नई दिल्लीः तमिलनाडु, भारत के दक्षिणी छोर का राज्य. इसका भी समुद्र से लगता सबसे आखिरी सिरा कन्याकुमारी. माता पार्वती के साथ-साथ उनके दोनों पुत्रों गणेश (Lord Ganesha) laऔर कार्तिकेय की भी यहां बहुत मान्यता है. श्रीगणेश  के तो कई अवतार और कई स्वरूप भारत के मंदिरों में देखने को मिल जाएंगे.


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ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है थानुमलायन मंदिर. त्रिदेवों (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) को समर्पित इस विशेष मंदिर के प्रांगण में 33 अलग-अलग मंदिर हैं. कहते हैं कि यह 33 कोटि देवताओं के प्रतीक हैं. लेकिन 33 कोटि क्या है, इस पर विद्वान एक मत नहीं हैं. 


कई मंदिरों के बीच आकर्षित करता है विशेष मंदिर
मंदिरों की इन्हीं शृंखलाओं के बीच में एक मंदिर ऐसा है जहां पहुंचते ही श्रद्धालु अनायास ही ठहर जाते हैं. एक प्रतिमा जो सुखासन (पालथी मार कर बैठी अवस्था) में है. पतला कोमल सा लगता शरीर, चार हाथ जो दिव्य आभूषणों और शस्त्रों से सजे हैं. ऊपरी बायें हाथ में कुल्हाड़ी और निचले बाएं हाथ में शंख.



एक हाथ आशीष की मुद्रा में और एक हाथ में कोई पुष्प. इस तरह देखते हुए आप जब प्रतिमा के चेहरे को देखेंगे तो शायद चौंक पड़ेंगें. यह तो प्रथम पूज्य गणेश (Lord Ganesha हैं. पूरी संभावना है कि पहली बार में आपके मुंह से यही निकले. लेकिन नहीं, बस थोड़ा सा ठीक कर लीजिए. यह श्रीगणेश (Lord Ganesha का स्त्री स्वरूप विनायकी है. 



मादा हाथियों के समूह का नेतृत्व करने वाली देवी, विनायकी, विघ्नेश्वरी, गणेश्वरी या फिर गनेशी. गणेश (Lord Ganesha) के स्त्री स्वरूप नामों की जो कल्पना की जा सकती है, देवी के वही नाम हैं. इस नाम का जिक्र पुराणों में तो मिलता है, लेकिन लोक शैली में अधिक प्रसिद्धि शायद ही मिली है. 


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1300 साल पुराना है मंदिर
1300 साल पुराने इस मंदिर में श्रीगणेश (Lord Ganesha) के देखे जाने वाले इस स्वरूप का वर्णन शिवमहापुराण की एक कथा में आसानी से मिल जाता है. महादेव शिव की ही कृपा से उत्पन्न एक असुर अंधक ने कैलाश पर गलत नीयत के साथ चढ़ाई की. उसने देवी पार्वती को देखा और उन्हें जबरन पत्नी बनाने की कोशिश करने लगा.



महादेव शिव ने कई बार उसे रोका और समझाया लेकिन वह शिव पर ही आक्रमण करने के लिए बढ़ा. तब शिव ने अपने त्रिशूल से स पर प्रहार किया. त्रिशूल के प्रहार करते ही रक्त की एक धार फूट पड़ी और जहां-जहां उसकी बूंदें गिरीं हर जगह एक नई आसुरी शक्ति अंधका उत्पन्न हो गईं. 


विनायकी देवी की पौराणिक कथा
इस आसुरी ताकत ने कैलाश को घेर लिया और शिव परिवार पर आक्रमण किया. देवी पार्वती को तब समझ में आया कि हर प्राणी में उसकी अवस्था के विपरीत एक ताकत है. यानी कि हर पुरुष में पौरुष (बल) के अलावा एक स्त्री की शक्ति भी है, जो करुणा और क्रोध दोनों जगाती है. अंधक ने इसे ही सिद्ध किया है और इसका दुरुपयोग कर रहा है.



तब उन्होंने हर देवता की स्त्री शक्ति को पुकारा. विष्णु की योगमाया, ब्रह्मा की ब्राह्मी, शिव की शिवानी और वीर भद्र की भद्रकाली प्रकट हुईं. खुद देवी दुर्गा की दसों महाविद्याएं भी रण में आ गईं. इन सभी ने मिलकर अंधकाओं को मार गिराया, लेकिन अंधक का रक्त बहना जारी था. 


ऐसे हुई देवी विनायकी की उत्पत्ति
तब पार्वती ने श्रीगणेश (Lord Ganesha) की ओर देखा. मर्यादा में बंधे श्रीगणेश (Lord Ganesha) एक तरह से स्त्री युद्ध में शामिल नहीं हो सकते थे. तब उन्होंने अपने स्वरूप का स्त्री अवतार धारण किया.



गज का सिर और स्त्री का शरीर. इसे गजानिनि कहा गया. गजानिनी ने अपने सूंड़ से अंधक का सारा रक्त एक बार में खींच लिया और उसे जमीन पर गिरने ही नहीं दिया. इस तरह अंधक का अंत हुआ.



थानुमलायन मंदिर में गणपति का यही रक्षात्मक स्वरूप विराजित है जो यह भी स्थापित करता है कि स्त्री की शक्ति भी प्रकृति में पुरुष की शक्ति के बराबर ही मान्य है. 


देवी विनायकी और तमिलनाडु की संस्कृति
वह सिर्फ भोगने वाली देह नहीं है, बल्कि पालन-पोषण करने वाली मां भी है और आपत्ति आने पर रक्षिका भी है. खैर, तमिलनाडु से बेहतर यह बात कौन समझेगा जो कि हर स्त्री को अम्मा कहकर पुकारता है. वहां सीएम पद पर काबिज रहीं जयललिता इसी नाम से पुकारी गईं.



अभी हाल ही में कंगना रनौत (Kangana) की फिल्म थलाइवी का ट्रेलर आया है, जिसमें उनका किरदार कहते दिखता है, मुझे मां समझोगे तो दिल में जगह मिलेगी, सिर्फ औरत समझोगे तो... थानुमलायन मंदिर विनायक के स्त्री अवतार विनायकी के जरिए रूढ़ीवादी पुरुष समाज को सदियों से कुछ ऐसा ही संदेश दे रहा है. 


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