नई दिल्ली. कर्नाटक में ठीक वोटिंग के दिन दिग्गज कांग्रेसी नेता और राज्य के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने कहा- हम 130+ सीटें जीत रहे हैं, यह आंकड़ा 150 तक पहुंच सकता है. शनिवार को राज्य के नतीजे लगभग आ चुके हैं और सिद्धारमैया की बात सही साबित दिख रही है. तकरीबन तीन दशक बाद राज्य में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है. इन सबके बीच 'सीएम कौन बनेगा' का भी सवाल उठने लगा है.
कर्नाटक की राजनीति में इस वक्त कांग्रेस के पास दो चेहरे हैं जिनके मुख्यमंत्री बनने के सबसे ज्यादा आसार है. पहले हैं सिद्धारमैया और दूसरे डीके शिवकुमार. सिद्धारमैया पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं. 2018 में उनकी सरकार के एक फैसले को हार का बड़ा कारण माना गया था. यह फैसला था विरशैव-लिंगायत समुदाय को हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा देने के प्रस्ताव का समर्थन. यह ऐसा फैसला था जिस पर कांग्रेस घिर गई थी. हालांकि इस घटना के चार साल बाद यानी 2022 में सिद्धारमैया ने साफ किया था कि उन्हें अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है.
एक महंत ने किया था दावा- सिद्धारमैया को था पछतावा
दरअसल बीते साल कर्नाटक के एक महंत ने दावा किया था कि सिद्धारमैया को अपने कदम का पछतावा है. इस खुद सिद्धारमैया ने पत्रकारों से कहा था-‘नहीं, मैंने ऐसा (पछतावा पर) कुछ नहीं कहा. मैंने बस ये बताया कि क्या हुआ था. मैंने उन्हें (महंत) बताया कि हमने वीरशैव-लिंगायत को वह दर्जा देने की योजना बनाते समय क्या किया था...’
उन्होंने कहा कि दरअसल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दावणगेरे दक्षिण के विधायक शमनरु शिवशंकरप्पा ने उन्हें (सिद्धरमैया) वीरशैव-लिंगायत धर्म बनाने के लिए एक ज्ञापन सौंपा था.
क्या फिर ऐसा कोई प्रयास हो सकता है?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सीएम बनने के बाद सिद्धारमैया एक बार फिर इस तरह का कोई प्रयास कर सकते हैं? कर्नाटक की वर्तमान राजनीति को देखते हुए मुश्किल लगता है कि सिद्धारमैया ऐसा कदम फिर से उठाएं क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान घेरे जाने के बाद कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे तक को कहना पड़ गया कि उन्होंने अपनी विधानसभा में तीन सौ से ज्यादा हनुमान मंदिर बनवाए थे.
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