डियर जिंदगी : आपको भी तारीफ किए हुए जमाना बीत गया!
हर किसी को प्रोत्साहन की जरूरत है. भले ही वह किसी भी पेशे, उम्र के किसी पड़ाव पर क्यों न हों. हम सब कहीं न कहीं प्रेरणा और सराहना के लिए देखते ही हैं.
वह भारत के चुनिंदा युवा कथाकारों में से एक हैं. पेशे से एक मल्टीमीडिया कंपनी में मैनेजर हैं.वह अपनी कहानी के साथ तेवर के लिए भी जाने जाते हैं. सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों कीसंख्या सामान्य से कहीं अधिक है. यात्रा, संवाद और लेखन उनके प्रिय विषयों में शामिल हैं. पिछले दिनों उनकी एक कहानी बेहद लोकप्रिय हुई. हम उस कहानी पर कुछ बात कर रहे थे, इसी दौरान मैंने महसूस किया कि वह किसी बात से नाखुश हैं. मैंने कहा क्या हुआ. उन्होंने बताया कि किसी व्यक्ति विशेष ने इस कहानी पर उनको प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे वह अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं.
कुल मिलाकर, सारांश में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि हर किसी को प्रोत्साहन की जरूरत है. भले ही वह किसी भी पेशे, उम्र के किसी पड़ाव पर क्यों न हों. हम सब कहीं न कहीं प्रेरणा और सराहना के लिए देखते ही हैं. अभी बहुत बरस नहीं हुए जब एक-दूसरे की सराहना एक सामान्य स्वभाव की बात मानी जाती थी. इतना ही नहीं, होता यह भी था कि मनुष्य अपनी बात कहने में संकोच करता था, उसकी बात कोई दूसरा करता और दूसरे की बात वह करता.
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भारतीय समाज में हमेशा से यह देखा गया कि अक्सर अपने बच्चों की तारीफ माता-पिता नहीं करते. वह दूसरे के बच्चों की सराहना करते रहे और समाज उनके बच्चों की. इस तरह प्रोत्साहन पूरे समाज में स्नेह पाता रहा. लेकिन इधर एक दशक से जैसे जैसे परिवार एकल हुए, हम मकानों से माचिस की डिब्बियों जैसे आशियानों की ओर बढ़े, हमारी दुनिया धीरे-धीरे एकाकी होती गई.
हम जिस तरक्की की राह में जीवन को दांव पर लगाकर बढ़ रहे हैं, वहां दूसरों से सीमित संबंध और सामाजिक सरोकार जैसे संवेदना वाले सहज स्वभाव के लिए जगह कम होती जा रही है. हम दूसरे का अच्छा काम, उसकी तरक्की देखकर खुश होना भूल गए हैं.
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हम दूसरों के साथ हंसना भूल गए हैं. उनकी खुशी, आगे बढ़ते कदम का अभिनंदन करने की ललक कम होती जा रही है. एक काम जो हम करना कम, बंद कर देते हैं, भले ही देखने में वह कितना ही छोटा क्यों न लगे, लेकिन आपके ऐसा करने का एक अर्थ यह भी होता है कि कोई दूसरा भी वैसा ही करने लगे. हमारे बीच दूसरों की मदद, उनके लिए सरोकार, ऐसी ही छोटी छोटी बातें हैं, जो इसलिए खत्म होती जा रही हैं, क्योंकि सब यही सोचते हैं कि मेरे ऐसा न करने से क्या होगा!
समाज में प्रेरणा, दूसरों की सराहना, अपरिचितों के लिए स्नेह एक दिन में खत्म होने वाली आदतें नहीं हैं. यह हमारी जिंदगी में उतनी ही मुश्किलें पैदा कर रहा है, जितना इन दिनों दिल्ली में छाया स्मॉग. जो एक दिन में नहीं जन्म लेता, धीरे धीरे बढ़ता है, लेकिन एक दिन विकराल रूप लेकर हवा को दूषित कर, सांस लेना दूभर कर देता है.
वैसे ही दूसरों के प्रति संवेदना, प्रेरणा और प्रोत्साहन ऐसी आदते हैं, जिनका समाज से गायब होना, मनुष्यता पर स्मॉग के खतरे जितना ही गंभीर है...
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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