याल रखें. हम शरीर की जरा सी बीमारी पर डॉक्टर की ओर 'छलांग' लगा देते हैं, लेकिन गहरी उदासी, डिप्रेशन की रेखा के हमारे इतने करीब पहुंच जाने के बाद भी हम बीमार, दुखी मन को सही खुराक, इलाज देने से मीलों दूर हैं.
जितना जल्दी हो, इस 'दूरी' को 'बांटना' होगा...
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