नई दिल्ली: "गुजर गया वो जो छोटा सा ये फसाना था, फूल थे चमन था आशियाना था, न पूछ उजड़े नशेमन की दास्तां, चार दिन का ही था, मगर था तो आशियाना ही था.." ये वही पंक्ति हैं, जो गुलाम नबी आजाद ने आखिरी बार राज्य सभा में बोला और बोलते-बोलते वो रो पड़े. गुलाम नबी आजाद की विदाई के वक्त खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी आंसू छलक आए थे.
सवाल ये है कि क्या राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का गठबंधन एनडीए गुलाम नबी आजाद को उम्मीदवार के तौर पर आगे कर सकता है? वाकई अगर ऐसा हुआ तो ये भाजपा के लिए किसी मास्टरस्ट्रोक से कम नहीं होगा. आपको इसके 3 ठोस संकेत बताते हैं.
1). 8 सालों में पहली बार किसी नेता के लिए छलते पीएम मोदी के आंसू
तारीख थी 9 फरवरी 2021, जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा को संबोधित कर रहे थे. उसी दिन सदन में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद समेत चार सांसदों को विदाई दी जा रही थी. पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन के दौरान गुलाम नबी आजाद की जमकर तारीफ की. एक वक्त ऐसा आया, जब गुलाम नबी आजाद की विदाई पर बोलते हुए पीएम मोदी के आंसू छलक गए.
देश के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी किसी भी विपक्षी नेता के लिए भावुक नहीं हुए. सदन में प्रधानमंत्री मोदी के आंसू निकलने का मतलब समझना जरूरी है. उन्होंने गुलाम नबी आजाद के बारे में ऐसा क्या बोला जो उनको इतना इमोशनल कर दिया.
इस दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'मुझे चिंता इस बात की है कि गुलाम नबी जी के बाद जो भी इस पद को संभालेंगे, उनको गुलाम नबी जी से मैच करने में बहुत दिक्कत पड़ेगी. क्योंकि गुलाम नबी जी अपने दल की चिंता करते थे, लेकिन देश और सदन की भी उतनी ही चिंता करते थे.'
उन्होंने ये भी बोला था कि 'मैं अपने अनुभवों और स्थितियों के आधार पर गुलाम नबी आजाद जी का सम्मान करता हूं. मुझे यकीन है कि उनकी दया, शांति और राष्ट्र के लिए प्रदर्शन करने का अभियान उन्हें हमेशा चलता रहेगा. वह हमेशा जो कुछ भी करता है उसके लिए मूल्य जोड़ देगा.'
पीएम मोदी ने साझा किया था किस्सा
नरेंद्र मोदी ने बोला कि 'गुलाम नबी जी जब मुख्यमंत्री थे, तो मैं भी एक राज्य का मुख्यमंत्री था. हमारी बहुत गहरी निकटता रही. एक बार गुजरात के कुछ यात्रियों पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया, 8 लोग उसमें मारे गए. सबसे पहले गुलाम नबी जी का मुझे फोन आया. उनके आंसू रुक नहीं रहे थे. उस समय प्रणव मुखर्जी जी रक्षा मंत्री थे. मैंने उनसे कहा कि अगर मृतक शरीरों को लाने के लिए सेना का हवाई जहाज मिल जाए तो उन्होंने कहा कि चिंता मत करिए मैं करता हूं व्यवस्था, लेकिन गुलाम नबी जी उस रात को एयरपोर्ट पर थे, उन्होंने मुझे फोन किया और जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता करें, वैसी चिंता वो कर रहे थे.'
Watch my remarks in the Rajya Sabha. https://t.co/Cte2AR0UVs
— Narendra Modi (@narendramodi) February 9, 2021
2). गुलाम नबी आजाद की राष्ट्रवादी छवि से उनको मिल सकता है फायदा
जम्मू कश्मीर की सियासी समीकरण को देखते हुए गुलाम नबी आजाद भाजपा के लिए एक बेहतर हैं. उनकी छवि एक राष्ट्रवादी नेता वाली है, जो भाजपा के खांचे में बिल्कुल फिट बैठती है. आपको उनकी ऐसी कुछ बातें याद दिला देते हैं.
अपने अंतिम संबोधन में गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने राज्यसभा में कहा था कि 'हम बड़े खुशकिस्मत हैं, जन्नत हिंदुस्तान है. मैं तो आजादी के बाद पैदा हुआ, लेकिन आज गूगल के जरिए और मैं पढ़ता हूं, देखता हूं, सुनता हूं. मैं उन खुशकिस्मत लोगों में हूं जो पाकिस्तान कभी नहीं गया, लेकिन जब मैं पढ़ता हूं कि वहां किस तरह के हालात हैं पाकिस्तान के अंदर तो मुझे फख्र महसूस होता है कि हम हिंदुस्तानी मुसलमान हैं.'
उन्होंने आगे कहा था कि 'किसी मुसलमान को अगर गौरव होना चाहिए तो हिंदुस्तान के मुसलमानों को होना चाहिए. कुछ सालों पहले से देखें कि किस तरह से मुस्लिम देश खत्म हो जा रहे हैं, एक-दूसरे से लड़ाई करते हुए. वहां हिंदू तो नहीं हैं, ईसाई तो नहीं हैं, दूसरा तो नहीं है जो लडाई कर रहा है, आपस में लड़ाई कर रहे हैं.'
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि मुसलमान खुशकिस्मत हैं, भारत में हैं. उन्होंने भारत में मुसलमानों को 'डरे होने' को खारिज किया. मुस्लिमों को 'डरा हुआ' बताने वालों को गुलाम नबी ने करारा जवाब दिया. आपको बताते हैं कि देश में मुसमानों को कब-कब डराने वाली राजनीति की गई.
कश्मीरी पंडितों पर गुलाम नबी आजाद के विचार
गुलाम नबी आजाद ने उस वक्त कश्मीरी पंडितों को लेकर भी अपने विचार साझा किए थे. उन्होंने कहा था कि कश्मीरी पंडित भाई-बहनों के लिए एक शेर कहना चाहता हूं. मैं जब यूनिवर्सिटी में जीतकर आता था, तब कश्मीरी पंडित मुझे सबसे ज्यादा वोट देते थे. मुझे अफसोस होता है, जब मैं अपने क्लासमेट्स से मिलता हूं. क्योंकि वे कश्मीरी पंडित हैं, जो घर से बेघर हो गए.
उनके लिए शेर- गुजर गया वो छोटा सा जो फसाना था, फूल थे, चमन था, आशियाना था. न पूछ उजड़े नशेमन की दास्तां, न पूछ कि चार तिनके मगर आशियाना तो था.
3). राजनीतिक अनुशासन की सीमा रेखा को न तोड़ने वाले नेता हैं गुलाम नबी
गुलाम नबी आजाद की राजनीतिक शैली किसी से छिपी नहीं है. पीएम मोदी भी उनके कितने बड़े प्रशंसक हैं, हर कोई इस बात को जान-समझ चुका है. लेकिन एक बात आपको याद दिला देते हैं. कांग्रेस में एक वक्त ऐसा भी आया जब गुलाम नबी आजाद से उनकी ही पार्टी के लोग चिढ़ गए. कश्मीर में भी उनके खिलाफ कांग्रेस के नेता प्रदर्शन करने लगे. ये वही दौर था जब उन्होंने कांग्रेस की स्थाई अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए आवाज उठाई थी.
उनका नाम जी-23 नेताओं के लिस्ट में शुमार है, जिन्होंने पार्टी की स्थिति बिगड़ते हुए अपनी आवाज उठाई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विपक्ष की सबसे अहम आवाज कहे जाने वाले गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के आलाकमान पर ही हमला बोल दिया था. उन्होंने उस वक्त कहा था कि 'जो अधिकारी या राज्य इकाई के अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष हमारे प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं उन्हें मालूम है कि चुनाव होने पर वे कहीं नहीं होंगे. यदि संगठन में बदलाव नहीं हुआ तो कांग्रेस अगले 50 वर्षों तक विपक्ष में बैठी रहेगी.'
उनके इसी बयान के बाद बवाल मच गया. अब ये समझना चाहिए कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि भाजपा की नजर गुलाम नबी पर है. आपको याद दिला दें, जी-23 नेताओं की लिस्ट में शामिल एक नेता जो गुलाम नबी के सबसे करीबी माने जाते थे, वो कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़ दिया है. उन्होंने सपा से हाथ मिला लिया है, भले ही उन्होंने राज्यसभा के लिए निर्दलीय ताल ठोका. ऐसे में गुलाम नबी को लेकर ऐसी संशय जताए जा रहे हैं.
तो क्या भाजपा जम्मू कश्मीर में खेलने एक और दाव खेलने वाली है. भाजपा के फैसले हर किसी को चौंकाते हैं. जो किसी ने सोचा भी नहीं होता, वो फैसला भाजपा लेती है. पिछले राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिला था. आगे क्या होगा, ये तो वक्त ही बताएगा. का
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