इंसान के भेष में घूमते दरिंदों से कैसे महफूज़ हों हमारे बच्चे!
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इंसान के भेष में घूमते दरिंदों से कैसे महफूज़ हों हमारे बच्चे!

समाज में घूमते दरिंदों की कोई अलग पहचान तो होती नहीं. वह भी तो साधारण मनुष्य जैसे ही दिखते हैं हमारी आपकी तरह. फिर क्या तरीका है अपने बच्चों को इन दरिंदों से बचाने का.

सुरक्षा व्यवस्था पुख़्ता करनी ज़रूरी है लेकिन दरिंदे तो इसके बावजदू बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं. (प्रतीकात्मक फोटो)

लिखते वक़्त हाथ कांप रहे हैं, दिल में अजीब सी बेचैनी है. डर, गुस्सा, नाराज़गी, फिक्र, असुरक्षा, इतने सारे इमोशन एक साथ. ये इसलिए क्योंकि अब दिमाग सुन्न होने लगा है, समझ नहीं आ रहा है कि हम कहां जा रहे हैं. गुरुग्राम के रायन इंटरनेश्नल स्कूल में दूसरी कक्षा के छात्र प्रद्युम्न की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है और स्कूल को कानोंकान खबर नहीं लगती. दिल्ली में 5 साल की बच्ची से दुष्कर्म कीखबर एक दिन पुरानी हुई कि बेंगलुरू के प्राइवेट स्कूल में 4 साल की बच्ची के साथ रेप हो गया.

चार साल की मासूम जो चहकती हुई स्कूल गई, उसे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि स्कूल की सुरक्षा में तैनात सिक्योरिटी गार्ड ही उसे अपनी हवस का शिकार बना लेगा. उफ़्फ़ कहां आ गए हैं हम, कैसे हो गए हैं हम. कैसे कुंठित, घिनौने, वहशी घूम रहे हैं हमारे आसपास. जो 4 साल, 5 साल के बच्चों को भी नहीं बख्श रहे. घरों से माता-पिता बच्चों को स्कूल उनका भविष्य बनाने के लिए भेजते हैं लेकिन अब जो ख़बरें सामने आ रही हैं उससे चिंता बढ़ गई है.

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ये सब लिखते वक़्त मेरा डेढ़ साल का बेटा बगल में सो रहा है और मैं परेशान हूं कि वह इस तथाकथित सभ्य समाज में कितना सुरक्षित है. दो साल बाद मैं कितनी हिम्मत करके उसे स्कूल भेजूंगी.

वह स्कूल जहां पता नहीं कौन-सा कंडक्टर, कौन-सा ड्राइवर, कौन-सा सिक्योरिटी गार्ड विकृत मानसिकता का होगा. आखिर मैं कैसे महफूज़ कर पाऊंगी अपने बच्चे को. आखिर कब तक उसे अपने आंचल में छुपाकर सुरक्षित रख पाऊंगी. एक न एक दिन तो उसे जाना ही होगा घर से बाहर, मुझसे दूर.
आखिर माता-पिता कहां-कहां बच्चों के साथ जाएं, स्कूल में, पार्क में, पड़ोसी के हर जगह तो अब असुरक्षित नज़र आने लगी है.

समाज में घूमते दरिंदों की कोई अलग पहचान भी तो नहीं है. वह भी तो साधारण दिखते हैं हमारी आपकी तरह. फिर क्या तरीका है अपने बच्चों को इन दरिंदों से बचाने का. इस तरह की वारदात के बाद दोषी को कड़ी सज़ा भी मिल जाएगी, हो सकता है कि फांसी दे दी जाए, लेकिन क्या कल कोई और सिक्योरिटी गार्ड, कोई और कंडक्टर ऐसा नहीं करेगा इसकी क्या गारंटी है. ये यौन कुंठाओं से भरे मानसिक बीमार किसी सज़ा से नहीं डरते हैं, आज एक को फांसी होगी कल कोई दूसरा ये अपराध कर बैठेगा.

आज ही एक मित्र ने कहा कि 8वीं कक्षा तक के स्कूलों में सिक्योरिटी गार्ड, कंडक्टर, बस ड्राइवर सारा स्टाफ महिलाओं का होना चाहिए. तो क्या ये सही तरीका है स्कूलों को सुरक्षित बनाने का. या फिर स्कूलों में स्टाफ रखते वक्त शिक्षा से ज्यादा परिवार को तवज्जो देनी चाहिए. यानि कि इंटरव्यू के वक्त आवेदकका नहीं, बल्कि उसके परिवार का इंटरव्यू हो, बच्चे से कुछ एक्सपर्ट सवाल-जवाब करें. बच्चे को उनकीबातों के अनुसार पिता के बारे में पूछें कि पिता का व्यवहार कैसा है परिवार के साथ, उसके साथ.

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सुरक्षा व्यवस्था पुख़्ता करनी ज़रूरी है लेकिन इस तरह के दरिंदे तो ऐसा होने के बावजदू बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं. क्योंकि बेंगलुरू के स्कूल में सीसीटीवी भी लगे थे और पुलिस के मुताबिक सुरक्षाइंतज़ाम पुख़्ता थे फिर भी बच्ची के साथ सिक्योरिटी गार्ड ने बलात्कार कर दिया. सुरक्षा इंतज़ाम से यौनकुंठित मर्दों की मानसिकता नहीं बदली जा सकती है. वह कहीं न कहीं किसी और को अपना शिकार बना लेंगे. सोचना होगा कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि हमारे बच्चे सुरक्षित माहौल में रहें. वह अपने साथ कोई दर्द लेकर बड़े न हों, वह अपना भविष्य रोशन बनाएं. मैं एक मां होने के नाते अपने बच्चे के लिए भी चिंतित हूं कि उसे कैसे बाहर की दुनिया में सुरक्षित रखा जाए.

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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