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काबुल: अफगानिस्तान की राजधानी काबुल (Kabul) पर कब्जा करने के बाद तालिबान के नेताओं ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस (Taliban Press Conference) की, जिसमें कही गई बातों से ये साफ होता है कि तालिबान अपने देश को इस्लामिक कानूनों के मुताबिक ही चलाएगा और देर सवेर अफगानिस्तान के लोगों को शरिया कानून मानने ही पड़ेंगे. तालिबान (Taliban) ने कहा है कि उसके शासन में दुनिया के किसी भी देश के खिलाफ अफगानिस्तान (Afghanistan) की जमीन का इस्तेमाल नहीं होगा.
तालिबान के नेताओं ने कहा, 'महिलाओं के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, लेकिन उन्हें जो भी अधिकार दिए जाएंगे, वो इस्लाम के मुताबिक होंगे. महिलाओं को स्वास्थ्य और दूसरे क्षेत्रों में काम करने की इजाजत दी जाएगी, जहां उनकी जरूरत है. अब सवाल ये है कि तालिबान ये फैसला किस आधार पर करेगा. ये कैसे तय होगा कि महिलाओं की मीडिया में तो जरूरत है, लेकिन दूसरे क्षेत्रों में नहीं? तालिबान ने दुनिया से ये भी कहा है कि उसे अपने कानून बनाने का अधिकार है और दूसरे देशों को इसका सम्मान करना चाहिए. प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये भी दावा किया गया कि अफगानिस्तान में लोग पूरी तरह सुरक्षित हैं. इसके साथ ही तालिबान ने काबुल में हिंसक घटनाओं और अफरातफरी की जिम्मेदार भी स्थानीय लोगों पर ही डाल दी है.
इस बीच एक 20 सेकेंड का वीडियो सामने आया है, जिसमें सड़क पर दो लोग हाथ ऊपर करके बैठे हैं. उनके अगल-बगल हथियारों से लैस तालिबान के आतंकवादी खड़े हैं, वहीं एक आतंकवादी रॉकेट लॉन्चर से लैस है. वह जमीन पर डरे सहमे बैठे लोगों को रॉकेट लॉन्चर से निशाना बनाकर और ज्यादा डराने की कोशिश कर रहा है. रॉकेट लॉन्चर वाले इस आतंकवादी के ठीक पीछे खड़े दूसरे आतंकवादी ने निर्दोष अफगानियों पर एके-47 तान दी. वहीं पास के घर के ऊपर तीन आतंकवादी खड़े हैं और सबके सब हथियारों से लैस हैं.
नीचे सड़क पर दूसरी ओर भीड़ जमा है, लेकिन किसी में हिम्मत नहीं जो तालिबानी आतंकवादियों का विरोध कर सके. काबुल का ये खौफनाक वीडियो उस समय का है, जब तालिबानी आतंकी शहर में तालिबान का राज कायम कर रहे थे और उन्होंने कुछ लोगों को हिरासत में लेने के लिए उनपर रॉकेट लॉन्चर और एके-47 तान दी थी. इससे यह साफ हो गया है कि अफगानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान ने मंगलवार को पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अफगानियों की सुरक्षा का जो वादा किया था, वो कितना दिखावटी था.
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तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस (Taliban Press Conference) में कहा कि महिलाओं से कोई भेदभाव नहीं होगा और वो शरिया के मुताबिक महिलाओं को काम करने की आजादी देगा, लेकिन 20 साल पहले का सच ये है कि पिछली बार तालिबान ने शरिया कानूनों को सख्ती से लागू करते हुए लड़कियों के स्कूल जाकर पढ़ने पर पाबंदी लगा दी थी. महिलाओं को अकेले घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी और बुर्का नहीं पहनने पर महिलाओं को कोड़े मारे जाते थे. महिलाओं को गाड़ी चलाने की परमीशन नहीं थी और दफ्तर जाकर काम करने की इजाजत भी नहीं थी.
इन बातों से पता चलता है कि तालिबान (Taliban) की कथनी और करनी में कितना फर्क है. ऐसे में अगर तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ये कहते हैं कि वो किसी भी अंतरराष्ट्रीय दूतावास या संस्था को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. तालिबान के शासन में दुनिया के किसी भी देश के खिलाफ अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं होगा तो उनकी इन बातों पर यकीन करना मुश्किल है.
तालिबान (Taliban) ने कहा कि उसकी किसी से दुश्मनी नहीं है और अपने नेता के आदेश पर उसने सभी को माफ कर दिया. तालिबान चाहता है कि उसकी सरकार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से मान्यता मिले, लेकिन तालिबान ये सबकुछ अफगानिस्तान में आतंक का राज कायम करने के लिए ही कह रहा है और इसीलिए उसके हर एक भरोसे पर सच्चाई कम चालाकी ज्यादा दिखती है. तालिबान ये ड्रामा इस एक शख्स के इशारे पर ही रच रहा है, जिसका नाम मुल्ला अब्दुल गनी बरादर है. वह तालिबान का टॉप कमांडर है, जिसने 20 साल बाद अफगानिस्तान में कदम रखा और कंधार पहुंचकर आगे की खतरनाक रणनीति भी बनाई.
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