नई दिल्ली: जन्म से लेकर मृत्यु के बाद होने वाले अंतिम संस्कार (Last Rituals) तक के लिए हर धर्म में अलग अलग मान्यताएं होती हैं. इस्लाम और ईसाई धर्म की मान्यताओं (Customs) में शवों को दफनाया जाता है तो हिंदू मान्यता के अनुसार उन्हें जलाया जाता है. लेकिन दुनिया में एक ऐसी भी जगह है, जहां शवों को सालों तक यूं ही एक झोपड़े में छोड़ दिया जाता है जब तक कि वो कंकाल नहीं बन जाते. कई देशों में अंतिम संस्कार के ऐसे-ऐसे तरीके हैं जिनके बारे में जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. आइये आपको जानकारी देते हैं कुछ देशों में होने वाली अंतिम संस्कार की परंपराओं के बारे में.
सबसे पहले बात करते हैं इंडोनेशिया के द्वीप बाली (Bali) की. यहां शवों को सालों तक सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. बाली के बंगली में बटूर लेक के पास एक गांव में लोगों ने शवों को इस तरह से बांस की झोपड़ियों में रखा जाता है. बाली में मृतक को जीवित की तरह माना जाता है. यहां मौत पर आंसू बहाने की मनाही है. BBC में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर हिंदुओं के सामूहिक शवदाह की परंपरा रही है.
बाली (Bali) में सामूहिक शवदाह एक आम बात है. यहां के गरीब परिवार इन परंपराओं को अकेले निर्वाह कर पाने में समर्थ नहीं होते. कई दिनों तक चलने वाली परंपराओं और रीति-रिवाजों के बाद बाली द्वीप में सामूहिक अंत्येष्टि की जाती है. कई बार इसमें 5 साल तक का वक्त लग जाता है. यहां शवों को जल्द ही दफनाने या दाह संस्कार करने के बजाए वो प्रकृति को अपना काम करने देते हैं.
तिब्बत के बौद्ध समुदाय में शव को गिद्धों को खिलाया जाता था. यहां यह परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है, जिसे नियिंगमा परंपरा (स्काई बुरियल) कहा जाता है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि मृत व्यक्ति के शव को अगर गिद्ध खाएं तो उनकी उड़ान के साथ उस व्यक्ति की आत्मा भी स्वर्ग में पहुंच जाती है. हालांकि ये काफी हद तक भौतिक स्थितियों पर भी निर्भर करता है अब उतने गिद्ध भी नहीं बचे हैं. अब वे शव को उनके पहले से नियुक्त कब्रिस्तान में रख देते हैं, जहां पर सौर ऊर्जा की विशालकाय प्लेटें लगी हैं जिसके तेज से शव धीरे-धीरे जलकर भस्म हो जाता है.
वियतनाम में कई जगहों पर यह परंपरा है कि इंसान की मौत के बाद उसका बड़ा बेटा या बेटी उसके सारे कपड़े उतारता है और उन्हें हवा में लहराता है. इसके बाद मृतक की आत्मा को पुकारा जाता है, ताकि वो फिर से मृतक के शरीर में प्रवेश कर सके.
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इजरायल और इराक की सभ्यता में पहले लोग अपने मृतकों को शहर के बाहर बनाई गई एक गुफा में रख छोड़ते थे जिसे बाहर से पत्थर से बंद कर दिया जाता था. मान्यता है कि ईसा मसीह को जब सूली पर से उतारा गया तो उन्हें मृत समझकर उनका शव गुफा में रख दिया गया था. प्रारंभिक यहूदियों और उस दौर के अन्य कबीलों में मृतकों को गुफा में रखे जाने का प्रचलन शुरू हुआ.
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दक्षिणी मैक्सिको के मायन में अधिकतर वर्गों में मृत व्यक्ति को घर में ही दफन करने की परंपरा है. ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि इस तरह से उनका प्रिय उनके करीब ही रहता है. हालांकि इसकी एक वजह गरीबी भी बताई जाती है. चूंकि उनके पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि वो मृतक का अंतिम संस्कार कर सकें, इसलिए वो घर में ही गड्ढा खोदकर मृतक को दफना देते हैं.
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चीन (China) एक खूबसूरत देश है जो अपनी नदियों और खूबसूरत वादियों के साथ हजारों साल पहले शवों को ताबूतों में लटकाने के लिए भी जाना जाता रहा है. जहां पहले इंसान की मौत के बाद उनके शव को ताबूत में रखकर ऊंचे चट्टानों पर लटका दिया जाता है. ऐसा करने के पीछे मान्यता ये थी कि इससे मृतक की आत्मा सीधे स्वर्ग में पहुंच जाती है.
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बदलते दौर में अंतिम संस्कार करने के तरीके बदल गए हैं. पहले कहीं शवों को गुफा में रखा जाता था, कहीं लटकाया जाता है और कहीं गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता था. यह काफी हद तक भौतिक स्थिति पर भी निर्भर करता है. South China Morning Post में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक कुछ साल पहले यहां 131 एनिशिएंट हैंगिग कॉफिंस मिले थे. थ्री जॉर्ज डैम के पास इन शवों का अंतिम संस्कार किया गया था.
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नोट: ( इस लेख की जानकारी सामान्य और प्रचिलित मान्यताओं और विदेशी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट्स पर आधारित है. ज़ी न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता है. )
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