वो कहते हैं न जब पेट पर लात पड़ती है तो इंसान कहीं का नहीं रहता है. एक तो कोरोना ने हर किसी को बेबस कर दिया है, वहीं नौकरी छिन जाने के चलते हजारों परिवार लाचारी का शिकार बनते जा रहे हैं. जब बुरे दिन आते हैं, तो वो सिर्फ दर्द और आंसू ही देते हैं. लेकिन भला इसके लिए असल जिम्मेदार कौन है?
कर्मचारी का असली नाम 'नौकर' ही है
एक नौकरी करने वाला कर्मचारी किसी होटल में काम करे या फिर दफ्तर में कुर्सी पर बैठकर मेहनत करके पैसा कमाए, नौकरी तो नौकरी ही होती है. उस कर्मचारी को भले ही कोई इज्जत देने के लिए कर्मचारी के नाम से पुकारता हो, लेकिन सच्चाई यही है कि वो एक नौकर या एक मजदूर ही होता है. जिस नौकर या मजदूर को जब मन किया तब धक्के मारकर दफ्तर और नौकरी दोनों से चलता कर दिया जाता है. लॉकडाउन में भी कई मजबूर लोगों को इसी दर्द का शिकार होना पड़ रहा है.
कोरोना के कहर से हर कोई परेशान है, हर किसी को कोरोना की मार सहनी पड़ रही है. मजदूर वर्ग इससे काफी ज्यादा प्रभावित हुआ है. खास तौर से वो जिसे रोज कमाना और रोज खाना पड़ता है, उसकी जिंदगी मानों बद से बदतर बनती जा रही है. हालात ये है कि एक तो घर में रहो उपर से दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़े. लेकिन सरकार ने तरह-तरह के अभियान चलाए हैं, गरीबों की जिंदगी सुचारू करने के लिए सरकार अपने फैसलों पर अमल भी कर रही है. लेकिन कुछ निजी कंपनियों की हिमाकत बढ़ती ही जा रही है.
सरकारी आदेश को ताक पर रखने की गुस्ताखी
आपको याद होगा, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से संवाद करते वक्त प्राइवेट कंपनियों और संस्थानों से ये अपील की थी कि वो कंपनी से किसी कर्मचारी को ना निकालें, उनके पेट पर लात मत मारे. लेकिन आज कुछ कंपनियां ना सिर्फ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील की धज्जियां उड़ा रहे हैं, बल्कि हजारों परिवारों की जिंदगी पर ग्रहण लगाने का काम कर रहे हैं.
इतना ही नहीं प्राइवेट कंपनियों ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के आदेश को भी अपने ठेंगे पर रखकर ये दिखाने की कोशिश की है कि वो जो चाहेंगे वो करेंगे. सरकार भले कितना भी अपील और आदेश जारी कर ले कि नौकरी से नहीं निकालिए और सैलेरी दीजिए, निजी कंपनिया अपने मर्जी की मालिक हैं. उन्हें हजारों परिवार की जिंदगी के साथ खेलने का पूरा हक है.
एक मजदूर या कर्मचारी अपनी कर्मभूमि के लिए सबकुछ न्यौछावर कर देता है. बुरे से बुरे वक्त में अपनी कंपनी के साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलता है, लेकिन जब कर्मचारियों का बुरा वक्त आता है तो कुछ तथाकथित मतलबी कंपनी अपने इम्प्लॉयी से पीछा छुड़ा लेती है.
ज़ी हिन्दुस्तान से पीड़ित मजबूरों ने संपर्क साधा
इस जनहित से जुड़ी खबर को जोरो-शोरों से उठाने का जिम्मा ज़ी मीडिया ने यूं ही नहीं उठाया. दरअसल, कुछ पीड़ितों ने ज़ी हिन्दुस्तान की टीम से संपर्क साधा और ये दावा किया कि उन्हें बिना किसी नोटिस के कंपनी से निकाल दिया गया है. जब, हमारी टीम ने इसकी गहराई से पड़ताल की तो जो जानकारी सामने आई वो वाकई चौंकाने वाली थी.
दावा किया जा रहा है कि एक कंपनी UDAAN नाम की एक ई-कॉमर्स कंपनी ने अपने हजारों कर्मचारियों को कूड़े की तरह कंपनी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. अगर संख्या की बात करें, तो वो फिलहाल साफ नहीं हो पाई है. लेकिन जिन सूत्रों से हमें जानकारी मिली है, उनका ये दावा है कि तकरीबन 6 हजार कर्मचारियों को एक झटके में बेरोजगार कर दिया गया.
हमारे पास इसके पुख्ता सबूत हैं कि संख्या काफी बड़ी है, लेकिन हम इस 6 हजार की संख्या पर मुहर नहीं लगाते हैं. लेकिन, इतना जरूर कह सकते हैं कि जिन लोगों ने हमसे संपर्क साधा है, उन्होंने कई कागजात और टर्मिनेशन लेटर मुहैया कराया है, जिनकी तादाद सैकड़ों में है. अब जरा सोचिए कि एक व्यक्ति से हमें सैकड़ों लोगों की पुख्ता जानकारी मिली तो देशभर से कितने हजार लोगों की नौकरी चली गई है.
कई कंपनियों की ऐसी ही करतूत सामने आ रही है.
आप उपर जिन तस्वीरों को देख रहे हैं, ये उन्हीं वर्करों की नौकरी छीनने वाला एक कागज है, जिसमें उन बेबस लोगों को बता दिया गया है कि जनाब आप अब हमारे किसी काम के नहीं हैं. आपको हम निकाल रहे हैं, केंद्र सरकार के आदेश का हमारे उपर कोई फर्क नहीं पड़ता है. UDAAN फर्म में आने वाली कंपनियों ने इसी तरह आदेशों की धज्जियां उड़ा दी.
अब जरा इस तस्वीर को देखिए...
इन संदेशों को किसने भेजा है और ये किन-किन व्यक्तियों का लेटर है, हम उसका नाम जाहिर नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि हमारे लिए उनके नाम को आपतक पहुंचाने से ज्यादा अहम उनकी परेशानियों के लिए आवाज उठाना है. उपर के संदेश में ही नहीं बल्कि कई संदेश में ज़ी मीडिया से अपील करने वाले लोगों ने ये तक कहा कि "नमस्कार मैं उड़ान कंपनी का कर्मचारी मुझे ####### तारीख को एक मेल आया, वह मेल मेरे टर्मिनेशन का था. मुझे और मेरे जेसे और 6000+एम्प्लॉयी को बिना कोई नोटिस पीरियड के कंपनी से बाहर कर दिया गया. हमसे किसी प्रकार की गलती होती तो मान लेते लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और हम सभी को निकाल दिया."
इतना ही नहीं लोगों ने ये भी कहा कि उन्हें कोरोना काल में सैलेरी नहीं चाहिए, अगर कंपनी और ऑफिस फिलहाल बंद है तो हमें बिना काम के पैसे मत दें, लेकिन कम से कम हमारा रोजगार तो मत छीनिए.
सवाल सिर्फ UDAAN का ही नहीं है, मार्केट में ऐसी कई सारी कंपनियां हैं जिन्होंने इस बुरे दौर में अपने वर्करों के पेट पर लात मार दिया. ऐसा नहीं है कि सारी ही कंपनियां ऐसी हैं, लगभग सभी ने पीएम मोदी और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के आदेश को सिर-आंखों पर रखते हुए, गाइडलाइन का पालन कर रही हैं, लेकिन कुछ कंपनियों की आदत सिर्फ कमाने की है, वो "Use and Through" के नियम का ही पालन करती हैं.
मामला तूल पकड़े, इससे पहले ही कोर्ट पहुंचे
प्राइवेट कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया था कि प्राइवेट कंपनी के मालिक अपने कर्मचारियों को काम से नहीं निकाले और देश भर में फैले कोरोना महामारी के दौरान पूरा वेतन दे. 11 एमएसएमई कंपनियों की तरफ से दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1) का उल्लंघन करती है.
याचिका में यह भी कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियों को अपने कर्मचारियों को 70 फीसदी वेतन देने की छूट दिया जाए. याचिकाकर्ता के मुताबिक यह पैसा सरकार कर्मचारी राज्य बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड से दिया जाना चाहिए. इसके साथ ही याचिका में यह भी दलील दी गई है कि सरकार को प्राइवेट कंपनियों पर किसी भी तरह का वित्तीय भार लादने का अधिकार नहीं है और इसके लिए वह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का सहारा नहीं ले सकती.
मजदूर से ज्यादा मजबूर भला कौन है?
ये बात तो बिल्कुल सच है कि हर कोई नौकर है, तो नौकर भी एक प्रकार का मजदूर है. वो मजदूरी करते-करते अपनी कंपनी को फायदे में पहुंचाता है. अपनी लगन से अपने मालिक, कंपनी या फर्म की शाख मजबूत करता है. कुछ हजार रूपये से महीने भर के लिए उसके परिवार का पेट किसी तरह से भर जाए, साल भर में एक्का-दूक्का बार अपने घरवाले, बीवी-बच्चे, मां-पिता को किसी ईद-त्यौहार पर नया कपड़ा खरीद पाए. अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा इंसान बना पाए. इन्हीं सब सपनों को साकार करने के लिए वो नौकरी करता है. खून पसीने की कमाई से जिंदगी बिताता है.
अपने मालिक के आगे हाथ नहीं फैलाता है, बल्कि वो अपने हक की कमाई से खाता और जिंदगी बिताता है. इनकी जिंदगी की परवाह करना तो दूर कुछ मतलबी कंपनियों के मालिक ऐसे कोरोना काल में बिना काम के सैलेरी देना तो दूर उन्हें कंपनी से ही बाहर खदेड़ देते हैं. ताकि उनके बिजनेस शेयर को अगले कुछ महीने तक नुकसान ना हो.
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सैकड़ों, करोड़ों का मुनाफा कमाते वक्त वो ये नहीं सोचते हैं कि इन मजदूर, कर्मचारियों की सैलेरी में अच्छा मुनाफा कर दें, लेकिन जब कटौती की बारी आती है तो, "इस वक्त हमारी कंपनी बहुत घाटे में चल रही है, हम आपको कंपनी से बाहर का रास्ता दिखाते हैं." और हां, अंत में ये भी लिखा होता है कि हम आपके बेहतर भविष्य की कामना करते हैं. मतलब हद है, एक तो आप किसी को आग से जला रहे हैं और उपर से नमक-मिर्ची छिड़क कर ये बोल रहे हैं कि उम्मीद करता हूं कि आपको दर्द नहीं होगा.
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