डियर जिंदगी : जीने की तमन्ना से प्यार करें, मरने के अरमान से नहीं…
हमें आत्महत्या के विचार के विरुद्ध जमकर लोहा लेना होगा. न कि सहानुभूति! आत्महत्या करने वालों के प्रति उदारता से हम समाज को सृजनात्मक नहीं बना सकते.
मैं जितने ताज़ा, प्रतिभाशाली, पढ़े-लिखे युवाओं को मैं जानता हूं, वह उनमें काफी आगे है. एक ऐसी लड़की जिसे अपने सपनों पर भरोसा होने के साथ उनके लिए भरपूर पागलपन है. वैसे हम सुपरिचित हैं, लेकिन फिर भी मुझे नहीं पता था कि वह ‘डियर जिंदगी’ के पाठकों में से एक है. कल उसने मैसेंजर पर लिखा कि ‘जब कोई बात बिगड़ जाए’ वाली पोस्ट ‘जजमेंटल और रूड’ है, क्योंकि हमें आत्महत्या करने वालों के प्रति थोड़ी सहानुभूति रखनी चाहिए!
उसके कमेंट से थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि वह पर्याप्त पढ़ी-लिखी है. दुनिया के आंगन में थोड़ा बहुत घूमती फिरती भी है. उसके बाद भी आत्महत्या के प्रति यह रवैया! लेकिन इसे समझना इतना मुश्किल भी नहीं, क्योंकि जरा विश्व, भारतीय साहित्य पर नजर डालिए यहां भी आत्महत्या के बारे में कितना लिखा गया है!
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साहित्य में आत्महत्या एक रास्ते के बिंब के साथ आई है. कहीं-कहीं तो उसमें एक किस्म का रोमांस है. इसे जीवन में कष्ट से मुक्ति के रूप में सर्टिफिकेट तक मिला हुआ है. जबकि यह किसी और के प्रति, स्वयं मनुष्यता के प्रति सबसे बड़ा अपराध है. यह अपने दुखों से मुक्ति का रास्ता नहीं, बल्कि उनके लिए ताउम्र यातना है, जो तुमसे प्रेम करते हैं. चलो, यह भी छोड़ो कि तुमसे कोई प्रेम नहीं करता. किसी को तुम्हारी चिंता नहीं! हो सकता है दुनिया में तुम्हें कोई प्रेम योग्य ही न माने!
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इतना सब होने के बाद भी न जीने का प्रश्न कहां से आ गया.
आत्महत्या से कुछ हासिल नहीं होता. सिवाए इस झूठे हठ के, कि मैं जीना नहीं चाहता\चाहती.
मन से अपने अवचेतन की ओर उतरिए तो शायद जान पाएंगे कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले किसी ऐसे संकट से गुजरते रहते हैं, जिसे किसी से साझा नहीं कर पाते.
ऐसे कष्ट मोटे तौर पर इस तरह के होते हैं...
1. बचपन की ऐसी स्मृति जो निरंतर पीड़ा देती है. यह परवरिश से लेकर यातना\ निजी अनुभव\उदासी की छाया कुछ भी हो सकती है.
2. संबंधों के छल, टूटन से उपजी पीड़ा. हमारी अधकचरा फिल्मों, किताबों ने ऐसा मानस रच दिया कि दो लोगों के बीच अलगाव, रिश्तों की टूटन आत्मा पर ग्रहण की तरह आमादा हैं.
3. कोई इसी गम में मरे जा रहा है कि एक लड़के\लड़की ने धोखा दे दिया. तो जीवन तबाह हो गया.
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अरे! यह क्या बात हुई! क्या इससे दुनिया की सारी स्त्रियां\पुरुष धोखेबाज हो गए. क्या माता-पिता, भाई-बहन जैसे रिश्तों का कोई अर्थ नहीं. बस व्यर्थ हो गए. यह एक किस्म का सिंड्रोम है. अतीत से जोंक की तरह चिपके रहना, अपनी आत्मा तक सुख, स्नेह और आत्मीयता की सप्लाई को रोक देना.
4. कुछ करने को नहीं है. यह ऐसे लोगों के मन में उपजता है. जो संघर्ष की छाया से नहीं गुजरे, जिनकी आरजू से पहले अरमान पूरे हो जाया करते हैं. ऐसे लोग दाल में नमक बराबर भी तनाव, कठिनाई को सहन नहीं कर पाते. खुद को साबित करने की ललक जीवन के लिए ईंधन का काम करती है.
5. आपका कोई ऐसा काम जो दुनिया की नजर में आ जाए, जिससे आपको यह लगता है कि ‘बड़ी’ बदनामी होगी! गोया आप खुद को खुदा मान बैठे हैं. इसके मायने यह भी हैं कि आपने अपनी एक नकली छवि बाहरी दुनिया में गढ़ ली है, जबकि आप वैसे हैं ही नहीं. और आप छवि के टूटन के डर से मौत की योजना बनाते हैं.
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ऐसे लोगों के लिए गांधी की 'सत्य के प्रयोग' एक अचूक दवा की तरह है. इससे सस्ती, पतली कोई किताब दुनिया में नहीं है, जो हमारी आत्मा पर लगे जालों को साफ कर सके.
हमें आत्महत्या के विचार के विरुद्ध जमकर लोहा लेना होगा. न कि सहानुभूति! आत्महत्या करने वालों के प्रति उदारता से हम समाज को सृजनात्मक नहीं बना सकते. हां, हमें खुद को इतना उदार बनाना है कि हम अपने बच्चे, दोस्त, साथी को हर हाल में स्वीकार करें. उनसे प्रेम करें, उनकी भूल, चूक, नाकामी सबको स्वीकार करें. इससे जीवन का विचार स्वत: बड़ा होता जाएगा.
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