नई दिल्ली. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सोमवार को चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है. 10 मई को एक चरण में पूरे राज्य में वोटिंग होगी. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं सामने विपक्षी कांग्रेस है जो इस बार 140 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रही है. कुछ सर्वे भी राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती हुई दिखा रहे हैं. कांग्रेसी दिग्गज डीके शिवकुमार ने रविवार को एक इंटरव्यू में दावा किया है कि पार्टी आराम से चुनाव जीत रही है. लेकिन दिलचस्प बात है कि जितनी सीटों का दावा कांग्रेस की तरफ से किया जा रहा है, उतनी सीटें पार्टी राज्य में बेहद कम बार ही जीत सकी है. हालांकि तकरीबन 34 साल पहले राज्य में ऐसा भी चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस ने रिकॉर्डतोड़ जीत दर्ज की थी. कांग्रेस ने राज्य की करीब 75 फीसदी सीट पर कब्जा जमा लिया था. तब कांग्रेस के सामने मुख्य विपक्षी पार्टी जनता दल थी जिसके नेता थे दिग्गज नेता सोमप्पा रायप्पा बोम्मई यानी SR बोम्मई. वर्तमान में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई SR बोम्मई के बेटे हैं.
अगर केंद्र की राजनीति देखें तो 1989 वह साल था जब दिल्ली में समाजवादी नेता विश्ननाथ प्रताप सिंह का डंका बज रहा था. यही वो साल था जब 1984 में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाले राजीव गांधी अपनी सरकार गंवा रहे थे. लेकिन कर्नाटक में वीरेंद्र बसप्पा पाटिल के नेतृत्व में कांग्रेस का प्रदर्शन कई दशकों में सबसे बेहतरीन रहा था. इस प्रदर्शन को दोहराने के लिए आज भी कांग्रेस की टॉप लीडरशिप को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा. शायद फिर भी यह आंकड़ा न छुआ जा सके.
1983 में बदली थी कर्नाटक की राजनीति
दरअसल 1989 के चुनाव से करीब 6 साल पहले यानी 1983 में देश की आजादी के बाद पहली बार राज्य ने एक गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री देखा था. इन नेता का नाम था रामकृष्ण महाबलेश्वर हेगड़े. इन्हें लोग आम तौर पर रामकृष्ण हेगडे़ के नाम से जानते हैं. 1983 में जनता पार्टी राज्य के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. राजनीतिक रूप से राज्य की दो मजबूत बिरादरी लिंगायत और वोक्कालिग्गा के आपसी द्वंद्व के बीच सहमति से एक ब्राह्मण नेता को राज्य की गद्दी सौंपी गई. हेगड़े की स्वीकार्यता राजनीति में इतनी ज्यादा थी कि बहुमत के लिए उन्हें बीजेपी से लेकर लेफ्ट पार्टियों के अलावा 16 निर्दल विधायकों का समर्थन मिल गया था. कांग्रेस राज्य में अकेली पड़ गई थी.
इंदिरा गांधी की हत्या और केंद्र में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत सरकार
इस चुनाव के ठीक एक साल बाद केंद्र की राजनीति में एक भूचाल आया. देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और फिर उसके बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बन गए. कर्नाटक में जनता पार्टी का प्रदर्शन बेहद बुरा रहा. राज्य की कुल 28 लोकसभा सीटों में से पार्टी के हाथ कुल 4 सीटें लगी. पार्टी के प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए हेगड़े ने इस्तीफा दे दिया. 1985 में राज्य में दोबारा चुनाव हुआ जिसमें जनता पार्टी ने आराम से पूर्ण बहुमत हासिल किया. यानी केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद राज्य में पार्टी की स्थिति खराब बनी रही.
1989 का वो करिश्मा जो आज भी कांग्रेस को होगा याद
लेकिन फिर 1989 के चुनाव में वह हुआ जिसकी शायद कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं थी. दरअसल रामकृष्ण हेगड़े को मुख्यमंत्री रहते हुए जबरदस्त लोकप्रियता हासिल थी लेकिन उनकी सरकार पर कई आरोप लगे जिनमें फोन टैपिंग जैसे गंभीर आरोप भी शामिल थे. 1988 में जनता पार्टी का विलय जनता दल में हो गया. हेगड़े अब वीपी सिंह के साथ हो लिए. तब पूरे देश में वीपी सिंह के पक्ष में नारे लगते थे-राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है.
खैर कर्नाटक कुछ और करना चाहता था और वहां की जनता ने इसका फैसला कर लिया था. एक तरफ कांग्रेस थी और दूसरी तरफ थी नई नवेली जनता दल. पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जबरदस्त प्रचार अभियान चलाया. नतीजे आए तो पार्टी को पूरी विधानसभा में 178 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं विपक्षी जनता दल के हाथ में केवल 24 सीटें थीं. चुनाव बाद वीरेंद्र पाटिल राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. राज्य में अब तक कांग्रेस अपने इस प्रदर्शन को दोहरा नहीं सकी है. हालांकि पार्टी ने कई बार राज्य सरकार बनाई है.
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