Hiroo Onoda Real Hero: कहा जाता है कि युद्ध (War) के मैदान में हथियार और रणनीति के अलावा जंग जीतने का रास्ता साहस के दम पर तय होता है. यहां कहानी इतिहास के एक ऐसे फौजी की जो अपने देश की हार और जंग खत्म होने के बावजूद 29 साल तक मोर्चे पर डटा रहा और दुश्मनों पर हमले करता रहा. उस जमाने में न तो स्मार्टफोन थे और न संचार के पुख्ता साधन फिर भी ये जाबांज अपनी हिम्मत के बलबूते जिंदादिली की मिसाल बन गया. दुनिया की इस अनोखी और अनसुनी वार स्टोरी के अनूठे नायक थे हीरो ओनीडा (Hiroo Onoda), जिनका नाम आज भी बड़े सम्मान से लिया जाता है.


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दूसरे विश्व युद्ध की अनसुनी कहानी


दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के दौरान जापान (Japan) के इस कमांडर ने इस बात को साबित कर दिखाया. 26 दिसंबर 1944 को जापान की इम्पीरियल आर्मी के सेकेंड लेफ्टिनेंट हीरू ओनीडा को फिलीपींस के समुद्री इलाके लुबांग के एक छोटे से द्वीप पर भेजा गया. उन्हें आदेश मिला था कि अमेरिकी फौज को फौज को हर हाल में रोकना है. अमेरिकी सेना ने बस दो महीने के भीतर फरवरी 1945 में लुबांग द्वीप पर कब्जा कर लिया. इस लड़ाई में कई जापानी सैनिक मारे गए तो कुछ ने सरेंडर कर दिया. पर मुश्किल हालातों के बावजूद सेकेंड लेफ्टिनेंट हीरू ओनीडा और उनके तीन साथी किसी तरह जंगल में छिपे रह गए. उन्होंने वहीं से अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ गुरिल्ला जंग छेड़ दी.


इस तरह काटे 29 साल


वो उनकी सप्लाई लाइन पर हमला करते, खाने पीने का सामान और हथियार लूटकर वहां से निकल जाते थे. फिर समय समय पर वो रास्ता भूले सैनिकों और सैन्य टुकड़ियों पर हमला करते, और जितना हो सकता अमेरिकी फौज के मूवमेंट को बाधित करते. उसी साल अगस्त 1945 में अमेरिका ने गुस्से में आकर जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम से हमला किया तो जापान को सरेंडर करना पड़ा. इस तरह से दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने का ऐलान हो गया. इन हमलों को रोकने के लिए अमेरिका ने फिलीपींस के जंगलों में हजारों पर्चियां गिराईं, जिसमें लिखा था कि युद्ध खत्म हो चुका है और अब आपको अपने देश लौट जाना चाहिए. हीरू ओनीडा की नजर भी इन पर्चियों पर पड़ी लेकिन पहले उन्हें लगा कि पर्चियां झूठी हैं और गुरिल्ला लड़ाकों को जंगल से बाहर निकालने की अमेरिकी फौज की चाल है इसलिए उन्होंने लड़ाई जारी रखी.


भविष्य में लुबांग की आम जनता भी अपने रोजमर्रा के काम में लग गई पर हीरू ओनीडा की टीम जंग के मोड में बनी रही और रास्ते में जो भी मिला उसपर हमला करती रही. इससे तंग आकर फिलीपींस की सरकार ने नई पर्चियां छपवाकर उन्हें जंगल में गिरवाया. जिसमें लिखवाया गया कि काफी समय हो गया है, बाहर आओ, युद्ध खत्म हो गया है, जापान हार गया है'. हीरू ओनीडा ने इस बार भी पर्चियों पर यकीन नहीं किया और लड़ते रहे.


कहावत का रखा मान


एक कहावत है कि फौजी मरने से पहले कभी हथियार नहीं डालता. उसका मान हीरू ने बखूबी रखा. युद्ध समाप्ति के करीब सात साल बाद 1952 में, जापान ने अपने गुमशुदा सिपाहियों के परिवार की तस्वीर और उन्हीं का सन्देश छापकर बंटवाई गई. इसके साथ ही उसमें सम्राट की तरफ से एक निजी सन्देश भी था. एक बार फिर, हीरू ओनीडा ने उस सूचना को सच मानने से इनकार कर दिया. 1959 तक, हीरू ओनीडा के एक आदमी ने समर्पण कर दिया और दूसरा मारा गया. उनका आखिरी साथी कोजुका स्थानीय पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया. ये लोग विश्वयुद्ध खत्म होने के 25 साल बाद भी जंग जारी रखे हुए थे.


कैसे हुई घर वापसी?


जंग हारने के 25 साल बाद भी जापान के लिए लड़ रहे अपने सैनिकों में लोगों को अपना असली नायक दिखा तो लोगों में उम्मीद जगी कि हीरू ओनीडा अभी भी मैदान में डटा होगा. जापानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके कुछ समय बाद जापान के नोरिओ सुजुकी ने फिलीपींस के जंगलों में खोजी अभियान चलाकर हीरू ओनीडा का पता लगा लिया.


उसने हीरू को जापान के युद्ध की सच्चाई और जापान के लोगों की राय बताई उसने लड़ाई रोकने से इनकार कर दिया. फिर जापान से उसके जिस कमांडर ने उसे आदेश देकर युद्ध में भेजा था उस रिटायर्ड अफसर को जापान ने फिलीपींस के जंगल में भेजा. उसके आदेश के बाद हीरू ओनीडा ने फिलीपींस के सामने सरेंडर किया. फिलीपींस की सरकार ने वॉर रूल के तहत उसे माफी दे दी और जापान वापस जाने दिया.