'हर नुक्कड़ पर नहीं है मस्जिद की जरूरत', कोर्ट ने कुरान पर क्यों कहा ऐसा?

केरल हाईकोर्ट ने मस्जिद को लेकर बड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि 'कुरान यह नहीं कहता कि हर नुक्कड़ पर मस्जिद की जरूरत है.'

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 26, 2022, 07:58 PM IST
  • केरल हाईकोर्ट ने कुरान पर की बड़ी टिप्पणी
  • मस्जिद के निर्माण की अनुमति देने से इनकार
'हर नुक्कड़ पर नहीं है मस्जिद की जरूरत', कोर्ट ने कुरान पर क्यों कहा ऐसा?

नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कई मस्जिदों वाले राज्य के एक इलाके में एक और मस्जिद के निर्माण की अनुमति देने से इनकार कर दिया. अदालत ने यह देखते हुए कि राज्य में पहले से ही बड़ी संख्या में धार्मिक संरचनाएं हैं और जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से भी इनकी संख्या बहुत अधिक है, एक और मस्जिद के निर्माण की अनुमति नहीं दी.

केरल हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
न्यायमूर्ति पी. वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि केरल, जिसे 'ईश्वर का अपना देश' कहा जाता है, धार्मिक स्थलों से भरा हुआ है. उन्होंने कहा, 'केरल की अजीबोगरीब भौगोलिक स्थिति के कारण, इसे 'ईश्वर का अपना देश' के रूप में जाना जाता है. लेकिन हम धार्मिक स्थलों और प्रार्थना कक्षों (प्रेयर हॉल) से थक चुके हैं और हम दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों को छोड़कर किसी भी नए धार्मिक स्थान और प्रार्थना हॉल की अनुमति देने की स्थिति में नहीं हैं.'

अदालत ने कहा कि भले ही मुस्लिम समुदाय के लिए मस्जिदें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पवित्र कुरान के अनुसार यह जरूरी नहीं है कि हर नुक्कड़ पर एक मस्जिद हो.

'पवित्र कुरान की आयतें मुस्लिम समुदाय के लिए मस्जिद के महत्व को स्पष्ट रूप से उजागर करती हैं. लेकिन पवित्र कुरान के उपरोक्त छंदों में यह नहीं कहा गया है कि हर नुक्कड़ और कोने में एक मस्जिद आवश्यक है.. 'हदीस' या पवित्र कुरान में यह नहीं कहा गया है कि मस्जिद हर मुस्लिम समुदाय के सदस्य के घर के बगल में स्थित होनी चाहिए. दूरी कोई मापदंड नहीं है, लेकिन मस्जिद तक पहुंचना महत्वपूर्ण है.'

अदालत ने किसे 'खतरनाक' करार दिया?
अदालत ने 2011 की जनगणना के आधार पर धार्मिक संरचनाओं पर एक अध्ययन का भी उल्लेख किया, जिसे उसने 'खतरनाक' करार दिया था, क्योंकि उसमें कहा गया था कि केरल में गांवों के रूप में धार्मिक संरचनाओं की संख्या 10 गुना और अस्पतालों की संख्या से 3.5 गुना अधिक है.

अदालत ने नोट किया, 'केरल धार्मिक संस्थानों और प्रार्थना कक्षों से थक गया है.. यदि प्रत्येक भक्त .. हिंदू, ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, पारसी, आदि अपने निवास के पास धार्मिक स्थलों और प्रार्थना कक्षों का निर्माण शुरू करते हैं, तो राज्य को सांप्रदायिक असामंजस्य सहित गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ेगा. इस मामले में, खुफिया रिपोर्ट और पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर वाणिज्यिक भवन को धार्मिक प्रार्थना कक्ष में बदलने की अनुमति दी जाती है, तो सांप्रदायिक वैमनस्य की संभावना है. यह एक संवेदनशील मुद्दा है.'

36 मस्जिदें आसपास के क्षेत्र में थीं मौजूद
तत्काल मामले में, चूंकि 36 मस्जिदें आसपास के क्षेत्र में मौजूद थीं, इसलिए अदालत ने कहा कि उस आसपास के क्षेत्र में दूसरी मस्जिद की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस्लाम के अनुयायी पास की अन्य मस्जिदों में जा सकते हैं. अदालत ने खासकर इस तथ्य पर विचार करते हुए यह बात कही कि अधिकांश नागरिकों के पास किसी प्रकार के वाहन या सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच है.

अदालत ने कहा, 'यह सच है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 (ए) में कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थान स्थापित करने और बनाए रखने का अधिकार होगा. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि वे देश के कोने-कोने में धार्मिक स्थलों का निर्माण कर सकते हैं. केरल एक बहुत छोटा राज्य है.'

न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने प्रशंसित कवि, दिवंगत वायलर रामवर्मा के एक फिल्म गीत का भी उल्लेख किया, जो बताता है कि कैसे मनुष्य ने धर्मों का निर्माण किया, धर्म ने ईश्वर का निर्माण किया और उन्होंने मिलकर दुनिया और मानवता को विभाजित किया.

इमारत को मुस्लिम प्रार्थना स्थल में बदलने की मांग
यह फैसला एक व्यावसायिक इमारत को मुस्लिम प्रार्थना स्थल में बदलने की मांग वाली एक याचिका पर दिया गया है, ताकि आसपास के मुसलमानों को मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए सक्षम बनाया जा सके.

जिला पुलिस प्रमुख की रिपोटरें के आधार पर जिला कलेक्टर ने अनुरोध पर विचार किया और इसे अस्वीकार कर दिया, जिन्होंने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता के मौजूदा व्यावसायिक भवन से 5 किलोमीटर के दायरे में लगभग 36 मस्जिदें स्थित हैं. इसके चलते याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

अदालत ने एक सरकारी आदेश के माध्यम से राज्य द्वारा जारी 'सांप्रदायिक अशांति को रोकने और नियंत्रित करने और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए दिशानिर्देशों के मैनुअल' के माध्यम से देखा और पाया कि अधिभोग के परिवर्तन के लिए भी, जिला अधिकारियों से अनुमति आवश्यक है.

कोर्ट ने क्यों खारिज कर दी याचिका
वर्तमान मामले में, अदालत ने राज्य के अधिकारियों के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया और याचिका खारिज कर दी. इसके बाद इसने राज्य सरकार और पुलिस अधिकारियों को जरूरी निम्नलिखित निर्देश जारी करने के लिए कहा.

इसने राज्य सरकार और पुलिस अधिकारियों को निम्नलिखित निर्देश जारी करने के लिए कहा, जिसमें केरल के मुख्य सचिव और राज्य के पुलिस प्रमुख सभी संबंधित अधिकारियों को यह देखने के लिए आवश्यक आदेश/ परिपत्र जारी करने को कहा गया कि किसी भी धार्मिक स्थल या प्रार्थना कक्ष का कोई अवैध संचालन न हो.

निर्देश दिए गए कि अगर ऐसा कोई धार्मिक स्थल या प्रार्थना कक्ष बिना आवश्यक अनुमति के चल रहा है तो उसे तत्काल बंद करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए.

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि धार्मिक स्थलों और प्रार्थना कक्षों के लिए आवेदन पर विचार करते समय निकटतम समान धार्मिक स्थान/प्रार्थना कक्ष की दूरी एक मानदंड होगा, जिस पर विचार किया जाना चाहिए.

इसे भी पढ़ें- सोनाली फोगाट केस में बड़ा खुलासा, जबरन दिया गया था ड्रग जिससे खो बैठीं होश

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

ट्रेंडिंग न्यूज़