Intentional Cranial Modification: क्या आप खोपड़ी को विकृत करने के बारे में सोच सकते हैं, इस सवाल के बारे में कोई भी कहेगा कि यह कौन सी बात हुई. लेकिन जापान के हिरोता समाज के लोग खोपड़ियों को विकृत कर दिया करते थे और इसमें लड़के या लड़कियों में फर्क भी नहीं करते थे.
Trending Photos
करीब 1800 साल पहले जापान में हिरोता लोग रहा करते थे. इस समाज की खासियत यह थी कि वो अपने बच्चों की खोपड़ी को विकृत कर देते थे. दरअसल इस तरह की खोपड़ी पर रिसर्च करने के बाद जानकारी सामने आई कि उनमें किसी तरह के आनुवंशिक समस्या नहीं थी बल्कि उस समाज के लोग जानबूझकर इस तरह का काम करते थे. हालांकि इसके पीछे की वजह क्या थी रहस्य बरकरार है. साइंस की भाषा में इसे इंटेंशनल क्रैनियल मॉडिफिकेशन कहते हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया की अलग अलग सभ्यताओं में इस तरह की संस्कृति रही है.
नेगोशिमा द्वीप पर रहते थे हिरोता
जापान के हिरोता लोगों के बारे में शोधकर्ता कहते हैं कि हजारों साल पहले नेगाशिमा द्वीप पर इस समाज के लोग रहते थे और इस तरह की विधा में शामिल थे. 1957 से 1959 और 2005 से 2007 के बीच बड़ी संख्या में विकृत खोपड़ियां मिली थीं जिसमें पीछे का हिस्सा चपटा था, ऐसा लगता था कि किसी समतल औजार के जरिए खोपड़ी के पीछे वाले हिस्से को पीट पीट कर चपटा कर दिया हो. अब इस तरह के काम हिरोता लोग ही सिर्फ करते थे इस पर विचार किया गया और मिला कि जापान के किसी और हिस्से में इस तरह के मामले सामने नहीं आए थे.
लड़के.लड़कियों में कोई भेद नहीं
क्यूशू और मोंटाना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से इस विषय पर शोध किया था. 2डी और 3डी स्कैन के जरिए इस नतीजे पर पहुंचे कि विकृत खोपड़ियों के पीछे आईसीएम ही जिम्मेदार है. क्यूशू आईलैंड के लोगों से हिरोता समाज की खोपड़ियों से मिलान करने के बाद यह पाया गया कि यह सिर्फ उन्हीं लोगों में प्रचलित था. सबसे बड़ी बात यह थी कि हिरोता लोग लड़के और लड़की में किसी तरह का भेद नहीं करते थे. इसके जरिए वो लोग सामाजिक स्तर, सांस्कृतिक पहचान, सुंदरता, विचार, विश्वास को तय करने का काम करते थे.