पिछले हफ़्ते नई कृषि निर्यात नीति को लागू करने को सरकार की तरफ से मंजूरी मिलना क्या कोई छोटी घटना थी? लेकिन इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं मिली. हो सकता है कि मामला बेचारे किसानों और खेती किसानी से जुड़ा होने के कारण उसे उतनी तवज्जो न मिल पाई हो. लेकिन नहीं भूलना चाहिए कि यह देश की आधी से ज्यादा आबादी के रोजगार से जुड़ा मामला है. किसी लोकतंत्र में इस सबसे बड़े तबके की आजीविका के साधन से जुड़े मसले की मीडिया में अनदेखी को कोई भी ठीक नहीं मानेगा. बहरहाल, देर से ही सही, नई कृषि निर्यात नीति की समीक्षा जरूर होनी चाहिए.
लेकिन यह काम होगा कैसे?


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किसानों की आय दोगुनी करने पर फोकस
सरकार के 2018 की नई कृषि निर्यात नीति को लागू करने की अनुमति दिए जाने की खबर में सबसे ज्यादा चर्चा कृषि निर्यात को बढ़ाने की है. कहा गया है कि यह किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के सरकारी लक्ष्य की ओर उठाया गया एक कदम है. यह काम इसलिए किया गया है क्योंकि पिछले कुछ समय से भारतीय निर्यात खासकर कृषि उत्पादों के निर्यात में आती जा रही कमी पर चिंता जताई जा रही थी. इसीलिए इस तरफ देखा गया है. मकसद निर्यात बढ़ाने का है. इस काम का वह हिस्सा अभी देखा जाना बाकी है कि निर्यात बढ़ाएंगे कैसे? जो तरीके अब तक सोचे गए हैं वे खुद में एक लक्ष्य ही लगते हैं. ये लक्ष्य हासिल कैसे किए जा पाएंगे, इसका तय होना अभी काफी कुछ बाकी है.


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सरकार का इरादा 3 लक्ष्य साधने का
नई कृषि निर्यात नीति में सरकार तीन लक्ष्य साधना चाहती है. पहला कृषि उत्पाद के निर्यात को दोगुना करना. दूसरा निर्यात होने वाली वस्तुओं में विभिन्नता लाना. और तीसरा ज्यादा लाभकारी और जल्दी खराब हो जाने वाली फसलों और उत्पादों का निर्यात बढ़ाना. आज के समय में जब भारत पर पूरी दुनिया से अपने उत्पादकों को दी जाने वाली निर्यात सब्सिडी को खत्म करने का दबाव बन रहा है, तब निर्यात बढ़ाने के लिए नई निर्यात नीति का आना बेशक महत्वपूर्ण है. लिहाज़ा सबसे पहले इस नयी नीति के मुख्य बिन्दुओं और घोषित लक्ष्य पर कुछ चर्चा जरूर होनी चाहिए. 


क्या है नयी नीति
इस नई नीति के मुताबिक सरकार कृषि निर्यात को पिछले साल के 30 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2022 तक 60 बिलियन डॉलर करना चाहती है. इसके लिए कई स्तरों पर काम करने की योजना बनाई गयी है. नई नीति में सभी जैविक और प्रसंस्कृत खाद्य वस्तुओं पर लगने वाले सभी शुल्क हटा दिए गए हैं. इसी के साथ नए बाजार तलाशने के लिए भी रास्ते खोजने का काम इस नीति में शामिल है. कृषि क्षेत्र में आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए निवेश जुटाने का लक्ष्य भी बनाया गया है. 


केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर कुछ विशेष फसलों पर ध्यान केन्द्रित करने की योजना बनाई है. ये राज्य क्लस्टर लाभकारी फसलों के निर्यात को बढ़ावा देने का काम करेंगे. उत्पादन और प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र से निवेश कराने के लिए ‘ब्रांड इंडिया’ यानी भारतीय उत्पाद के ब्रांड को मजबूत करने के लिए भी काम किया जाएगा. केन्द्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने मीडिया को बताया कि निर्यात में विभिन्नता लाने पर जोर दिया जाएगा. इसीलिए आम, अनार, केला, अंगूर, चाय, कॉफी, हल्दी आदि जैसी फसलों को बढ़ावा देने के लिए अलग से प्रयास करने की योजना बनाई गई है. अंतरराज्यीय खरीद-फरोख्त बढ़ाने के लिए भी कई किस्म के मंडी कर और एपीएमसी के नियमों में भी बदलाव किए जाने की बात कही गई है.


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इस समय कृषि उत्पाद के निर्यात की स्थिति है क्या
भारत इस समय विश्व में सबसे ज्यादा कृषि उत्पादन करने वाले देशों की सूची में पहले पांच देशों में है. लेकिन वैश्विक व्यापार में खाद्य उत्पाद के निर्यात में भारत का स्थान पहले 10 देशों में भी नहीं है. इसका मतलब है हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है कि हम ज्यादा लाभकारी और अलग अलग किस्म की फसलों और खाद्य उत्पादों का निर्यात नहीं कर पाते हैं. अभी हमारे कुल कृषि निर्यात में 52 फीसद सिर्फ गेंहू, चावल और समुद्री उत्पाद ही रहते हैं. जबकि वैश्विक बाजार में फल, सब्जियों और फूलों की कीमत इन उत्पादों के मुकाबले कहीं ज्यादा रहती है. नीदरलैंड जैसा छोटा देश इस समय कृषि निर्यात में दूसरे नंबर पर है. उसकी सफलता का मुख्य कारण यह है कि वह मुख्य रूप से सब्जियां और फूल निर्यात करता है. जिनकी मांग और कीमत बाकी उत्पादों से काफी बेहतर है. 


हमारी समस्या है कहां
भारत की समस्या पिछले कुछ सालों से नए बाजार तलाशने की ही रही है. वैश्विक बाजार में खरीददार देशों के पास अब सस्ते के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता के कई विकल्प मौजूद हैं. इसलिए जब हम अपने निर्यात बढ़ाने के प्रयासों में कोई कर हटा कर या किसी किस्म की सब्सिडी देकर उत्पाद सस्ते करने की बात करते हैं तब गुणवत्ता वाला पहलू भी ध्यान में रहना चाहिए. 


प्रबंधन के छात्रों को जब मार्केटिंग और ब्रांडिंग के बारे में पढ़ाया जाता है तो उसमें एक बहुत काम का सिद्धांत यह पढाया जाता है कि ‘Your product is your best advertisement’. यानी आपका उत्पाद ही आपका सबसे अच्छा विज्ञापन है. इसका मतलब है कि अगर किसी ने अपने उत्पाद में इतना निवेश किया है कि वह बाजार में अपनी गुणवत्ता, नएपन और कीमत के जरिए खुद टिक सकता है तो इससे बेहतर विज्ञापन और कुछ नहीं हो सकता. अभी हम आंतरिक रूप से तो बाधाएं हटा सकते हैं लेकिन बाहर निकलने के बाद भारतीय उत्पाद को बाजार चाहिए. हमारे उत्पाद की मांग जब तक नहीं बढ़ेगी तब तक कृषि निर्यात बढ़ाने के हर प्रयास अधूरे रहेंगे.


फसलों की विविधता का पहलू
कृषि निर्यात बढ़ाने में एक और अहम पहलू फसलों में विविधता लाने का है. आज हम जो पैदा कर रहे हैं उसे ही निर्यात करना चाह रहे हैं और उसी की मांग बढ़ाना चाह रहे हैं मसलन चीनी. जबकि एक कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत के पास भरपूर मौके और भरपूर मानव संसाधन दोनों हैं कि वह ऐसी फसलों और उत्पादों के पैदावार में जोर लगाए जिनकी मांग वैश्विक बाजार में पहले से है. मसलन हॉर्टिकल्चर यानी बागवानी के जरिए पैदा होने वाली फसलें जैसे फल, फूल और सब्ज़ियों की वैश्विक बाज़ार में बहुत मांग है. और आम फसलों के मुकाबले उनके दाम इतने ज़्यादा हैं कि वे इस समय भारतीय किसान के लिए संकटमोचक साबित हो सकते हैं.


(लेखिका, मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)