इस्लामाबाद: पाकिस्तान में शिक्षा के कारोबार का रूप लेने पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि निजी स्कूल धन कमाने का धंधा नहीं हैं. साथ ही न्यायालय ने सरकार को ऐसे शैक्षिक संस्थानों का नियंत्रण अपने हाथों में लेने का आदेश देते हुए निजी स्कूलों के राष्ट्रीयकरण के संकेत भी दिए. जियो टीवी की खबर के अनुसार, तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह टिप्पणी इस्लामाबाद के दो निजी स्कूलों के प्रशासन की ओर से शीर्ष न्यायाधीश को संबोधित करते हुए एक पत्र में तिरस्कारपूर्ण भाषा का उपयोग किए जाने संबंधी एक मामले की सुनवाई के दौरान की. इस पीठ में न्यायमूर्ति गुलजार अहमद, न्यायमूर्ति फैज़ल अरबाब और न्यायमूर्ति इजाजुल अहसन शामिल हैं.


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न्यायमूर्ति अहसन ने निजी स्कूल के प्राधिकारियों से कहा ‘‘आपने स्कूल की फीस बढ़ाने के संबंध में अदालत द्वारा दिए गए फैसले को निष्ठुर फैसला बताने की धृष्टता कैसे की. अभिभावकों को भेजे गए आपके पत्र अदालत की अवमानना हैं.’’ न्यायमूर्ति गुलजार ने कहा ‘‘आप किस तरह की बातें लिखते हैं ? हमें आपके स्कूलों को बंद कर देना चाहिए और यहां तक कि, उनका राष्ट्रीयकरण भी किया जा सकता है.


हम सरकार से आपके स्कूलों के प्रशासनिक मामलों से निपटने के लिए कह सकते हैं.’’ एक्सप्रेस न्यूज की खबर में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने निजी स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस में 20 फीसदी की कटौती करने का आदेश दिया था. पत्र इसी आदेश के संबंध में है. 13 दिसंबर 2018 का यह आदेश उन निजी स्कूलों के लिए था जो प्रति माह 5000 रूपये से अधिक फीस ले रहे हैं.


आदेश में इन निजी स्कूलों को नियामक की अनुमति के बिना फीस में सालाना अधिकतम 8 फीसदी की वृद्धि करने से भी रोका गया है.  इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने निजी स्कूलों के प्रशासनों को ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए ली गई फीस का आधा हिस्सा लौटाने या इस राशि को आगे समायोजित करने का आदेश भी दिया.


निजी स्कूलों की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि प्रशासन का इरादा अदालत का अनादर करने का नहीं था. ‘‘हम अदालत से माफी मांगते हैं.  ऐसा फिर दोबारा नहीं होगा.’’ न्यायमूर्ति गुलजार ने जवाब दिया ‘‘आप लिखित माफीनामा दे सकते हैं और हम उस पर विचार करेंगे. हम एक ऑडिट कराएंगे ताकि यह पता चल सके कि आपके पास काला धन है या सफेद धन है.’’


उन्होंने कहा ‘‘शिक्षा को कारोबार बना दिया गया है. स्कूल धन कमाने का उद्योग नहीं हैं.’’ न्यायमूर्ति गुलजार ने कहा ‘‘निजी स्कूलों के मालिकों की आंखों में रत्ती भर भी शर्म नहीं है.’’ इस पर निजी स्कूलों की ओर से पेश वकील ने कहा ‘‘हमारा इरादा अदालत का अपमान करने का नहीं था और हमने अदालत के आदेश को लागू किया है तथा फीस घटा दी है.’’


न्यायमूर्ति गुलजार ने हालांकि कहा ‘‘हम अदालत के आदेश के बाद की गई टिप्पणियों से अवगत हैं. हम निजी स्कूलों से क्यों नहीं निपटते और सरकार को उनका प्रभार लेने का आदेश क्यों नहीं देते .  स्कूल न तो उद्योग हैं और न ही धन कमाने का क्षेत्र हैं.’’ इसके बाद अदालत ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी. 


इनपुट भाषा से भी