UNHRC में श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर हुई वोटिंग, भारत ने बनाई दूरी; PAK ने दिया साथ
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UNHRC में श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर हुई वोटिंग, भारत ने बनाई दूरी; PAK ने दिया साथ

 श्रीलंका के खिलाफ इस प्रस्ताव को कुल 47 सदस्य देशों में से 22 का समर्थन मिला. जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है. ये श्रीलंका के लिए यह एक बड़ा झटका है.  

श्रीलंका के पीएम महिंद्रा राजपक्षे

जिनेवा: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर मंगलवार को वोटिंग हुई जिसमें भारत ने हिस्सा नहीं लिया. श्रीलंका के खिलाफ इस प्रस्ताव को कुल 47 सदस्य देशों में से 22 का समर्थन मिला. जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है. ये श्रीलंका के लिए यह एक बड़ा झटका है.  

UNHRC ने ‘प्रमोशन ऑफ रीकंसिलिएशन अकाउंटेबिलिटी एंड ह्यूमन राइट्स इन श्रीलंका’ शीर्षक वाला प्रस्ताव पारित किया. प्रस्ताव के समर्थन में 47 में से 22 सदस्यों ने मतदान किया जबकि ग्यारह सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया. भारत समेत 14 देशों ने इस वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. श्रीलंका ने मसौदा प्रस्ताव को ‘अवांछित, अनुचित और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रासंगिक अनुच्छेदों का उल्लंघन बताया.’

पाकिस्तान-चीन ने दिया साथ

बता दें कि चीन, पाकिस्तान और रूस ने श्रीलंका के पक्ष में मतदान किया है. जानकारों की मानें तो भारत के इस फैसले को लेकर विपरीत स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. 

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इस बीच भारत ने श्रीलंका सरकार से सुलह की कुछ प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का आग्रह किया है. भारत ने कहा है कि सरकार तमिल समुदाय की आकांक्षाओं का समाधान करे और यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ बातचीत करे. ताकि उसके सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों का पूरी तरह से संरक्षण हो.

पहले भी 3 बार श्रीलंका के खिलाफ पारित हुए प्रस्ताव

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निकाय में श्रीलंका के खिलाफ इससे पहले भी तीन बार प्रस्ताव पारित हुए हैं, जब गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई और वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे 2012 और 2014 के बीच देश के राष्ट्रपति थे.

गोटबाया राजपक्षे सरकार पूर्ववर्ती सरकार द्वारा पहले पेश किए गए प्रस्ताव के सह-प्रायोजन से आधिकारिक रूप से अलग हो गई थी. उसमें मई 2009 में समाप्त हुए लगभग तीन दशक लंबे गृहयुद्ध के अंतिम चरण के दौरान सरकारी सैनिकों और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे), दोनों के कथित युद्ध अपराधों की अंतरराष्ट्रीय जांच का आह्वान किया गया था.

इन देशों का मिला समर्थन 

श्रीलंका को चीन, रूस और पाकिस्तान सहित कई मुस्लिम देशों से समर्थन का आश्वासन दिया गया था. प्रस्ताव पर मतदान से पहले राष्ट्रपति गोटबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने विश्व मुस्लिम नेताओं को फोन किए थे.

प्रस्ताव में क्या है? 

प्रस्ताव में ‘(श्रीलंका) सरकार से आह्ववान किया गया है कि यदि जरूरत हो तो वह युद्ध के दौरान कथित मानवाधिकारों के उल्लंघनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के गंभीर उल्लंघनों से संबंधित सभी कथित अपराधों की पूरी तरह से और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करे और मुकदमा चलाए.’

प्रस्ताव जिनेवा में UNHRC के 46 वें सत्र में श्रीलंका पर कोर समूह ने पेश किया, जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, मलावी, मोंटेनेग्रो और नॉर्थ मकदूनिया शामिल हैं.

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