सौंदर्य का मिथक और प्रेम
प्रेम कहानियों से लड़कों के दिमाग में सुंदरता के कुछ प्रतिमान स्थापित हो जाते हैं, जैसे गोरा रंग, कजरारी आंखें, छरहरा कोमल बदन, लंबे बाल, तोते की चोंच जैसी नाक आदि-आदि. फिर वे इन्हीं की तलाश करने लगते हैं, जो कभी मिलते नहीं.
आपने फिल्में देखी हैं और प्रेम कहानियां भी पढ़ी होंगी. आपको इन सभी में एक बात आम नज़र आई होगी कि इनकी नायिकाएं बहुत सुंदर दिखाई या बताई जाती हैं. असल जीवन में चाहे वह एक्ट्रेस कैसी भी क्यों न हो, लेकिन मेकअप करके उसे इस तरह पेश किया जाता है मानो, वह धरती की सबसे सुंदर लड़की है. मैं कई फिल्म अभिनेत्रियों से मिला हूं. यदि किसी को यह न बताया जाए कि यह अमुक अभिनेत्री है और वह बिना मेकअप किए आम लड़कियों की तरह सड़क पर निकल जाएं, तो कई की ओर तो शायद ही कोई ध्यान देगा.
इसी तरह प्रेम कहानियों में भी जब नायिका की बात आती है, तो उसकी सुंदरता का वर्णन करने में कोई कसर नहीं रखी जाती. इसका परिणाम क्या होता है? परिणाम यह होता है कि लड़कों के दिमाग में सुंदरता के कुछ प्रतिमान स्थापित हो जाते हैं, जैसे गोरा रंग, कजरारी आंखें, छरहरा कोमल बदन, लंबे बाल, तोते की चोंच जैसी नाक आदि-आदि. फिर वे इन्हीं की तलाश करने लगते हैं, जो कभी मिलते नहीं.
मेरे एक मित्र थे. वे कभी किसी लड़की से प्रेम नहीं कर सके, जबकि खुद वे बहुत सुंदर थे और बहुत रोमांटिक भी. उनके साथ दिक्कत यह थी कि उन्हें किसी लड़की आंखें अच्छी लगती थीं, किसी की गर्दन तो किसी के बाल. उन्हें कोई एक ऐसी लड़की नहीं मिली, जिसमें ये सारी सुंदरताएं मौजूद हों. नतीजा यह हुआ कि वे कभी प्यार नहीं कर सके. जब शादी करने की बारी आई, तब तक उनकी उम्र तीस साल हो चुकी थी, क्योंकि मनपसंद पत्नी ढूंढने में भी उन्हें वही दिक्कत आ रही थी, जो मनपसंद प्रेमिका ढूंढने में आई थी.
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इसका एक और भी बुरा असर होता है. ज़रूरी नहीं है कि प्रेम सुंदरता से ही हो. उसके अन्य भी बहुत कारण होते हैं. हां, सुंदरता एक प्रारम्भिक और सबसे महत्वपूर्ण कारण ज़रूर होता है. जब किन्हीं अन्य कारणों से किसी को किसी से प्रेम हो जाता है, तो कुछ समय तक तो सबकुछ ठीक-ठाक चलता है. बाद में मामला गड़बड़ाना तब शुरू होता है, जब वह अपने प्रिय में सौंदर्य के इन प्रतिमानों को ढूंढता है. इससे प्रेम की गहराई कम होने लगती है. जबकि शरीर, यानी कि सौंदर्य पर आधारित प्रेम न तो स्थायी प्रेम होता है और न ही सच्चा. हीर सुंदर नहीं थी और न ही रांझा, न तो सोहनी सुंदर थी और न ही महिवाल.
दरअसल, फिल्म देखते समय और प्रेम कथाओं को पढ़ते समय हम झूठ की एक दुनिया में फंस जाते हैं. फिल्म बनाने वाला या कहानी लिखने वाला गलत नहीं है. यथार्थ प्रेम के क्षेत्र का सौंदर्य वही नहीं होता है, जो वहां बताया गया है, बल्कि यह वह सौंदर्य होता है, जो प्रेमी अपनी प्रेमिका में देखता है. हम इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को समझ नहीं पाते. जो एक बार इस सच्चाई को समझ लेते हैं, वे फिर सौंदर्य के मिथक के शिकार नहीं होते. ऐसा ही प्रेम सच्चा होता है और टिकता भी है.
फिल्मों की नायिकाएं दर्शकों को बहुत अच्छी लगती हैं और नायक भी. इसका एक कारण उनका सुंदर होना तो होता ही है. लेकिन एक अन्य बहुत बड़ा कारण होता है- उनका गुणवान होना. कथाओं में ये प्रेमी और प्रेमिकाएं प्रेम, दया, करुणा, शक्ति आदि महान मानवीय गुणों से सम्पन्न दिखाए जाते हैं. हम उनके इन गुणों को उन एक्टर्स एवं एक्ट्रेसेस पर लागू कर देते हैं. जब सुंदरता और गुण आपस में मिल जाते हैं, तो ज़ाहिर है कि प्रेम की भावना और भी अधिक प्रबल हो जाती है. इसी कारण फिल्में हमें ज़बर्दस्त रूप से पकड़ लेती हैं.
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फिर व्यावहारिक जीवन में भी प्रेमी अपनी प्रेमिका में और प्रेमिका अपने प्रेमी में इसी तरह के गुणों की तलाश करने लगते हैं. वे इस बात को भूल जाते हैं कि फिल्म की सच्चाई और जीवन की सच्चाई एक सी नहीं होती. जीवन यथार्थ है, आदर्श नहीं. जबकि फिल्में आदर्श ज़्यादा होती हैं, यथार्थ कम. जो एक्टर और एक्ट्रेस फिल्म में जिन गुणों से युक्त दिखाए जाते हैं, उन्हें ही उनके निजी जीवन में उससे विपरीत आचरण करते हुए बड़ी आसानी से सुना और पढ़ा जा सकता है. ये ही नायक और नायिकाएं; जो फिल्मी पर्दे पर एक-दूसरे के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं, व्यावहारिक जीवन में उनकी अपने प्रिय से पटती तक नहीं है. वहां ब्रेकअप के खेल चलते रहते हैं. यह जीवन की सच्चाई है और इसे हमें समझना चाहिए.
इंग्लैंड के एक महान कवि हुए हैं- यीट्स. उनकी एक बहुत प्रसिद्ध पुस्तक है- 'अ विजन'. मैं यहां अपनी बात के समर्थन में उनका एक वाक्य प्रस्तुत करने जा रहा हूं. कवि यीट्स ने लिखा है- ‘मैं एक ऐसी अभिनेत्री को जानता हूं, जो अपने निजी जीवन-व्यवहार में पूरी तरह तानाशाह है, पर स्टेज पर पांव रखते ही दया और कामना को उकसाने वाली नितान्त समर्पणशील नारी की भूमिका निभाते हुए कमाल कर देती है.’
मित्रो, यही जीवन की सच्चाई है, और प्रेम की भी. इसे समझना है और समझने के बाद प्रेम से जुड़े उन मिथकों से छुटकारा पाना है, जो इस क्षेत्र में परेशानी का कारण बने हुए हैं.
(डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)