Brahmos supersonic cruise missile: भारत के आयुध भंडार में ऐसे है बारूदी ब्रह्मास्त्र हैं जिसका नाम सुनकर ही दुश्मन कांप उठता है. ऐसा ही एक महाविनाशक घातक हथियार है ब्रह्मोस. जिसे अब दुनिया के कई देश अपने तरकश में शामिल करना चाहते हैं. जैसे ही ये खबर सामने आई तो चालबाज चीन के खेमे में खलबली मच गई. ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि आखिर ब्रह्मोस से क्यों घबराता है पाकिस्तान और चीन.


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भारत के इस बारूदी बवंडर को दुनिया ब्रह्मोस के नाम से जानती है. जिसकी ताकत देखकर चालबाज चीन घबराता है. तो पाकिस्तान को भी दौरे पड़ने लगते हैं. इस विनाशक वेपन को एशिया का एक और बड़ा मुल्क अपनी ताकत बनाना चाहता है. दरअसल इंडोनेशिया ने ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने की इच्छा जताई है. माना जा रहा है कि 26 जनवरी 2025 से पहल इंडोनेशिया के साथ ब्रह्मोस मिसाइल की डील लॉक हो सकती है.  


दरअसल इंडोनेशियाई राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आने वाले हैं. इस दौरान वो भारत के साथ कई समझौतों पर दस्तखत कर सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक उनकी विश लिस्ट में सबसे ऊपर है भारत की ब्रह्मोस मिसाइल. क्योंकि क्योंकि ये ऐसा हथियार है. जिसकी ताकत का कोई जवाब नहीं. जिसे सुखोई फाइटर जेट से दागा जाए तो इसकी रेंज का कोई हिसाब नहीं.


आवाज से तीन गुना तेज


- ब्रह्मोस मिसाइल...जल..थल और आकाश तीनों मोर्चों से लॉन्च की जा सकती है.
- इसकी स्पीड 2.8 से 3.0 मैक तक है..जिससे ये किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा दे सकती है.
- इस मिसाइल की 300 किलोमीटर दूर तक दुश्मन का भस्म कर सकती है.


इसकी स्पीड माक 2.8 तक हो चुकी है यानी ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना तेज़. अब इस मिसाइल की स्थिति यह है कि इसे सबमरीन, जहाज़, एयरक्राफ्ट और ज़मीनी जंगी बेड़ों से भी दागा जा सकता है.


इंडोनेशिया तीसरा देश होगा. जो ब्रह्मोस को अपने बारूदी तरकश का हिस्सा बनाना चाहता है. इससे पहले


- फिलीपींस को हाल ही में ब्रह्मोस मिसाइलों की पहली खेप सौंपी गई है.
- फिलीपींस को एंटी शिप ब्रह्मोस मिसाइल की सप्लाई भी कर दी गई है.
-  वियतनाम ने भी भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल की डील कर ली है.


ये वो मुल्क है. जो इस वक्त दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी झेल  रहे हैं. जिनके साथ लंबे वक्त से चीन की अदावत है. जबकि भारत के साथ इनके रिश्ते काफी अच्छे हैं. ऐसे में इन देशों को ब्रह्मोस मिलने से जहां चीन की अकड़ ढीली करने में मदद मिल सकती है. तो साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया में पावर बैलेंस करने में मदद मिल सकती है.


इंडोनेशिया के अलावा यूएई भी ब्रह्मोस को अपने जंगी बेड़े में शामिल करने का इच्छुक है. जिस हिसाब से इसकी विदेशी डिमांड बढ़ रही है उस हिसाब से ये अब एक अंतर्राष्ट्रीय मिसाइल बन चुकी है.