‘श्रीमंत’ के तंज से निजात का जतन सिंधिया का सहभोज
बुधवार 28 मार्च को सोशल मीडिया में समर्थकों ने सिंधिया के विशिष्ट होने की छवि को तोड़ती कुछ तस्वीरें पोस्ट की. ये तस्वीरें आम कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया के सहभोज की थीं. इन तस्वीरों में वे कार्यकर्ता को भोजन की प्लेट देते हुए, उनके साथ खाना खाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
मप्र में वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव होना है. यहां भाजपा और कांग्रेस चुनावी मोड में आ चुके हैं. भाजपा के पास जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसा चेहरा है जो आम आदमी से सीधा जुड़ा है तो कांग्रेस में अभी चुनावी ‘चेहरे’ को लेकर अनिर्णय की स्थिति है. ऐसे में युवा तुर्क सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पूर्ण सक्रियता से भाजपा सरकार को चुनौती देते नजर आ रहे हैं. मुख्यमंत्री चौहान सहित पूरी भाजपा सिंधिया पर ‘महाराज’ होने का ताना देते हुए उन्हें आम जनता के दु:ख दर्द से अनभिज्ञ बताते हैं. ऐसे में सिंधिया ने अपनी श्रीमंत की छवि को तोड़ने के भरपूर प्रयास किए हैं. अभी मप्र की राजनीति में ग्वालियर में कार्यकर्ता के साथ हुआ सिंधिया का सहभोज चर्चा में है जो महाराज की छवि को तोड़ने का उनका एक और जतन है.
कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया बीते एक साल से मप्र में अत्यधिक सक्रिय हैं. उनकी सक्रियता के कारण वे अघोषित रूप से मप्र में कांग्रेस का प्रतिनिधि चेहरा बनते जा रहे हैं. इसी कारण भाजपा ने उनकी घेराबंदी कड़ी कर दी है. इस तथा पार्टी के अंदर के अपने विरोध को न्यून करने के लिए सिंधिया ने आम आदमी के करीब पहुंचने के हर जतन किए हैं. उनके लिए ऐसा करना समय की आवश्यकता है क्योंकि समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसे राजनेता के रूप में स्थापित हुए हैं, जो आम आदमी से सीधे जुड़ा है. उन्होंने मुख्यमंत्री पद को ऊंचाई तो दी ही, 13 वर्ष के कार्यकाल में अपने निवास पर विभिन्न पंचायतों का आयोजन कर उन्होंने मुख्यमंत्री निवास को आम जनता के लिए मानो खोल ही दिया.
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साधारण कार्यकर्ता से असाधारण मुख्यमंत्री के रूप में उनका यह सफर अनूठा है. वे स्वयं को प्रदेश के बच्चों का 'मामा' कहलवाना पसंद करते हैं.उनकी इस छवि को चुनौती देने के लिए सिंधिया बीते कई वर्षों से स्वयं को महाराज कहलाने से परहेज करने लगे हैं. हालांकि, ज्योतिरादित्य की बुआ राजस्थान में भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को भी लोग 'महारानी' कह कर ही संबोधित करते हैं और उनकी दूसरी बुआ मप्र की खेल एवं युवा कल्याण मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को भी श्रीमंत ही कहा जाता है मगर इस संबोधन का नुकसान ज्योतिरादित्य को ही अधिक हुआ.
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वे बार-बार कहते हैं कि महाराज न कहा जाए मगर कई हिदायतों के बाद भी बहुत सारे लोग सिंधिया को सामने देख कर स्वत: महाराज करने लगते हैं. बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स पर भी उनके समर्थक सिंधिया के नाम के साथ महाराजा विशेषण जोड़ना पसंद करते हैं. यह उनके प्रति अपनत्व का प्रतीक हो सकता है मगर वे इसे बड़ी बाधा मानते हैं. इन संबोधनों के विपरीत वे आम जनता के बीच सहज बने रहने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं. वे अपनी वेशभूषा में बहुत सरलता रखते हैं. क्षेत्र में बिना एसी वाली गाड़ी का प्रयोग करते हैं. बीते माह अपने क्षेत्र में हुए दो विधानसभा उपचुनाव में वे घर-घर गए. ग्रामीण महिलाओं के साथ रोटी बेली. कभी बैलगाड़ी पर सवार हुए.
इसी क्रम में बुधवार 28 मार्च को सोशल मीडिया में समर्थकों ने सिंधिया के विशिष्ट होने की छवि को तोड़ती कुछ तस्वीरें पोस्ट की. ये तस्वीरें आम कार्यकर्ताओं के साथ सिंधिया के सहभोज की थीं. इन तस्वीरों में वे कार्यकर्ता को भोजन की प्लेट देते हुए, उनके साथ खाना खाते हुए दिखाई दे रहे हैं. एकबार फिर ग्वालियर राज परिवार ने लीक से हट कर कुछ किया और उनके आम होने की कोशिशों को राजनीतिक अर्थ मिल गए. सिंधिया अपनी कथित सामंती छवि से बाहर निकालने की कोशिशों में कितना सफल होते हैं यह और बात है मगर उनके ऐसे प्रयास कांग्रेस को संजीवनी देने का आभास जरूर देते हैं. चुनावी वर्ष में यह अन्दाज़ कितना कारगर होगा यह भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेगा. वैसे भी हॉवर्ड से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएट ज्योतिरादित्य के लिए राह उतनी आसान नहीं है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)