नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा है कि साइबर अपराध कभी कभी राजनीति से प्रेरित होते हैं, ऐसे मामलों में सहयोग करने के लिए देशों की इच्छा की सामान्य कमी देखी गई है. जस्टिस रस्तोगी तजाकिस्तान में आयोजित हो रहे एससीओ के सदस्य देशों के सुप्रीम कोर्ट अध्यक्षों के दो दिवसीय 17वें सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
साइबर अपराध पर जस्टिस रस्तोगी ने क्या कहा?
सम्मेलन का शुभारंभ गुरुवार सुबह 9 बजे तजाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शेरमुखाम्मद शोहियान के संबोधन से हुआ. भारत की ओर से इस सम्मेलन में शामिल हुए जस्टिस अजय रस्तोगी ने साइबर अपराध के मामलों में एससीओ सदस्य देशों का अनुभव विषय पर अपना संबोधन दिया. जस्टिस अजय रस्तोगी द्वारा इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में क्या-क्या कहा..
'साइबरस्पेस एक काल्पनिक वातावरण है, जिसमें लोग कंप्यूटर नेटवर्क पर आपस में संवाद करते हैं. चूंकि साइबर स्पेस एक अमूर्त वर्चुअल दुनिया हैं जिसकी कोई सीमा, द्रव्यमान या ठोस वजूद नहीं है.'
'साइबर अपराध के परिणामस्वरूप ही दुनियाभर में अपराध की नई और मौजूदा प्रकृति का विकास हुआ हैं, जो एक बटन दबाने भर से कई न्यायालयों को प्रभावित कर सकता है.'
1. दुनियाभर के देश साइबर अपराध के हमले से जूझ रहे हैं जिससे उनके नागरिकों, सरकारी संस्थानों, सिविल सोसायटी और बिजनेस को प्रभावित किया है.
निस्संदेह अधिकांश डिजिटल अपराधी बहुत प्रशिक्षित असाधारण रूप से विशेषज्ञ और आईटी के चालाक हैं. उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रोग्रामिंग में बेहद जटिल एन्क्रिप्शन और बोल्ट शामिल हैं और इन्हें समझना मुश्किल है.
कहने की जरूरत नहीं है कि डिजिटल धोखाधड़ी और गलत काम एक परेशान करने वाली दर से विकसित हो रहे हैं. अपराधी कंप्यूटरीकृत नवाचारों का दुरुपयोग कर रहे हैं ताकि वे खुद को रूढिजन्य और अतिरिक्त रचनात्मक प्रकार के अनियमित और अप्रत्याशित उल्लंघनों को बेहद चालाकी से कर सकें.
कई साइबर हैकर राज्य, गैर राज्य, पेशेवर, फ्रीलांसर के समूह, तथाकथित गुमनाम समूह दुनिया भर में काम करते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमले करते हैं और इस तरह के कई उदाहरण हमारे सामने है.
समय की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय साइबर अपराध कानूनों को लागू किया जाए, साक्ष्य आवश्यकताओं के अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण को लेकर समन्वय बनाया जाए, साइबर अपराध मामलों पर पारस्परिक कानूनी सहायता और देशों के बीच डिजिटल साक्ष्य का समय पर संग्रहण, संरक्षण और आपस में साझा किये जाए.
वर्तमान में भारत में कुल 682 मिलियन सक्रिय इंटरनेट यूजर हैं. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का अनुमान है कि 2025 तक भारत में 900 मिलियन इंटरनेट यूजर होंगे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 2014 से पंजीकृत साइबर अपराधों की संख्या कई गुना बढ़ गई है और वर्ष 2020 में 50000 को पार कर गई हैं.
डिजिटाइजेशन और तकनीकी प्रगति के मामले में भारत वास्तव में दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते देशों में से एक है. साइबर अपराधों के खिलाफ राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 भारत सरकार द्वारा लाया गया पहला व्यापक दस्तावेज था.
यह सच है कि भारत सरकार ने साइबर अपराध की शिकायतों को नियंत्रित करने के लिए बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि साइबर अपराध की 60 प्रतिशत शिकायतें वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित है.
भारत सरकार द्वारा साइबर अपराधों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं. राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय परिसरों को देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित किया गया है.
तकनीकी जांच और डिजिटल फोरेंसिक मामलों को सुलझाने में मदद करने के लिए और उनसे संबंधित कानून और व्यवस्था की स्थितियों की आवश्यकताओं के आधार पर पुलिस और न्यायिक प्रणाली में फोरेंसिक विज्ञान को शामिल करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में विश्वविद्यालय परिसरों की स्थापना की गई है.
2. साइबर सुरक्षा के लिए हमें 5 मुख्य क्षेत्रों में साइबर सुरक्षा पर ध्यान देना है, जिसमें कानूनी उपाय, तकनीकी उपाय, संगठनात्मक उपाय, क्षमता निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं.
A कानूनी उपाय-
साइबर अपराध विरोधी रणनीति तैयार करते समय कानूनी उपाय शायद सबसे अधिक जरूरी है. इन सफल कानूनी उपायों की आवश्यकताएं हैं. चाइल्ड पोर्नोग्राफी, कॉपीराइट उल्लघंन, कम्प्यूटर फ्रॉड, डाटा में छेड़छाड़ और उपकरणों में अवैध संचालन करना जैसे कृत्यों को जरूरी अपराधिक कानूनी प्रावधानों के जरिए अपराध बनाना आवश्यक है. साइबर अपराधों की जांच के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आवश्यक उपकरण और यंत्र उपलब्ध कराने आवश्यक है.
B तकनीकी और प्रक्रियात्मक उपाय-
साइबर अपराध जांच के लिए अक्सर एक मजबूत तकनीकी घटक की आवश्यकता होती है. जिसके लिए इन उपायों की प्रमुख आवश्यकताएं हैं. जांच के दौरान साक्ष्य की सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है.
तकनीकी को सुरक्षा प्रदान करने वाले सिस्टम का विकास किया जाना जरूरी है. जैसे अच्छी तरह से संरक्षित कंप्यूटर सिस्टम जिन पर हमला करना मुश्किल हों और उनमें बेहद सुरक्षित स्टैंडर्ड तकनीक प्रयोग करने के लिए सुधार किया जा सके.
C अंतरराष्ट्रीय सहयोग-
इंटरनेट पर एक साथ बड़ी संख्या में डाटा ट्रांसफर करने की प्रक्रिया में एक से अधिक देश प्रभावित होते हैं. इसके साथ ही विदेशों में स्थित कंपनीया बड़ी संचख्या में इंटरनेट सेवा या होस्टिंग सेवा प्रदान करती हैं. ऐसे मामलो में जहां अपराधी उसी देश में काम नहीं कर रहे हैं, जहां पर पीड़ित कार्य कर रहे हैं. ऐसे मामलों की जांच के लिए प्रभावित सभी देशों की जांच एजेंसियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है.
कई देशों के बीच और एक देश के भीतर जांच के लिए भी सक्षम अधिकारियों की सहमति अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना मुश्किल है. खासतौर से राष्ट्रीय संप्रभुता के सिद्धांत के मामले में..
राष्ट्रीय संप्रभुता का सिद्धांत एक देश को स्थानीय अधिकारियों की अनुमति के बिना दूसरे देश के क्षेत्र में जांच करने की अनुमति नहीं देता है. इसलिए साइबर अपराधों का मुकाबला करने के लिए वैश्विक प्रयास और सहयोग अनिवार्य है.
3. यह एक निर्विवाद तथ्य है कि पिछले 2 दशकों में साइबर अपराध तेजी से बढ़े हैं, मेरी समझ से साइबर अपराधों से निपटने के दौरान जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है वे इस प्रकार हैं.
A क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियां-
साइबर अपराधों की जांच की सबसे बड़ी चुनौती किसी भी साइबर अपराध में शामिल लेनदेन की वैश्विक प्रकृति है. साइबर जगत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदायों द्वारा भौगोलिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक कारणों के आधार पर खींची गई अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को कमजोर कर दिया है.
इस तरह के सीमाहीन साइबर अपराधों में अधिकार क्षेत्र का मुद्दा आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए एक जटिल मुद्दा बन जाता है. भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता की तरह पारंपरिक कानून वास्तव में क्षेत्रीय और अतिरिक्त क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बारे में प्रावधान प्रदान करते है, लेकिन साइबर अपराध की मूल प्रकृति के लिए कहीं अधिक नियमों की आवश्यकता है, इसलिए कुछ सुधारों की आवश्यकता है.
B साइबर अपराध कानूनों की समझ का अभाव-
कई मामलों में यह देखा गया है कि जांच अधिकारियों को साइबर अपराध के मामलों और उनसे जूड़े हुए कानूनों की समझ के बारे में भी जानकारी तक नहीं है.
C विदेशों में जांच में चुनौतियां-
अक्सर यह देखा गया है कि साइबर अपराध के मामलों में जरूरी डाटा उपलब्ध कराने के लिए विदेशी बिचौलियों के असहयोग के कारण जांचे लंबी अवधि के लिए लंबित रहती है.
D जांच और संग्रह के कौशल की कमी-
यह देखा गया है कि जांच अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कस्टडी में लेने की श्रृंखलाबद्ध कड़ी को संभालने और बनाए रखने के बारे में जानकारी नहीं होती है.
जांच अधिकारियों को मेटाडेटा के संभावित मूल्य और इसका उपयोग न करने के संभावित परिणामों के बारे में पता होना चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्टैंडर्ड मेटाडेटा के साथ संग्रहित किया जाना चाहिए ताकि डाटा के निर्माण का संदर्भ स्पष्ट हो.
E स्वीकार्यता और प्रामाणिकता के ज्ञान का अभाव-
एक स्रोत और प्रामाणिकता के रूप में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के दो प्रमुख सिद्धांत हैं. जिनका आमतौर पर संबंधित अनुभागों के संदर्भ में अनुपालन नहीं किया जा रहा है. लंबे समय तक उनकी फोरेंसिक रिपोर्ट प्राप्त नहीं की जाती है और वे लंबे समय तक पेंडिंग रहती हैं.
F साइबर सुरक्षा में विशेषज्ञता का अभाव-
कुछ देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास एक समर्पित साइबर सुरक्षा विंग है, जहां इस प्रतिभा को तकनीकी रूप से प्रतिभाशाली नागरिकों से व्यवस्थित रूप से प्राप्त किया जाता है. सुरक्षा विशेषज्ञता के स्रोत बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. संगठनों को इस प्रतिभा को व्यवस्थित रूप से विकसित करने पर विचार करना चाहिए.
G साइबर अपराधियों को ट्रैक करना और ट्रेस करना-
साइबर अपराध एक बढ़ता हुआ व्यावसायिक मॉडल है. डार्कनेट पर उपकरणों के लगातार वृद्धि ने साइबर अपराधियों को काम पर रखने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए दुर्भावनापूर्ण सेवाओं को अधिक किफायती और आसानी से सुलभ बना दिया है.
4. साइबर क्राइम जांच के दौरान कई बाधाएं आती हैं.
A साइबर अपराधियों की गुमनामी और आरोपण की समस्या-
साइबर अपराधी अपनी वास्तविक पहचान और स्थान को छिपाने के लिए नकली पहचान या फेक वीपीएन सर्विस का भी सहारा लेते हैं. यह जांच के दौरान अपराध के आरोपण की समस्या भी पैदा करता है.
B राष्ट्रीय साइबर अपराध कानूनों में सामंजस्यपूर्ण का अभाव-
साक्ष्यों के अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण की सख्त आवश्यकता है. सदस्य देशों के बीच साइबर क्राइम से जुड़े मामलो की जांच के लिए आपसी कानूनी सहायता, समय पर डिजिटल साक्ष्यों का संग्रहण और समय पर उन साक्ष्यों को साझा करना एक बड़ी बाधा है. साइबर अपराध कभी कभी राजनीति से प्रेरित होते है, ऐसे मामलों में सहयोग करने के लिए देशों की इच्छा की सामान्य कमी देखी गई है.
C तकनीकी चुनौतियां-
साइबर अपराध की जांच करने वाली एजेंसियों को भी तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उदाहरण के लिए कई डिजिटल उपकरणों; जैसे कि एक आई फोन में ऑपरेटिंग सिस्टम और सॉफ्टवेयर पर मालिकाना हक होते हैं, उनमें मौजूद डिजिटल साक्ष्य की पहचान करने, एकत्र करने और संरक्षित करने के लिए विशेष उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता होती है. जांच एजेंसियों के पास इन डिजिटल उपकरणों से जुड़े साइबर अपराध की जांच को पर्याप्त रूप से संचालित करने के लिए आवश्यक उपकरण और डिजिटल फोरेंसिक उपकरण उपलब्ध नहीं हो सकते है.
अन्य धाराओं में इन जांचों को संचालित करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मौजूदा सीमित क्षमताएं भी शामिल है.
5. भारत और उसका दृष्टिकोण-
विश्व में साइबर कानूनों को लागू करने वाला भारत 12वां देश है. इसकी शुरुआत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के साथ हुई थी, जिसके बाद में आईटी संशोधन अधिनियम 2008 द्वारा संशोधित किया गया है.
6. साइबर अपराध के मामलों से निपटने के लिए मेरे सुझाव इस प्रकार हैं.
A. समाज के बदलते स्वरूप ने वर्तमान समय में न्यायिक प्राधिकरणों की भूमिका को बढ़ा दिया है. सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में जब अपराधी नई तकनीक का इस्तेमाल अपराध को अंजाम देने में कर रहे हैं, ऐसे में इन अपराधों को रोकने के लिए इन तकनीकी अपराधों तक न्यायिक पहुंच भी जरूरी है जिसके लिए उचित न्यायिक दृष्टिकोण की जरूरत है जिसमें तकनीक का समावेश हों.
B. अदालतों को सीमा पार के साक्ष्य लेने में सहयोग करने पर बल देना चाहिए. जब भी कोई अदालत किसी दूसरी अदालत से अनुरोध प्राप्त करती है तो अनुरोध करने वाली अदालत को साक्ष्यस से जुड़े सभी प्रतिबंध या शर्तों के बारे में संपूर्ण जानकारी के साथ सूचित करना चाहिए, जिनके अधिन उस अदालत द्वारा साक्ष्यों को लिया जा सके.
C. सभी सदस्य देशों को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और अदालती कार्यवाही में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के लाभ और उनके महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना चाहिए.
D. सभी देशों को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से जुड़े टेक्निकल स्टेंडर्ड को रिव्यू करने के अधिन रखना चाहिए.
E. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से निपटने वाले पेशेवरों को इन साक्ष्यों को संभालने और उनकी देखभाल करने के लिए आवश्यक इससे जुड़े विषयों का प्रशिक्षण आवश्यक होना चाहिए.
F. जजों और लीगल प्रैक्टिशनर को आईटी के नए अपडेट के बारे जानकारी होनी चाहिए, जो कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं या उनके महत्व को बदल सकते हैं.'
इसे भी पढ़ें- ताजिकिस्तान पहुंचे जस्टिस अजय रस्तोगी, सुप्रीम कोर्ट अध्यक्षों के सम्मेलन में करेंगे भारत का प्रतिनिधित्व
Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.