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ब्रिस्टल (ब्रिटेन): हममें से ज्यादातर लोगों को पिछले 12 महीनों के दौरान एक अच्छी सी मुस्कुराहट और खुलकर ठहाके लगाने की जरूरत महसूस होती रही. यही वजह है कि पहले लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान OTT प्लेटफॉर्म पर हॉरर मूवी सर्च करने वालों की संख्या में गिरावट आई और अब ज्यादातर लोग स्टैंड-अप कॉमेडी से जुड़े कार्यक्रम सर्च कर रहे हैं. यानी इस संकट के दौर में कोरोना के डर के आगे लोगों को हंसी 'जीत' रही है. महामारी के इस दौर में लोगों के व्यवहार में आए परिवर्तन और हंसी-मजाक के महत्व पर ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की लूसी रेफील्ड की स्डटी जीने का तरीका बताती है.
सोशल मीडिया की दुनिया में, वायरस से जुड़ी बातों का मजाक उड़ाने वाले अकाउंट को भी बहुत लोगों ने फॉलो किया है जैसे क्वेंटिन क्वारेंटिनो और रेडिट थ्रेड कोरोना आदि. कोरोना वायरस मीम्स जैसे अकाउंट की लोकप्रियता पिछले एक साल में बढ़ी है. हमने जूम मीटिंग्स, हाथ धोने के गाने और घर में ही बाल काटने को लेकर मजाक करने में काफी समय बिताया है. लेकिन ऐसा क्या है कि हम एक पल में मरने वालों की बढ़ती संख्या के बारे में जानकर घबरा जाते हैं और दूसरे ही पल दोस्त द्वारा भेजा वीडियो देखकर हंसने लगते हैं, यह परिवर्तन कैसे होता है?
कोरोना काल में लोगों के व्यवहार में हुए परिवर्तन पर स्टडी करने वाली ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की लूसी रेफील्ड कहती हैं, अपने करियर का अधिकांश समय हंसी और हास्य की स्टडी करने में बिताने वाले एक विद्वान के रूप में, मुझे अक्सर हास्य से जुड़े आश्चर्यजनक पहलू देखने को मिलते हैं. मैंने 16वीं सदी के फ्रांस में Italian Comedy और इसकी स्वीकार्यता, धर्म के युद्धों में हंसी के राजनीतिक परिणाम और आज के हास्य के मुख्य सिद्धांतों के ऐतिहासिक पूर्व अनुभवों का अध्ययन किया है. लूसी के मुताबिक ज्यादातर रिसर्च से मजेदार बातों का खुलासा होता है कि कैसे कठिनाई के समय में हास्य हमें लुभाता है.
महामारी के इस दौर ने वास्तव में उन भूमिकाओं को बढ़ा दिया है जो कॉमेडी निभा सकती है और यही वजह है कि हास्य पर हमारी निर्भरता बढ़ गई. प्राचीन रोम में आपदा के समय हंसने की हमारी जरूरत कोई नई बात नहीं है. प्राचीन रोम में, ग्लैडिएटर अपनी मृत्यु के लिए जाने से पहले बैरक की दीवारों पर Humorous graffiti (विनोदी भित्ति चित्र) छोड़ देते थे. प्राचीन यूनानियों ने भी घातक बीमारी पर हंसने के नए तरीके खोजे और 1348 में ब्लैक डेथ महामारी के दौरान, इटली के गियोवन्नी बोकाशियो ने डेकैमेरोन लिखा, जो मजेदार कहानियों का एक संग्रह है.
हास्य के साथ उपहास से बचने की आवश्यकता भी उतनी ही पुरानी है. 335 ईसा पूर्व में, अरस्तू ने किसी भी दर्दनाक या विनाशकारी चीज पर हंसने के खिलाफ सलाह दी थी. रोमन शिक्षक क्विंटिलियन ने भी हंसी और उपहास के बीच बहुत महीन लकीर की बात कही थी. इसे अभी भी आम तौर पर एक सामान्य स्थिति के रूप में स्वीकार किया जाता है कि हास्य से किसी को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए, विशेष रूप से तब जब हंसने की वजहें पहले से ही कमजोर हों. जब हंसी और उपहास के बीच की सीमा का सम्मान किया जाता है, तो हास्य हमें आपदा से उबरने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. यह ऐसे फायदे देता है जो गंभीर परिस्थितियों में हास्य की तलाश करने की हमारी प्रवृत्ति की व्याख्या करते हैं, विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक सेहत को ठीक रखने की हमारी भावना को बढ़ाने के संदर्भ में.
हंसी एक एक्सरसाइज के रूप में काम करती है (सौ बार हंसने से उतनी ही कैलोरी नष्ट होती हैं, जितनी 15 मिनट एक्सरसाइज बाइक चलाने से नष्ट होती है), हंसी हमारी मांसपेशियों को आराम देने और ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने में मदद करती है. एक्सरसाइज और हंसी का कन्फिगरेशन - जैसे कि तेजी से लोकप्रिय हो रहा ‘लाफ्टर योग’ - डिप्रेशन के रोगियों को भी महत्वपूर्ण लाभ प्रदान कर सकता है. हंसी तनाव हार्मोन को भी कम करती है और एंडोर्फिन को बढ़ाती है. कठिन समय में, जब हमारे पास एक दिन में हजारों विचार होते हैं, तो हंसी-मजाक हमारे दिमाग को वह राहत प्रदान करता है जिसकी हमें सख्त जरूरत होती है. ठीक उसी तरह, हम संकट में हास्य तलाश करते हैं क्योंकि एक ही समय में डर और खुशी महसूस करना मुश्किल होता है. अक्सर, इन भावनाओं के कन्फिगरेशन से हमें रोमांच महसूस होता है खौफ नहीं.
सिगमंड फ्रायड ने 1905 में ‘राहत सिद्धांत' को संशोधित करते हुए इसकी खोज की, यह सुझाव देते हुए कहा कि हंसी अच्छी लगती है क्योंकि यह हमारे एनर्जी सिस्टम को शुद्ध करती है. अब बात करते हैं पिछले वर्ष की सर्दियों की, जब लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान अकेलेपन का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया (नवंबर में, ब्रिटेन में हर चार युवा में से एक ने अकेलापन महसूस करने की सूचना दी), हंसी भी लोगों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण रही है. यह न केवल आम तौर पर एक सामूहिक एक्सरसाइज है - कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे पूर्वज जब बोल नहीं पाते थे तब भी समूहों में हंसते थे - यह जम्हाई लेने से भी अधिक संक्रामक है. यह देखते हुए कि अमूमन हम उन विषयों पर हंसते हैं, जो खुद से जुड़े लगते हैं, हास्य ने लोगों को लॉकडाउन के दौरान एक दूसरे को पहचानने में मदद की. यह बदले में जुड़ाव और एकजुटता की भावना पैदा करता है, जिससे हमारी अलगाव की भावना कम हो जाती है.
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साहित्यिक विद्वान और लेखक जीना बैरेका का कहना है कि ‘छुए बिना आप किसी के जितने करीब आ सकते हैं, मिलकर हंसना आपको उतने करीब ले आता है.’ हंसी हमारी चिंताओं को कम करने का एक साधन भी हो सकती है. एक डर के बारे में मजाक करना, विशेष रूप से एक महामारी के दौरान, हमें बेहतर तरीके से इसका मुकाबला करने के लायक बना देता है. हम हंसते हैं क्योंकि हम खुद को उस वायरस से श्रेष्ठ, निर्भय और कंट्रोलर मानते हैं. इस तरह किसी वायरस के बारे में मजाक करने से उस पर हमारी शक्ति का भाव बढ़ जाता है और चिंता दूर हो जाती है.
मजाक भी उपयोगी हो सकता है क्योंकि यह हमें हमारी समस्याओं के बारे में बात करने और अपने डर को व्यक्त करने में सक्षम बनाता है जो शब्दों में बयां करना मुश्किल हो सकता है. हालांकि हम में से कई लोगों ने महामारी में हास्य की तलाश के लिए एक अपराधबोध का अनुभव भी किया है, लेकिन हमें इसे अपनी चिंताओं में शामिल नहीं करना है. निश्चित रूप से हमारी स्थिति हमेशा हंसी का विषय नहीं हो सकती. लेकिन हंसी अपने आप में मायने रखती है, और जब इसका उचित उपयोग किया जाता है, तो यह संकट के दौरान हमारे सबसे प्रभावी प्रतिरक्षा तंत्रों में से एक हो सकती है, जिससे हम दूसरों के साथ, खुद के साथ और यहां तक कि हमारे कंट्रोल से बाहर की घटनाओं के साथ एक स्वस्थ संतुलन स्थापित कर सकते हैं.
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