नई दिल्ली: Father's Day 2024: हर साल जून के तीसरे संडे को फादर्स डे सेलिब्रेट किया जाता है. इस बार फादर्स डे 16 जून 2024 को मनाया जाएगा. यह एक खास दिन होता है जब हम अपने पापा के प्यार और मेहनत का शुक्रिया अदा करते हैं. पापा, वो मजबूत स्तंभ है जो हर मुश्किल में हमारा साथ देते हैं. जिनकी डांट में भी प्यार होता है, जिनकी हर बात हमारे लिए मायने रखती है. आज हम आपके लिए लाए हैं 5 फिल्में जिनमें पिता ने अपने बच्चों के लिए दुनिया, समाज के सभी नियमों के खिलाफ जाकर अपने बच्चों का साथ दिया है और प्रोटेक्ट किया है. इस लिस्ट में आमिर खान, अमिताभ बच्चन से लेकर इरफान खान के नाम शामिल हैं.
नरोत्तम मिश्रा- बरेली की बर्फी
साल 2017 में रिलीज हुई फिल्म 'बरेली की बर्फी' में कृति सेनन और पंकज त्रिपाठी का खास बॉन्ड देखने को मिलता है. फिल्म में पंकज त्रिपाठी के किरदार का नाम नरोत्तम मिश्रा होता है. नरोत्तम पर उनकी पत्नी दबाव बनाती हैं कि उनकी बेटी शादी कर ले. मगर इससे हटकर पंकज त्रिपाठी एक सामान्य पिता भी हैं साथ ही समझदार भी हैं. वो अपनी बेटी बिट्टी के साथ बहुत अच्छी बॉन्डिंग शेयर करते हैं. वह अपनी बेटी पर अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने का फैसला छोड़ देता है.
महाविर सिंह फोगाट- दंगल
'माहरी छोरियां छोरों से कम हैं के' दंगल फिल्म का ये डायलॉग तो आपको याद ही होगा. आमिर खान स्टारर इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला था. आमिर खान ने फिल्म में एक पहलवान महाविर सिंह फोगाट की भूमिका निभाई है. अपनी बेटियों को इंटरनेशनल लेवल पर पहलवान बनाने के लिए सबसे लड़ता है. वो समाज की विचारधारा तोड़ते हुए कि लड़कियां पहलवान नहीं बन सकतीं को नहीं मानता. आमिर खान का किरदार महाविर सिंह फोगाट भले एक एक कठोर प्रशिक्षक पिता के रूप में दिखाई देता है पर अपनी बेटी की सफल बनाने के लिए खुब संघर्ष भी करता है.
चंपक बंसल- अंग्रजी मीडियम
फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में इरफान खान ने पिता चंपक बंसल का किरदार निभाया है. चंपक अपनी आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी बेटी महत्वाकांक्षाओं पर कभी आंच नहीं आने देता है. उन्होंने अपनी बेटी (राधिका मदान) को विदेश में पढ़ाने के लिए पैसे जोड़ता है. हर मोड़ पर अपनी बेटी के सपोर्ट के लिए साथ खड़ा रहता है. उन्होंने अपनी बेटी पर कभी भी सामाजिक दबाव या बोझ नहीं डाला.
भास्कर बनर्जी- पीकू
'पीकू' उन फिल्मों में से एक है जिसे फादर्स डे पर तो जरूर देखा जाना चाहिए. फिल्म से आपको एक नया और खूबसूरत नजरिया देखने को मिलता है. पीकू का किरदार अपने निजी जीवन से निराश होने के बाद भी अपने पिता मिताभ बच्चन के व्यवहार को फेस करती है. भास्कर बनर्जी के अलग और प्रोगरेसिव सोच को दिखाया है. भले ही उनकी बेटी 30 साल की थी और अविवाहित थी, फिर भी उन्हें इसकी कभी चिंता नहीं हुई. भास्कर एक जिद्दी, स्वतंत्र और निडर बेटी का पिता बनकर बेहद खुश था.
कुमुद मिश्रा- थप्पड़
थप्पड़ फिल्म जितना के महिला के जीवन के संघर्षों को दिखाती है उतना ही एक बेटी और पिता के रिश्ते की मजबूती को भी दिखाती है. कुमुद मिश्रा अपनी बेटी के सभी फैसलों में उसके साथ खड़ा रहता है चाहे वह उसकी शादी खत्म करना हो या बच्चे की उम्मीद के दौरान तलाक के लिए दाखिल करना हो. फिल्म में रत्ना पाठक शाह ने तापसी पन्नू की मां का रोल निभाया है जो अपनी बेटी को तलाक लेने से रोकती है लेकिन कुमुद उनकी इस सोच से सहमत नहीं होता. वो चाहते हैं कि उनकी पत्नी ने उनकी शादी के दौरान जो बलिदान दिया वो उनकी बेटी को न देना पड़े. वह हमेशा चाहते थे कि वह अपनी जिंदगी खुद जिए.
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