नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ बुधवार को देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हे पद एवं गोपानियता की शपथ दिलाएगी. देश के न्यायिक इतिहास में यह पहली बार होगा, जब पहले मुख्य न्यायाधीश रह चुके शख्स के बेटे भी चीफ जस्टिस पद की शपथ लेंगे.
पिता बने थे देश के 16वें मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ वाईवी चंद्रचूड़ 1978 में देश के 16वें न्यायाधीश बने थे और सात साल इस पद पर रहे थे. ये किसी मुख्य न्यायाधीश का सबसे लंबा कार्यकाल है. जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल का होगा. और वे 10 नवंबर 2024 तक सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे. पिता के रिटायर होने के 37 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सीजेआई बनने जा रहे हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी एलएलबी की डिग्री पूरी करने के बाद स्कॉलरशिप पर हावर्ड पहुंचे थे. हावर्ड से उन्होंने मास्टर्स इन लॉ (एलएलएम) और डॉक्टरेट इन जूडिशियल साइंसेस की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद अधिवक्ता के तौर पर उन्होने सुप्रीम कोर्ट, गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली के हाईकोर्ट में रहे. इसके बाद वो बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए गए.
1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया. वो 1998 से 2000 एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) भी रहे. मार्च 2000 में उन्हे बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. अक्टूबर 2013 में उन्होने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद की शपथ ली थी.
पिता का फैसले पलटने वाले जज
जस्टिस चंद्रचूड़ अपने पिता वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसलों को पलटने के लिए भी सुर्खियों में रहे हैं. उन्होंने निष्पक्षता और पारदर्शिता को न्यायिक प्रणाली के लिए अहम मानते हुए पूर्व सीजेआई और अपने पिता की पीठ द्वारा दिए गए व्यभिचार व मौलिक अधिकार के फैसलों को पलट दिया था.
देश में संविधान के तहत मिले अधिकारों की व्याख्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 24 अगस्त 2017 के फैसले को ऐतिहासिक फैसला माना जाता है. जब सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संवैधानिक पीठ ने निजता के अधिकार पर को मौलिक अधिकार बताया था. लेकिन इस फैसले में सर्वाधिक चर्चा अगर किसी जज की हुई तो वे थे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़.
क्योकि इस फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता जस्टिस वाईवाई चंद्रचूड़ द्वारा 31 वर्ष पूर्व दिए फैसले के खिलाफ अपना फैसला दिया था. अपने फैसले में जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ ने लिखा, "निजता का अधिकार संविधान में निहित है, ये अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से निकल कर आता है."
जब बेटे ने पिता के फैसले को पलटा था?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता के द्वारा एडल्ट्री को लेकर दिए फैसले को भी पलटते हुए असंवैधानिक माना था. 1985 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला.
लेकिन महिला के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती थी. इसी कानून को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में यह फैसला सुनाया गया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है. इस बेंच में जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि 'व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे?
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