रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू विराट कोहली की कप्तानी में आईपीएल के शुरू के सभी छह मैच हार गया है. भृकुटियां तन गई हैं. आलोचकों की बन आई है. विराट कोहली (Virat Kohli) के एकछत्र राज, यानी कप्तानी की योग्यता पर संदेह की निगाहें पड़ गई हैं. कहते हैं कि क्रिकेट में कप्तान उतना ही अच्छा होता है, जितनी कि उसकी टीम. टीम खराब है तो कप्तान क्या करेगा. दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि अच्छे खिलाड़ियों के सहारे तो मामूली कप्तान भी मैच जिता देता है. महत्व तो तब है, जब मामूली टीम को भी अपनी कप्तानी की योग्यता के बलबूते कप्तान टीम को जिताता रहे. इस मायने में विराट कोहली आलोचना के शिकार बन रहे हैं. 


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सबसे पहले आलोचना की तलवार पूर्व क्रिकेटर व अब कॉमेंट्री कर रहे गौतम गंभीर ने खींच ली. उन्होंने कहा कि विराट कोहली अपनी कप्तानी में आईपीएल टूर्नामेंट अपनी टीम को एक बार भी नहीं जिता पाए. गंभीर ने इसी कारण विराट की कप्तानी की काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया. फिर क्या था. भारतीय क्रिकेट में आलोचकों की कमी कहां है. ऐसे पूर्व खिलाड़ी, जिन्होंने कभी देश का नेतृत्व नहीं किया और ना ही टेस्ट क्रिकेट में एक हजार रन पूर कर पाए, वे भी ‘बुद्धिमान’ बनने की भीड़ में घुस गए. किसी ने धोनी की अनुपस्थिति में विराट को ‘हाफ कप्तान’ (आधा-अधूरा कप्तान) कह दिया. तो किसी ने उनकी अब तक की कामयाबियों को ही नकारने की ठान ली.

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यह सब नकारात्मकता तब प्रकट की जा रही है, जब भारत विश्व कप जीतने के मंसूबे बांध रहा है. यह बहुत ही निराशाजनक है. आपका ‘एजेंडा’ कुछ भी हो. आप विराट के बदले किसी और को भले ही उठाना चाहते हों. पर आज की स्थिति में यह तनिक भी उचित नहीं है. मेरे इस तर्क के कारणों पर हम बहस जरूर कर सकते हैं. देशहित व भारतीय क्रिकेट के हितों के बारे में सोचकर ही जिम्मेदार लोगों को अपनी बात रखनी चाहिए. 


पहली बात तो यह कि आईपीएल कोई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तो है नहीं. पैसा कूटना व मनोरंजन करना इसका प्रमुख उद्देश्य है. अन्यथा बाउंड्री लाइन के बाहर खड़ी चीयरगर्ल्स आधे-अधूरे कपड़ों में किसी गंभीर क्रिकेट प्रतिस्पर्धा का विज्ञापन करती तो नजर नहीं आ रही थीं. मजा तो तब आता है जब इंग्लैंड में चीयरगर्ल्स पूरे कपड़े पहने चीयर करती हुई दिखाई देती है. सचमुच, भारत ने बहुत तरक्की कर ली है. इस मामले में पश्चिम को हमने बहुत पीछे छोड़ दिया है. फिर आईपीएल 20-20 ओवरों का खेल है. हम तो जानते हैं कि जून में होने वाला विश्व कप 50-50 ओवरों का होने वाला है. टी20 क्रिकेट अलग ढंग से खेला जाता है. जबकि 50-50 ओवर का क्रिकेट भिन्न योजना के साथ खेला जाता है. ऐसे में 50-50 ओवर विश्व कप के लिए विराट की कप्तानी की योग्यता पर सवाल उठाना कहां तक उचित है. 


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एक बात यह भी है कि विश्व कप के नजदीक बैठा भारत पहले ही अपना कप्तान विराट कोहली के रूप में चुन चुका है. अब इसमें तो कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है. ऐसे में विश्व कप के ठीक पहले उनकी कप्तानी की योग्यता पर आंखें तरेरना कहां तक उचित है. जब हौसला बढ़ाने की जरूरत है, तब हम निरुत्साहित कर रहे हैं. यह सही है कि भारतीय क्रिकेट टीम की अगुवाई करते वक्त विराट एक अलग ही विश्वसनीय शख्स लगते हैं.


इसका कारण यह भी है कि भारतीय टीम इतनी संतुलित कभी नहीं रही. तेज गेंदबाजी हमारी प्रमुख कमजोरी हुआ करती थी, पर यही हमारा मुख्य हथियार बन गई है. जसप्रीत बुमराह आज विश्व के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज माने जा रहे हैं. तेज गेंदबाज चूंकि जोड़ियों में अपना शिकार करते हैं, तो भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी व इशांत शर्मा सही किरदार निभा रहे हैं. फिर स्पिनर के रूम में कुलदीप यादव व युजवेंद्र चहल का मायाजाल विरोधियों के छक्के छुड़ा देता है. जडेजा भी हैं ही.

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भारतीय क्षेत्ररक्षण में भी बहुत सुधार हुआ है. बल्लेबाजी में रोहित शर्मा, शिखर धवन, विराट कोहली को महेंद्र सिंह धोनी का तजुर्बा साथ देता है. परिस्थितियां तब विकट होती हैं, तब विराट का बल्ला नहीं चलता है. दबाव में तब भारतीय मध्यक्रम लड़खड़ा जाता है. 


भारतीय क्रिकेट जगत में कुछ ताकतवर गुट अपनों को जमाने व विरोधियों को उखाड़ने में लगे रहते हैं. पैसा, ग्लैमर व व्यावसायिक अनुबंध इसके प्रमुख कारण हैं. पता नहीं, वे दिन कब आएंगे, जब ‘अपने वाले’ की बजाय ‘अच्छे वाले’ की कीमत होगी.