काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत, फिर क्यों तारीख पर तारीख?

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में सुनवाई टल गई है. अब 15 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी. आपको इस रिपोर्ट में काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कई अहम तथ्य की जानकारी देते हैं.. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 13, 2020, 05:06 PM IST
  • ज्ञानवापी विवाद पर फिर टली सुनवाई
  • नक्शे से हिंदू मंदिर का खुलासा
  • औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाया
  • 1669 में मंदिर को तोड़ा गया
  • मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई
काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत, फिर क्यों तारीख पर तारीख?

लखनऊ: वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Mandir) और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद केस में एक बार फिर जिला जज की अदालत में सुनवाई टल गई है. जानकारी के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद पर विवाद अलगी सुनवाई 15 अक्टूबर को की जाएगी. ये विवाद कई सदियों से चलता आ रहा है. ऐतिहासिक आधार बताते हैं कि 1669 में यह मस्जिद बनाई गई थी. हालांकि बाद में एक हिंदू शासक ने इसे फिर मंदिर में तब्दील कर दिया था.

महादेव के 'मुकदमे' के 3 पक्ष

पहला पक्ष- स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर

दूसरा पक्ष- सुन्नी सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड

तीसरा पक्ष- अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी

वाराणसी जिला अदालत में अभी जो मुकदमा चल रहा है उसमें कुल 3 पक्ष हैं. पहला, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वे-श्वर यानी खुद साक्षात भगवान शिव, वैसे ही जैसे अयोध्या में रामलला विराजमान खुद पार्टी थे. कोर्ट ने वकील विजय शंकर रस्तोगी को भगवान शिव का वाद मित्र नियुक्त किया है. दूसरा पक्ष, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड है और तीसरा पक्ष, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी.

नक्शे से हिंदू मंदिर का खुलासा

Zee मीडिया के पाक 1585 का नक्शा मौजूद है. नक्शे से हिंदू मंदिर का खुलासा होता है. यानी औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाया था. 1669 में मंदिर को तोड़ा गया था और मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई. काशी विश्वनाथ विवाद में अभी जो मुकदमा चल रहा है उसकी शुरुआत 1991 में हुई थी. यानी ये लगभग 30 साल पुराना मुकदमा है. लेकिन ये कानूनी विवाद कई दशक पुराना है. स्वतंत्रता से पहले 1936 में भी ये मामला कोर्ट में गया था। तब हिंदू पक्ष नहीं, बल्कि मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की थी. ये याचिका दीन मोहम्मद नाम के एक व्यक्ति ने डाली थी और कोर्ट से मांग की थी कि पूरा ज्ञानवापी परिसर मस्जिद की जमीन घोषित की जाए. 1937 में इस पर फैसला आया, जिसमें दीन मोहम्मद के दावे को खारिज कर दिया गया. लेकिन विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई. इस मुकदमे में हिंदू पक्ष को पार्टी नहीं बनाया गया था. लेकिन इस मुकदमे में कई ऐसे सबूत रखे गए थे जो बहुत महत्वपूर्ण हैं. Zee मीडिया की टीम ने उस मूल दस्तावेज को ढूंढ निकाला. आपको बताते हैं कि कैसे ये पूरी फाइल काशी ज्ञानवापी विवाद को एक नया मोड़ दे सकती है.

इसी केस की सुनवाई के दौरान अंग्रेज अफसरों ने 1585 में बने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर का नक्शा भी पेश किया. इसमें बीच का जो हिस्सा है वही पर प्राचीन मंदिर का गर्भगृह बताया जाता है. यह नक्शा जब कोर्ट में पेश किया तो अंग्रेज अफसरों ने बताया कि इसके ही कुछ हिस्से में मस्जिद बना दी गई है.

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के सबूत

सबूत नंबर 1- प्राचीन नक्शा

सबूत नंबर 2- औरंगजेब के दरबारी का दस्तावेज

सबूत नंबर 3- दस्तावेज में मंदिर गिराने का जिक्र

सबूत नंबर 4- 1936 कोर्ट में सुनवाई 

सबूत नंबर 5- मस्जिद से सटी दीवारें

सबूत नंबर 6- मंदिरों की दीवार

सबूत नंबर 7- ज्ञानवापी परिसर की कई तस्वीरें

सबूत नंबर 8- ज्ञानकूप, नंदी के उत्तर दिशा मंदिर के सबूत

काशी विश्वनाथ मंदिर के कानूनी विवाद में 1998 का साल सबसे महत्वपूर्ण है. इसी साल में वाराणसी की कोर्ट ने एक फैसला दिया, जिसमें कहा गया कि विवाद को सुलझाने के लिए पहले ये तय करना जरूरी है कि विवादित स्थल का धार्मिक स्वरूप क्या है? क्योंकि 1991 में बने Places of Worship Act यानी उपासना स्थल कानून के अनुसार देश में धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के दिन की यथास्थिति लागू है. सिर्फ अयोध्या को इसका अपवाद माना गया था.

वाराणसी जिला कोर्ट के जज चाहते थे कि पहले तय हो कि आजादी के दिन विवादित स्थल पर मंदिर था या मस्जिद, कोर्ट ने ये भी माना कि काशी विश्वनाथ मंदिर का प्राचीन इतिहास है और ये मामला जनता की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है. इसलिए मेरिट के आधार पर इस विवाद का अंतिम हल जल्द से जल्द निकाला जाना चाहिए.

हिंदू पक्ष को इस फैसले से कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि उनका दावा है कि ज्ञानवापी परिसर का धार्मिक स्वरूप कभी नहीं बदला और वो 15 अगस्त 1947 के दिन भी मंदिर ही था. क्योंकि प्राचीन शिवलिंग वहीं पर मौजूद है. लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी. जिस पर उन्हें स्टे ऑर्डर मिल गया.

500 वर्षों के इंतज़ार के बाद अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि का विवाद इतिहास की बात बन चुका है, लेकिन हमारे देश में अब भी कई ऐसे मंदिर और मस्जिद हैं जिनका विवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है. हैरानी की बात ये है कि इनमें से ज्यादातर विवादित धार्मिक स्थल उत्तर भारत में स्थित हैं. जबकि दक्षिण भारत में आपको ऐसे बहुत कम प्राचीन मंदिर दिखाई देंगे, जिन्हें तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई हो. ऐसा इसलिए है.. क्योंकि 800 वर्षों के दौरान जिन मुसलमान आक्रमणकारियों ने भारत पर अनगिनत हमले किए वो दक्षिण भारत पर अपना प्रभाव उस तरह से नहीं जमा पाए जिस तरह से उन्होंने उत्तर भारत में अतिक्रमण किया. इसका नतीजा ये हुआ कि उत्तर भारत के कई प्राचीन मंदिरों की जगह या उनके आस पास मस्जिद बना दी गई और अब भारत में कई धार्मिक स्थल ऐसे हैं. जहां मंदिर के साथ मस्जिद है या मस्जिद के साथ मंदिर है. अब आपको ये सोचना चाहिए कि क्या ये मात्र एक संयोग है या फिर बाहर से आए आक्रामणकारियों ने अपनी सभ्यता को भारत के बहुसंख्यक लोगों पर थोपने के लिए ये प्रयोग किया था.

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