नई दिल्ली. देवभूमि उत्तराखंड दुनियाभर में प्राक्रितिक खूबसूरती और तीर्थ स्थानों के लिए जाना जाता है. यहां की सुंदरता और तीर्थस्थान हमेशा से ही पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं. उत्तराखंड के तीर्थस्थानों से जुड़ी देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं दुनियाभर में प्रचलित हैं. उत्तराखंड में स्थित महासू देवता तीर्थ स्थान भी उत्तराखंड के ऐसे तीर्थ स्थानों में से एक है.
महासू देवता तीर्थ स्थान
महासू देवता का मुख्य मंदिर देहरादून के जौनसार बावर के ग्राम हनोल में स्थित है. इस मंदिर में काफी रहस्य छिपे है. जिसे जानने और देखने के लिए लाखों की संख्या में हर साल यहां लोग पहुंचते है. महासू देवता मंदिर भगवान शिवजी के अवतार 'महासू देवता' का है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द 'महाशिव' होता है. दरअसल महासू देवता को न्यायाधीश - न्याय का देवता कहा जाता है और इस मंदिर को न्यायालय के रूप में पूजा जाता है. आज भी महासू देवता के उपासक मंदिर में न्याय की गुहार और अपनी समस्याओं का समाधान मांगते नजर आते हैं.
मंदिर की अनोखी मान्यता
इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि यहां अगर आप सच्चे दिल से कुछ मांगो तो आपको मिल जाता है. जैसे - अगर आप की कोर्ट कचहरी का मामला है और आपको न्याय नहीं मिल पाता, तो आप श्रद्धा भक्ति से हनोल मंदिर में 1 रुपये चढ़ाकर न्याय मांगते हैं तो आपको न्यायप्रिय फैसला अवश्य मिलेगा.
मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार किरमिक नामक राक्षस के आतंक से क्षेत्र वासियों को छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभट्ट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की पूजा तपस्या की. भगवान शिव-शक्ति के प्रसन्न होने पर हनोल में चार भाइयो की उत्पत्ति हुई और महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्रीय जनता को इस राक्षस के आतंक से मुक्ति दिलाई तभी से लोगो ने महासू देवता को अपना कुल आराध्य देव माना और पूजा अर्चना शुरू कर दी और तभी से महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के ईष्ट देव हैं.
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है.वर्तमान में महासू देवता के भक्त मंदिर में न्याय की गुहार करते है जोकि पूरी भी होती है.
महासू देवता मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि महासू देवता ने किसी शर्त पर हनोल में स्थित यह मंदिर जीता था. वही इनकी पालकी को लोग पूजा अर्चना के लिए नियमित अंतराल पर एक जगह से दूसरी जगह प्रवास पर ले जाते हैं. तो वहीं महासू देवता के मंदिर के गर्भ गृह में भक्तों का जाना मना है. केवल मंदिर का पुजारी ही पूजा के समय मंदिर में प्रवेश कर सकता है.
यह बात आज भी रहस्य है कि आखिर कैसे इस मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है. महासू देवता मंदिर के गर्भ गृह से पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है आज तक इसके बारे में कोई पता नहीं लगा पाया है. श्रद्धालुओं को यही जल प्रसाद के रूप में दिया जाता है.
हर साल राष्ट्रपति भवन से आता है नमक
बताया जाता है कि पांडव द्वापर युग में पांडव लाक्षागृह (लाख के घर) से सुरक्षित निकलकर इसी स्थान पर आए थे. उत्तराखंड के इस पवित्र मंदिर में हर साल राष्ट्रपति भवन से नमक भी भेजा जाता है.
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