भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से 2000 के दौरान में भूजल स्तर 120 फीट था. यह वर्ष 2010 में 360 फीट पर पहुंच गया. और अब तो जिले में 600 फीट गहरा नलकून खनन करने पर पानी मिलता है.
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प्रख्यात पर्यावरणविद् और 'आज भी खरे हैं तालाब' के लेखक स्व. अनुपम मिश्र ने लिखा है- 'न जाने कितने शहर, कितने सारे गांव इन्हीं तालाबों के कारण टिके हुए हैं. बहुत- सी नगर पालिकाएं आज भी इन्हीं तालाबों के कारण पल रही हैं और सिंचाई विभाग इन्हीं के दम पर खेतों को पानी दे पा रहे हैं. बीजा की डाह जैसे गांवों में आज भी सागरों के नायक नए तालाब भी खोद रहे हैं और पहली बरसात में उन पर रात-रात भर पहरा दे रहे हैं. उधर रोज सुबह-शाम घड़सीसर में आज भी सूरज मन भर सोना उड़ेलता है. कुछ कानों में आज भी यह स्वर गूंजता है : 'अच्छे-अच्छे काम करते जाना.'
यहां अच्छे काम से उनका तात्पर्य पानी की फिक्र करने को लेकर है. मगर दुर्भाग्य है कि हम पानी की चिंता गर्मियों के मौसम में ही करते हैं. यह वो दौर होता है जब अधिकांश भागों में जल संकट गहराता है. सिर पर बर्तन उठाकर कई किलोमीटर पैदल चल पानी लाना पड़ता है. शहरों में जल कटौती होती है. पानी के लिए हत्याएं तक हो जाती हैं और पानी को खरीदने का दम रखने वाले शहरी समाज के लिए अब तो चिंता का सबब है कि महंगे दाम पर खरीदा गया पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर भी सेहत के लिए जोखिम भरा है. भूमि का पानी कई सौ फीट नीचे उतर गया, मगर जल संकट के प्रति जारी चिंताएं ग्रीष्म के जाते ही हवा हो जाती हैं. हम पानी बचाने के प्रति बारिश के मौसम तक गंभीर रहते ही नहीं और इस तरह हमारी व्यवस्था में पानी अनमोल हो जाता रहा है.
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ऐसे समय में बुरहानपुर ने समय पर जागने का जतन किया है. बारिश का पानी रोकने के लिए शहरी ही नहीं, ठेठ दूरस्थ अंचलों में बसे बंजारा, आदिवासी, गुर्जर समाज को जागृत कर अभी से सचेत किया जा रहा है और यह काम कर रही हैं यहां कि विधायक और मप्र की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस. पानी बचाने के जतन में बुरहानपुर का जिक्र इसलिए कि विश्व में एकमात्र जीवित भूमिगत भू-जल संरचना बुरहानपुर के ऐतिहासिक कुंडी भंडारे (खूनी भंडारे) पर है. 400 वर्ष पूर्व सतपुड़ा की पहाड़ियों से निकले भू-जल को सहेजकर निरंतर प्रवाहित रखने के लिए बनी इस अनूठी जल संरचना का जल स्तर बीते कुछ वर्षों से लगातार गिर रहा है. यदि यही स्थिति बनी रही तो कुछ सालों में अविरल धारा बंद हो जाएगी. मुगलकालीन यह संरचना उस समय की इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है. सतपुड़ा के जंगलों की कटाई व मिट्टी के कटाव चलते अब यहां जल रिसाव कम होता जा रहा है.
भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 से 2000 के दौरान में भूजल स्तर 120 फीट था. यह वर्ष 2010 में 360 फीट पर पहुंच गया. और अब तो जिले में 600 फीट गहरा नलकून खनन करने पर पानी मिलता है. इतनी गहराई के बाद भी यह तय नहीं कि यह पानी कितने दिन मिलेगा. मंत्री चिटनीस की चिंता यह है कि इससे गहरे जाकर पानी लिया गया तो वह पीने के योग्य न होगा तथा क्षेत्र में आर्सेनिक और फ्लोराइड के कारण होने वाली बीमारियां बढ़ेंगी. बुरहानपुर महाराष्ट्र का सीमावर्ती जिला है और गर्मी के दिनों में निमाड़ का सबसे ज्यादा तपने वाला क्षेत्र है. इतना ही नहीं मानसून में वर्षा के दिन कम हो गए हैं. पहले करीब 60 दिनों तक होने वाली वर्षा 35 से 40 दिनों तक ही सीमित रह गई है. यहां पानी का संचय न होने के साथ केले और कपास जैसी फसलों में पानी का बहुत उपयोग हुआ. पानी कम होने के कारण फसलें कम हुई तथा जो हो रही हैं उनकी गुणवत्ता भी घट रही है. ऐसे में आय का संकट भी गहरा रहा है.
इन चिंताओं से घिरी मंत्री चिटनीस ने पानी को रोकने का अभियान चलाया. वे चैत्र नवरात्रि में विशेष तौर पर धामनगांव में एक पहाड़ी पर नौ दिन एक कुटिया में रहकर जल जागरण का कार्य आगे बढ़ाती हैं. इस वर्ष उन्होंने गर्मियां शुरू होते ही जल यात्राओं के माध्यम से पानी बचाने का संदेश प्रसारित करने का कार्य किया ताकि बारिश के पहले अधिक से अधिक वर्षा जल संरक्षण संरचनाएं बन सकें. वे गांव-गांव जा रही हैं तथा ग्रामीणों को विभिन्न तरीकों से पानी बचाने को प्रेरित कर रही हैं. जल संचय का काम सरकारी अमले को नहीं करना है, जनता को करना है. छोटे-छोटे और कम रकबे के मालिक किसानों को पानी बचाने के लिए तैयार करना आसान नहीं हैं. उन्हें नलकूल लगाने की जगह कुंआ बनाने की सलाह तथा सहायता दी जा रही है. उन्हें प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है कि वे केले और कपास की कमतर फसल की जगह कम पानी वाली फसलें लें. बांस और आंवला, सहजन लगाएं. मधुमक्खी पालन और मटका रेश्म से अपनी आय बढ़ाएं. चिटनीस ने हर गांव में कुछ लोगों को तैयार किया है कि वे आगे आ कर इन प्रयोगों को करेंगे ताकि उनकी देखादेखी सभी पानी बचाने के उपायों को अपनाने लगें.
दूसरी ओर, बुरहानपुर के ग्राम संग्रामपुर में भूजल संरक्षण का पायलट प्रोजेक्ट प्रारंभ किया गया है. यूएनडीपी अंतर्गत संग्रामपुर में पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) व यूएनडीपी इंडिया द्वारा निर्मित की गई परियोजना में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन लगाया जाएगा व भूजल स्तर बढ़ाने के लिए रिचार्ज वेल, इंजेक्शन वेल इत्यादि बनाए जाएंगे. यह एक साल की पायलट परियोजना होगी, जिसके सफल होने पर परियोजना को वृहद स्तर की बनाई जाएगी. इस कार्यक्रम के लागू होने से क्षेत्र में ऐसे कृषि उत्पाद भी खोज किए जा सकेंगे जो कम पानी से अधिक फसल दे सकेंगे. ऐसे लगने वाले बीज, आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना आदि विषयों पर भी कार्य होगा. चुनावी साल में मंत्री चिटनीस ने मुद्दों की राजनीति को तरजीह देते हुए क्षेत्र के आधारभूत विकास की चिंता की है. उन्होंने नवरात्रि जैसे धार्मिक उत्सव को पानी बचाने का संदेश देने के अवसर में तब्दील तो किया ही है वैज्ञानिक तरीकों से जल संचय के तरीके भी अपनाए जा रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि ये जतन पूरे देश के लिए नजीर बनें ताकि हम भी अच्छे-अच्छे कामों की अपनी सूची में जल संरक्षण की चिंता को भी शामिल कर सकें.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)