राष्ट्रीय हितों से प्रेरित है पाकिस्तान को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की चेतावनी
भारत में आतंकी गतिविधि को अंजाम देने वाले लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन अमेरिका की चिंता का विषय नहीं रहे हैं, क्योंकि इनकी सक्रियता से अमेरिकी हितों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. अमेरिका को अगर किसी आतंकी संगठन की चिंता होती है, तो वह अफगान तालिबान है, जो अफगानिस्तान में सक्रिय है.
अमेरिका ने जुलाई में पाकिस्तान को उन देशों की सूची में डाल दिया था, जिन्हें वह आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह मानता है. उस समय ऐसा लगा था कि पाकिस्तान के प्रति उसकी नीति में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है, हालांकि उस समय ऐसा मानने में हिचक थी. इसके पीछे कारण यहथा कि अमेरिका ने पाकिस्तान को ईरान, सूडान और सीरिया की तरह आतंकी देशों की सूची में नहीं डाला था. आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह वाले देशों की सूची में पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान, यमन, मिस्र, इराक, लीबिया, लेबनान, कोलंबिया, वेनेजुएला जैसे देश भी हैं. नए साल के अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान को आतंकियों को पनाह देने वाला धोखेबाज देश कहा जाना इसी दिशा में की गई एक टिप्पणी है. इसी के साथ अमेरिका ने उसे दी जाने वाली 255 मिलियन डॉलर की सहायता राशि रोक दी है. लेकिन पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति की गंभीरता को उस समय स्वीकार किया जाएगा, जब वह उसे आतंकी देशों की सूची में डाल दे. इसके अभाव में पाकिस्तान पर व्यापक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता.
भारत में आतंकी गतिविधि को अंजाम देने वाले लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन अमेरिका की चिंता का विषय नहीं रहे हैं, क्योंकि इनकी सक्रियता से अमेरिकी हितों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. अमेरिका को अगर किसी आतंकी संगठन की चिंता होती है, तो वह अफगान तालिबान है, जो अफगानिस्तान में सक्रिय है. वह कबीलाई क्षेत्र फाटा को ही आतंकियों का सुरक्षित पनाहगाह बताता है, पाक के कब्जे वाले कश्मीर या पाकिस्तानी पंजाब को नहीं, जहां लश्कर जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं. पाकिस्तान अफगान तालिबान के प्रति नरम रहता है, जबकि अमेरिका इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा करता है. अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को पाकिस्तान धोखेबाज देश लगता है, तो उसके मूल में अफगान तालिबान के खिलाफ उसकी दिखावटी कार्रवाई है. ऐसे में भारत को बहुत प्रफुल्लित होने की जरूरत नहीं है. अमेरिका ने पाकिस्तान की सहायता रोकी है, उस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है. अमेरिका के सामरिक हित अब भी पाकिस्तान के साथ जुड़े हुए हैं. ईरान से अपने खराब रिश्तों के कारण उसे अफगानिस्तान में प्रवेश के लिए पाकिस्तान से रास्ता चाहिए. उत्तरी इलाके से प्रवेश ज्यादा खर्चीला और मुश्किल भरा है. यही नहीं, अमेरिका यह भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान से उसके हटने के बाद रूस या चीन पूरी तरह वहां अपना दबदबा कायम कर लें. इसलिए अमेरिका उसके खिलाफ अचानक बड़ा कदम नहीं उठा सकता.
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फिलहाल तो यही लगता है कि सहायता राशि रोकने के जरिये अमेरिका उस पर दबाव बनाकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसकी मदद चाहता है. अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह आतंकवाद के प्रति अपना दोहरा रवैया त्याग कर अमेरिका के साथ ईमानदारी के साथ सहयोग करता है या नहीं. ट्रंप की टिप्पणी के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक एक दिन पहले बुलाई गई. यह पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में व्याप्त चिंता को प्रकट करता है.
बदलता वैश्विक परिदृश्य तय करेगा संबंधों की दिशा
अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में अविश्वास का जो भाव पैदा हो चुका है, उसमें ऐसा नहीं लगता कि दोनों देशों के रिश्ते ज्यादा समय तक मधुर रह पाएंगे. खास बात यह है कि चीन से उसकी निकटता काफी बढ़ चुकी है. अगर चीन से मिलने वाली मदद अमेरिकी मदद में आई कमी की भरपाई कर सकती है, तो पाकिस्तान कुछ निश्चिंत हो सकता है. लेकिन भारत से खराब रिश्तों के मद्देनजर वह अमेरिका से अपना संबंध खराब नहीं करना चाहेगा.
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दरअसल, बदलते वैश्विक परिदृश्य में दुनिया के देशों के संबंध बदल रहे हैं और एक अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती जा रही है. हाल ही में आए अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतिक दस्तावेज में चीन को अमेरिकी सत्ता के लिए खतरे के रूप में देखा गया है. नतीजतन भारत को एक वैश्विक ताकत के रूप में स्वीकार करना उसकी रणनीति का हिस्सा है. यही कारण है कि वह एशिया-पैसेफिक की जगह इंडो-पैसेफिक शब्दावली का इस्तेमाल करने लगा है. चीन और पाकिस्तान के बढ़ते गठजोड़ को अमेरिका नजरअंदाज नहीं कर सकता. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को खाड़ी क्षेत्र में अमेरिका की उपस्थिति के लिए खतरे के रूप में देखा जाने लगा है. राष्ट्रपति ट्रंप भले ही आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान के योगदान को खारिज करते दिखते हों, लेकिन चीनी विदेश मंत्रालय उसके समर्थन में उतर आया. उसने पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के प्रतिकूल रुख के बावजूद वहां निवेश जारी रखने की नीति दोहराई. यही नहीं, उसने अफगानिस्तान के साथ भी दोस्ताना रिश्ते विकसित करने का इरादा जाहिर किया. चीन का यह दृष्टिकोण इस क्षेत्र में अमेरिकी हितों के खिलाफ है. इसे चीनी समर्थन का नतीजा कहें या पाकिस्तान के आत्मसम्मान का तकाजा, पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने अमेरिका को राष्ट्रपति ट्रंप के उस दावे को सही साबित करने की चुनौती तक दे डाली, जिसमें उन्होंने पिछले 15 वर्षों में 33 बिलियन डॉलर से ज्यादा पाकिस्तान को देने की बात कही थी. पाकिस्तान की यह टिप्पणी दोनों देशों के रिश्तों में घटते विश्वास और बढ़ती तल्खी को प्रदर्शित करता है. आने वाले समय में पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति और बदलती भू-राजनैतिक परिस्थिति पर बारीकी से नजर रखनी होगी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)