नई दिल्ली: रामसे ब्रदर्स की फिल्म 'वीराना (Veerana)' की स्टार कास्ट से लेकर इसकी कहानी तक के खूब चर्चे रहे. 1988 में रिलीज हुई 'वीराना' को आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे हॉरर फिल्मों में से एक माना जाता है. इस फिल्म के निर्देशन की कमान श्याम रामसे और तुलसी रामसे ने मिलकर संभाली थी. इस खौफनाक कहानी में अपनी खूबसूरती के चार चांद लगाने वाली जैसमीन रातों-रात स्टार बन गई थीं. दुनियाभर में जैसे हर किसी की जुबां पर सिर्फ जैसमीन की खूबसूरती चर्चे हो रहे थे. जहां एक ओर जैसमीन ने खूब सुर्खियां बटोरीं, वहीं, फिल्म की कहानी की असलियत जानकर भी लोगों का सिर चकरा गया. हालांकि, कम ही लोग इस बारे में जानते हैं.
असल जिंदगी की घटना से मिला 'वीराना' बनाने का आइडिया
रामसे ब्रदर्स खासतौर पर अपनी हॉरर फिल्मों के लिए जाने जाते थे, लेकिन कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने का आइडिया उन्हें अपनी जिदंगी में घटी एक खौफनाक सच्ची घटना से मिला. खबरों की माने तो श्याम रामसे के साथ एक रात ऐसी ही भयानक घटनी घटी था, जिसे उन्होंने 'वीराना' का नाम देकर पूरी दुनिया के सामने पेश कर दिया.
महाबलेश्वर से लौट रहे थे श्याम रामसे
खबरों की माने तो यह घटना 1983 की है. श्याम रामसे एक बार महाबलेश्वर से लौट रहे थे, जहां वह अपनी पूरी टीम के साथ फिल्म 'पुराना मंदिर' की शूटिंग कर रहे थे. काम खत्म होने के बाद पूरी टीम पहले ही मुंबई लौट आई थी, लेकिन श्याम रामसे कुछ दिन और वहीं रुकना चाहते थे. कुछ दिनों बाद वह खुद ही कार चलाकर मुंबई लौट रहे थे, हालांकि उन्हें काफी देर हो चुकी थी.
आधी रात को मिली थी अजीब महिला
श्याम को आधी रात और सुनसान रास्ते पर कार चलाते हुए जल्द घर पहुंचने की कोशिश में थे. इसी दौरान उनकी नजर सड़क पर खड़ी एक महिला पर पड़ी, जो उनसे आगे जाने के लिए लिफ्ट मांग रही थी. श्याम ने उस महिला की मदद करने का फैसला किया और कार रोक दी. महिला उनके साथ कार की फ्रंट सीट पर आकर बैठ गई. श्याम ने रास्ते में उससे बात करने की काफी कोशिश की, लेकिन वह अपना चेहरा दूसरी ओर करके चुप बैठी रही.
कांप उठे थे श्याम रामसे
वह महिला दिखने में तो बेहद खूबसूरत थी, लेकिन उतनी ही वह अजीब भी थी. श्याम की नजर अचानक उस महिला के पैरों पर पड़ी, जिन्हें देखते ही वह डर से कांप उठे. क्योंकि महिला के पैर पीछे की ओर मुड़े हुए थे. उन्होंने तुरंत घबराकर ब्रेक लगा दी. गाड़ी रुकते ही महिला कार से बाहर निकली और कई अंधेरे में जैसे कहीं गायब हो गई. इस हादसे ने श्याम रामसे को बुरी तरह से डरा दिया था. उस रात वह किसी तरह मुंबई अपने घर तो पहुंच गए, लेकिन ये घटना कभी उनकी यादों में धुंधली नहीं हुई.
घटना के 5 साल बाद बनाई फिल्म
श्याम रामसे ने अपने दिमाग में बंद इस घटना को पर्दे पर उतारने का फैसला कर लिया. उन्होंने इस घटना के करीब 5 साल बाद 1988 में फिल्म 'वीराना' को ऐसे पर्दे पर पेश किया कि उस दौर में हर किसी की रुह कांप गई. फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों से खूब वाहवाही मिली. खैर, इस घटना में कितनी सच्चाई है ये तो सिर्फ श्याम रामसे ही जानते थे, लेकिन इसका जिक्र फतेहचंद रामसे की नातिन अलीथा प्रीती कृपलानी द्वारा उनकी किताब ‘घोस्ट इन ऑवर बैकयार्ड’ में किया गया है.
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