नई दिल्ली: हरियाणा में भले ही बीजेपी ने जेजेपी का समर्थन हासिल कर सत्ता की चाभी अपने हाथों में सुरक्षित कर ली हो लेकिन महाराष्ट्र में बन रहे सियासी समीकरण उसके लिए टेंशन पैदा करने वाले हैं. इस सूबे में 2014 की तुलना में बीजेपी की सीटें घटी हैं. जिससे उसकी सहयोगी शिवसेना को न सिर्फ मनमाफिक सौदेबाजी का मौका मिल गया है बल्कि वह बीजेपी से अलग भी कुछ बड़ा सोचने की स्थिति में आ गई है.
महाराष्ट्र में ऐसे बढ़ी भाजपा की मुश्किलें
हालिया घटनाक्रम इसी ओर इशारा कर रहे हैं. कि भारतीय जनता पार्टी को महाराष्ट्र में खासा परेशानी के दौर से गुजरना पड़ रहा है. नतीजे आने के तुरंत बाद पहले शिवसेना का बीजेपी को 50-50 के वादे की याद दिलाना, फिर सामना में भाजपा पर निशाना और फिर संजय राउत के कार्टून ने महाराष्ट्र की सियासत में कौतुहल पैदा कर दिया. और अब विधायक दल की बैठक में ये साफ कर दिया गया है कि शिवसेना दूसरे विकल्प के बारे में भी सोच सकती है.
मुख्यमंत्री की कुर्सी का 'शिवसेना मोह'
शिवसेना को सीएम की कुर्सी से खासा मोह है, इसके पीछे की सबसे वजह ये भी है कि महाराष्ट्र की सियासत में किंगमेकर की भूमिका में नजर आने वाले ठाकरे परिवार ने इस बार किंग बनने के लिए मैदान में अपने राजकुमार आदित्य ठाकरे को मैदान में उतारा है. ऐसे में शिवसेना आदित्य की ताजपोशी बतौर प्रदेश का मुखिया के तौर पर करने के लिए बेकरार है. दरअसल भाजपा की सहयोगी शिवसेना मुख्यमंत्री पद का मोह छोड़ नहीं पा रही है. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही शिवसेना तल्ख तेवर अपनाए हुए है. उसने ऐसे भी संकेत दिए हैं कि वह मनचाहा पद न मिलने पर अलग राह चुन सकती है. वैसे भी चुनाव प्रचार के समय से ही शिवसेना कहती रही है कि एक दिन कोई शिवसैनिक CM की कुर्सी पर होगा. वर्ली से जीते शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को शिवसेना भावी सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट भी करने लगी है.
अब तो शिवसेना के विधायकों ने भी साफ कर दिया है कि उनकी च्वाइस सिर्फ और सिर्फ आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री के लिए हैं.
संजय राउत का ट्विटर प्लान
इस बीच ट्विटर पर शिवसेना सांसद संजय राउत के एक पोस्ट ने सियासी सरगर्मी और तेज कर दी. साल 2014 की तुलना में बीजेपी की सीटों की संख्या कम आने पर राउत ने तंज कसते हुए एक कार्टून पोस्ट किया. इसमें एक बाघ जो कि शिवसेना का चुनाव चिन्ह है, गले में घड़ी लटकाए जो कि एनसीपी का चुनाव चिन्ह है, पंजे में कमल का फूल जो कि बीजेपी का चुनाव निशान है लेकर सूंघ रहा है. जिसके बाद ये कयास लगने लगे कि अगर बीजेपी ने शिवसेना को सत्ता में उसके मनमाफिक भागीदारी नहीं दी तो वो दूसरे विकल्प चुन सकती है.
व्यंग चित्रकाराची कमाल!
बुरा न मानो दिवाली है.. pic.twitter.com/krj2QAnGmB— Sanjay Raut (@rautsanjay61) October 25, 2019
नतीजों के तुरंत बाद उद्धव ने कह भी दिया था कि शिवसेना 50-50 के फॉर्मूले पर किसी तरह के समझौते के मूड में नहीं है. यहां ये जानना जरूरी है कि आखिर ये फॉर्मूला क्या है?
शिवसेना की समझौता नीति: सूत्र
- शिवसेना इस फॉर्मूले के तहत पहले ढाई साल के लिए सीएम की कुर्सी चाहती है.
- यही नहीं वो मंत्रिमंडल में 50 फीसदी की हिस्सेदारी भी चाहती है.
- पहले ढाई साल सीएम की कुर्सी ना मिलने पर उसे मनमाफिक मंत्रालय चाहिए
- शिवसेना गृह, वित्त, राजस्व, शहरी विकास, वन, कृषि और शिक्षा मंत्रालय चाहती है
- शिवसेना अपने राज्य मंत्रियों के लिए भी अहम मलाईदार पद चाहती है
- शिवसेना सूबे के सभी डेवेलेपमेंट बोर्ड में आधी हिस्सेदारी चाहती है
विधायक दल की बैठक में क्या हुआ?
विधायक दल की बैठक के बाद शिवसेना ने साफ कर दिया है कि अगर 50-50 के फॉर्मूले पर बीजेपी लिखित आश्वासन नहीं देती है तो दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जाए. शिवसेना के विधायकों ने कहा है कि इस मुद्दे को लेकर उद्धव ठाकरे जो भी फैसला लेंगे वो उन्हें मंजूर होगा. शिवसेना ये भी कह रही है कि भाजपा ने जो वादा किया था उसे वो पूरा करे.
फॉर्मूले को नकार रही है भाजपा
हालांकि भाजपा चुनाव से पहले 50-50 जैसे किसी फॉर्मूले पर हुई बातचीत को ही नकार रही है. महाराष्ट्र की प्रभारी सरोज पांडेय ने दो टूक कह दिया कि है सीएम पद को लेकर बीजेपी किसी तरह का समझौता नहीं करेगी. सीएम तो भाजपा का ही होगा.
इस बीच गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को फोन पर विधानसभा चुनावों में गठबंधन की जीत पर बधाई दी है. उन्होंने कहा है कि वे मिलकर दिवाली के बाद सरकार बनाने पर चर्चा करेंगे. हालांकि सरकार बनाने को लेकर शिवसेना के तल्ख तेवरों से साफ जाहिर हो रहा है कि इस बार महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाली है. सवाल ये भी है कि क्या गठबंधन धर्म का पालन करके भाजपा ने महाराष्ट्र में गलती कर दी है?