नए साल पर देश की बेटी का खत: आओ बेटियों के मन से हटाएं असुरक्षा का भाव
बीता बरस बाकी बीते सालों की तरह ही है. बेटियों के लिए शायद बहुत कुछ नहीं बदला है. महिला अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है. हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं महिलाओं, बच्चियों के लिए लगातार असुरक्षित माहौल बनाते जा रहे हैं. हम आगे बढ़ें, लेकिन ये हमारी ही जिम्मेदारी है कि देश की हर लड़की, हर बच्ची खुद को सुरक्षित महसूस करे.
प्यारे देशवासियों,
देखते ही देखते साल 2017 खत्म हो गया है. पूरी दुनिया 2018 का इस्तकबाल कर रही है. बहुत दिन से सोच रही थी कि अपने देश के लोगों को एक खत लिखूं, एक मां, बहन, पत्नी और बेटी होने के नाते. बहुत कुछ है कहने को अच्छा भी है और बुरा भी. बीते बरस की अच्छी यादों के साथ शिकायतें भी बहुत सी हैं और उम्मीदें कि मेरा देश और उसके नौजवान निराश नहीं करेंगे. आप सबके सामने और पूरी दुनिया में देश की बेटियों ने अपना परचम फहराया. महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में अपनी धाक जमाने वाली देश की लड़कियों ने साबित किया कि वो किसी से कम नहीं है. सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा, दीपा कर्माकर ने अपने दम पर भारत की बेटियों की शान बढ़ाई. लेकिन अफसोस बहुत सारे हैं, शिकायतें भी हैं जो देश के नौजवानों से है, देश की नई पीढ़ी से आने वाले भविष्य से है.
बीता बरस बाकी बीते सालों की तरह ही है. बेटियों के लिए शायद बहुत कुछ नहीं बदला है. महिला अपराध लगातार बढ़ता जा रहा है. हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं महिलाओं, बच्चियों के लिए लगातार असुरक्षित माहौल बनाते जा रहे हैं. हम आगे बढ़ें, लेकिन ये हमारी ही जिम्मेदारी है कि देश की हर लड़की, हर बच्ची खुद को सुरक्षित महसूस करे. मुझे ये भी नहीं पता कि मेरे लिखे इस खत को कितने लोग पढ़ेंगे, मेरे शब्द किसी पर असर करेंगे या नहीं फिर भी मैं लिख रही हूं और आशा कर रही हूं कि कुछ बदलाव आए. रोजाना अखबार उठाते वक्त महिला अपराध से जुड़ी खबरें पढ़ते-पढ़ते अब थकने लगे हैं, डर और गुस्सा भी आता है फिर सोचती हूं कि आखिर कैसे बदलेंगे हालात.
ये भी पढ़ें: निर्भया कांड के 5 साल भी कुछ नहीं बदला, अब भी दिल्ली में लगता है डर...
नए साल में हमारे देश के नौजवानों से, रहनुमाओं से, नेताओं से, आपसे और खुद से बहुत कुछ की उम्मीद नहीं कर रही हूं. बस चाहती हूं कि जब कोई लड़की सड़क पर निकले तो उसकी नजरों में खौफ ना हो. जब कोई बच्ची अपने घर में हो अपने के बीच हो तो सुरक्षित हाथों में हो. बदलाव हम आप से ही शुरू होगा. तो नए साल में शुरुआत करते हैं लड़कियों को इंसान समझने की. बच्चियों की जिंदगी को संघर्ष और बुरे ख्वाब में तब्दील होने से बचाना है. मैं बहुत कुछ नहीं मांग रही हूं आपसे, इस देश से बस इतना कि बेटियों को आगे बढ़ने दें. सरकारों के नारे, उनकी योजनाएं सिर्फ दीवारों, होर्डिंग्स में छपे ना रह जाएं बल्कि जमीनी स्तर पर भी उनका असर हो. मेरा सपना सिर्फ इतना है कि अगला बरस ऐसा हो कि मैं अखबार उठाऊं तो उसमें कोई बलात्कार, कोई शोषण, कोई दहेज हत्या, कोई भ्रूण हत्या ना हो. सोशल मीडिया पर जब कोई लड़की या महिला अपनी बात रखे तो उसको बलात्कार की धमकी ना मिले, उसके चरित्र का चीरहरण ना हो. बात इक तरफा नहीं है ज़िम्मेदारी हम सबकी है जिसे हम सबको मिलकर उठाना है. माता-पिता अपनी बेटियों को मानसिक ही नहीं शारीरिक रूप से भी मज़बूत बनाएं. साथ ही माता-पिता की ही जिम्मेदारी है कि वह अपने बेटों को सिखाएं कि लड़कियों उनकी ही तरह होती है उनकी इज्जत करना चाहिए.
ये भी पढ़ें: #MeToo: पांच साल की उम्र में मुझे नहीं पता था 'बैड टच' या 'गुड टच'
एक बेहद खूबसूरत, प्यारे से देश के लोगों से गुजारिश ही कर सकती हूं, चाहती हूं कि हम सब एक खुशहाल मुल्क में मिलकर रहें. किसी लड़की को जरूरत पड़ने पर आधी रात को निकलने के लिए हजार बार सोचना ना पड़े. उसे अपने साथ किसी तरह के अपराध होने का डर ना हो. लड़कियां बेखौफ होकर अपनी जिंदगी जीएं. बच्चियां किसी हैवान का शिकार ना हो. उम्मीद इतनी सी है कि जब कहीं कोई लड़की जुल्म का शिकार हो रही हो तो तमाशबीन ना बने उसकी मदद करें.
ये भी पढ़ें: इंसान के भेष में घूमते दरिंदों से कैसे महफूज़ हों हमारे बच्चे!
आपकी एक कोशिश बहुत कुछ बदल सकती है. नए साल में ये ख़्बाव पूरा हो यही दुआ करती हूं. दुआ करती हूं कि नया साल पुराने जख्मों पर मरहम बनकर आए ना कि कोई जख्म दे के जाए. बस इतनी इल्तिजा है हिंदुस्तान के बेहद प्यारे लोगों से कि जो बुरे लोग हैं उनके खिलाफ खड़े हो जाएं तभी हमारी बहन, बेटियां, मां सुरक्षित होंगी.
नए साल की बहुत मुबारकबाद और स्नेह.
भारत की एक मां, बेटी और पत्नी
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)