नई दिल्ली: सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. साल में 24 एकादशी होती है लेकिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व होता है. इस एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं. माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है. घर-परिवार में चल रहे कलह-कलेश दूर हो जाते हैं. एकादशी के बारे में लोगों ने सुना होगा कि इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए. वहीं जो लोग व्रत रखते हैं उन्हें तो चावल को छूना भी नहीं चाहिए. आइए जानते हैं आखिरकार इस दिन चावल का सेवन क्यों नहीं करना चाहिए.
आचार्य अनिरुद्ध के अनुसार क्यों नहीं खाना चाहिए चावल
जानें माने आचार्य अनिरुद्ध महाराज जी ने कथा के द्वारा बताया है कि आखिरी इन दिन चावल क्यों नहीं खाते हैं. जब विष्णु जी ने एकादशी से सभी पापों को नष्ट करने के लिए कहा था जब कुछ पाप चावल में छिप गाए. चावल में कुछ पाप छिपने की वजह से नाराज एकादशी ने चावल को श्राप दिया कि तुम्हें इस दिन कोई नहीं खाएगा. माना जाता है कि एकादशी वाले दिन चावल में पाप होते हैं इसलिए इस दिन चावल का सेवन नहीं किया जाता है.
धार्मिक कथा के अनुसार क्यों नहीं खाना चाहिए चावल
धार्मिक कथाओं के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाने से इंसान का अगला जन्म रेंगने वाले जीव में हो सकता है. वहीं द्वादशी के दिन चावल खाने से इस योनि से मुक्ति मिल सकती है. धार्मिक कथा के अनुसार मात शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया था. उनके शरीर के अंश पृथ्वी में समा गए थे. बाद में उसी स्थान पर चावल के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए.
ये है कारण
जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी पर आया था उस दिन एकादशी की तिथी थी. इसी वजह से एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है. माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल का सेवन करना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है. इसी वजह से एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं किया जाता है. इस दिन केवल सात्विक भोजन का सेवन किया जाता है.
Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.
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