जानें क्या है प्रदोष व्रत? इस नियम और विधि करें पूजा सफल होगी आराधना

प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 13, 2022, 07:44 AM IST
  • त्रयोदशी के व्रत को कहा जाता है प्रदोष व्रत
  • इस व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है
जानें क्या है प्रदोष व्रत? इस नियम और विधि करें पूजा सफल होगी आराधना

नई दिल्ली: प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को त्रयोदशी मनाते है. प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है. हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व दी गयी है. ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर व्यक्ति को मनचाहे वस्तु की प्राप्ति होती है.

वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है. शास्त्रों के अनुसार महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है.

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रदोष के समय कैलाश पर्वत स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं. इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं. इस व्रत को करने से सारे कष्ट और हर प्रकार के दोष मिट जाते हैं. कलयुग में प्रदोष व्रत को करना बहुत मंगलकारी होता है और शिव कृपा प्रदान करता है.

प्रदोष व्रत की विधि
शाम का समय प्रदोष व्रत पूजन समय के लिए अच्छा माना जाता है क्यूंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र का जाप करते हैं.

प्रदोष व्रत के नियम और विधि
-  प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं.
- स्नान आदि करने के बाद आप साफ़ वस्त्र पहन लें.
- उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें.
-  इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है.
- पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें.
- आप स्वच्छ जल या गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें.
-  अब आप गाय का गोबर ले और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें.
- पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें.
-  पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं.
- भगवान शिव के मंत्र ऊँ नमरू शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं.

धार्मिक दृष्टिकोण से आप जिस दिन भी प्रदोष व्रत रखना चाहते हों, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस वर के लिए निर्धारित कथा पढ़ें और सुनें.

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