किसी बच्‍चे और बड़े से एक ही सवाल कीजिए. तुम्‍हें पुराना कितना याद है. बच्‍चा फटाक से कहेगा, ध्‍यान नहीं, भूल गया. यह कहकर वह किसी ओर दौड़ जाएगा. कुछ दिन में यह भी भूल जाएगा कि आपने उससे कुछ पूछा था. दूसरी ओर बड़ा! वह तो अपने याद कि बोरियां दिमाग में लिए बैठा है. उसे सब कुछ याद है! ऐसे लोग जिन्‍हें सब कुछ याद है, वह असल में दिमाग में रद्दी की बोरियां लादे घूम रहे हैं. ऐसी बोरियां जिनका कोई मोल नहीं है. हर वह चीज जिसका मोल न हो, अनमोल नहीं होती. 


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जिंदगी में सीखने से अधिक परेशानी न भूलने की है. अहम सवाल सीखने की क्षमता से अधिक भूलने की आदत है. आप देख सकते हैं कि जीवन में अधिक सीखने वाले की तुलना में अधिक भूलने वाले कहीं सुखी रहते हैं. मेरे एक लेखक मित्र हैं, उनसे दस, पांच बरस पुरानी कोई बात पूछिए, फटाक से कहेंगे, याद नहीं. लेकिन उनसे ऐसा कुछ पूछिए जो देश, समाज, सरोकार से जुड़ी हो तो वह ब्‍यौरे के साथ बता देते हैं. वह कहते हैं, ''यह बेहद आसान है, जैसे हम घर में कीमती सामान को संभालकर रखते हैं, ठीक वैसे ही दिमाग में रखा जा सकता है. मैं गैरजरूरी चीजों को सुनते, गुजरते ही मिटा देता हूं. जिसको याद न रखना हो, आंखों से आगे उसे बढ़ने नहीं देता.'' 


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क्‍या यह सच में इतना आसान है. नहीं, क्‍योंकि अगर होता तो हम सब में यह गुण होता ही. हम सब बेकार की चीजों को लादे नहीं फि‍र रहे होते. हमारे मित्रों, परिवार, रिश्‍तेदारों में ऐसे लोग बड़ी संख्‍या में हैं, जो छोटी-मोटी बातों को दिल से लगा घुमाए रहते हैं. 


मेरे एक मित्र के पिता बेहद बीमार हैं. मैंने उससे कहा, अपने भाई को बताया. उसने कहा, ''नहीं, उन्‍होंने मना किया है.'' मैंने कहा, लेकिन वह इतने बीमार हैं, फिर भी. उसने कहा, ''हां, वह, भाई को नहीं बताना चाहते.'' मैं समझ गया कि उन्‍होंने अपने बेटे को माफ नहीं किया है. मेरी चिंता बस इस बात को लेकर हैं कि यह माफ न करना, उनको ही भारी पड़ रहा है. उनकी सेहत पर इसका खराब असर हुआ है. 


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किसी का प्‍यार-दुलार भरा व्‍यवहार. मुश्किल वक्‍त में हमारी मदद तो हमें चार दिन में भूल जाती है, लेकिन जरा-जरा सी अनर्गल बातों को हम मन में लादे फिरते रहते हैं. हम भूल रहे हैं कि हम अनचाहे ही मन पर बोझ डाल रहे हैं. हम मन के दिमाग और शरीर को भी रोगी बनाने का काम कर रहे हैं. यह छोटे-छोटे तनाव मिलकर बड़े तनाव, बीमारियों का कारण बन रहे हैं. उसके बाद हम मन की उपजी पीड़ा का इलाज तन से करने में जुट जाते हैं.


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हमारे दिल और दिमाग में गहरा संबंध है. जो चीजें दिल को नुकसान पहुंचाती हैं, वे दिमाग को भी बीमार बना सकती हैं. अमेरिका में जनरल न्‍यूरोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जो कारण दिल को बीमार बनाते हैं, वह अपना असर दिमाग की सेहत पर भी डालते हैं. रिपोर्ट कहती है कि डिमेंशिया और अल्‍जाइमर्स के मूल कारणों में वह तनाव है, जिससे दिमाग पर धीरे-धीरे लेकिन खराब असर पड़ता है. निरंतर तनाव में रहने वालों में दिल के रोग की संभावना बीस प्रतिशत तक बढ़ जाती है. 


मैं न तो विज्ञान का छात्र हूं, न ही विशेषज्ञ. मैं बस यह समझने की कोशिश में हूं कि कैसे वह चीजें, आदतें हमारी जिंदगी को बीमार बना रही हैं, जिन्‍हें अनजाने में हमने अपनी जिंदगी का हिस्‍सा बना लिया है. सब कुछ याद रखने की आदत भी वैसी ही चीज है. इससे जितना जल्‍दी हम खुद से दूर करें, उतना ही हमारे जीवन के लिए प्रिय होगा.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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