चार्जशीट दायर होने तक दुष्कर्म पीड़िता के बयान किसी भी व्यक्ति को नहीं बताए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट

देश के सभी हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, आपराधिक मामलों में शिवन्ना बनाम उत्तर प्रदेश फैसले में ​सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप प्रावधान करे.  कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में चार्जशीट दायर होने तक सीआरपीसी की धारा 164 में दिए गए दुष्कर्म पीड़िता के बयान को किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया जा सकता है.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Nov 5, 2022, 02:26 PM IST
  • पीड़िता के पिता की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई
  • याचिका में कहा गया कि निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है
चार्जशीट दायर होने तक दुष्कर्म पीड़िता के बयान किसी भी व्यक्ति को नहीं बताए जा सकते: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए दुष्कर्म पीड़िताओं के बयानों की प्रति को लेकर पूर्व में दिए गये अपने फैसलों को एक बार फिर से स्पष्ट किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म के मामले में चार्जशीट दायर होने तक सीआरपीसी की धारा 164 में दिए गए दुष्कर्म पीड़िता के बयान को आरोपी सहित किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया जा सकता.

सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने विगत 1 नवंबर को एक दुष्कर्म पीड़िता के पिता की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए ये व्यवस्था दी है. पीठ ने वर्ष 2014 में दिए गए नॉनविनकेरे पुलिस बनाम शिवन्ना उर्फ ​​तारकरी शिवन्ना के फैसले और 2020 में दिए गए ए बनाम उत्तर प्रदेश राज्य फैसले में दी गयी व्यवस्था को पुन: दोहराया है.  

बयानों की प्रति किसी को भी नहीं दी जा सकती
दुष्कर्म पीड़िता के पिता की ओर से दायर अवमानना याचिका में ये आरोप लगाया गया कि दुष्कर्म पीड़िता के बयान के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसलों की पालना नहीं की जा रही है. याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के अनिवार्य निर्देशों का जानबूझकर उल्लंघन किया जा रहा है.

पिता ने याचिका में कहा कि उसकी बेटी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय में जारी निर्देश का उल्लंघन करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज उसकी बेटी के बयान की एक प्रति आरोपी को दे दी गयी है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलो में स्पष्ट किया गया है कि दुष्कर्म पीड़िता के बयान की जानकारी किसी को भी नहीं दी जा सकती है.

क्या है सुप्रीम कोर्ट का 2014 का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वप्रथम 25 अप्रैल 2014 को नॉनविनकेरे पुलिस बनाम शिवन्ना उर्फ ​​तारकरी शिवन्ना State of Karnataka by Nonavinakere Police Versus Shivanna @ Tarkari Shivanna के फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए देश के सभी पुलिस थानों निर्देश जारी किए थे.

-दुष्कर्म के मामले में सूचना प्राप्त होने पर, जांच अधिकारी सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए किसी भी महानगर/वरीयत न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास ले जाने के लिए तत्काल कदम उठाएगा.

-मजिस्ट्रेट के समक्ष पीड़िता द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान की एक प्रति जांच अधिकारी को तुरंत सौंपी जानी चाहिए. इसके साथ ही जांच अधिकारी को यह स्पष्ट निर्देश होंगे कि वह धारा 164 सीआरपीसी के तहत इस तरह के बयान की सामग्री किसी भी व्यक्ति को तब तक उपलब्ध नहीं कराई जा सकती जब ​तक कि उस मामले में सीआरपीसी की धारा 173 सीआरपीसी के चार्जशीट/अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की जाती.

- जांच अधिकारी विशेष रूप से उस तारीख और समय को दर्ज करेगा जहां उसे दुष्कर्म के अपराध के बारे में जानकारी हुई और जिस तारीख और समय पर वह पीड़िता को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करता है.

-जांच अधिकारी को किसी भी कारण से अगर पीड़िता को मजिस्ट्रेट के पास ले जाने में 24 घंटे से अधिक की देरी होती है, तो उसे केस डायरी में उसके कारणों को हर हाल में दर्ज करना होगा. और केस डायरी की एक प्रति मजिस्ट्रेट को सौंपनी होगी.

-जांच अधिकारी दुष्कर्म पीड़िता की तुरंत चिकित्सकीय जांच के लिए उत्तरदायी है. चिकित्सा जांच रिपोर्ट की एक प्रति तुरंत मजिस्ट्रेट को सौंपी जाना जरूरी है. जो सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करती है.

और 2020 के फैसले में भी
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अक्टूबर 2020 को ए बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में भी महत्वपूर्ण फैसला देते हुए दुष्कर्म पीड़िता के बयानों को लेकर स्पष्ट किया. इस फैसले के पैरा संख्या 20 और 21 में किए गए प्रावधान इस तरह है
-सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के तार्किक विस्तार के रूप में, कोई भी व्यक्ति धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान की एक प्रति का हकदार नहीं है, जब तक कि आरोप पत्र दायर होने के बाद अदालत द्वारा उचित आदेश पारित नहीं किया जाता है.

-दुष्कर्म पीड़िता के इस तरह के बयान की एक प्रति प्राप्त करने का अधिकार केवल संज्ञान लेने के बाद और धारा 207 और 208 सीआरपीसी द्वारा विचार किए जाने के बाद ही उत्पन्न होगा और इससे पहले नहीं.

तथ्य सही, लेकिन नहीं करेंगे अवमानना की कार्रवाई
सीजेआई की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि याचिका पेश किए जाने पर इस न्यायालय ने संबंधित को नोटिस जारी किया और उसके बाद संबंधित न्यायालय को निर्देश दिया जिसने कुछ प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रति प्रदान की.

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर रखे गए दस्तावेज़ इंगित करते हैं कि आरोपी ने पीड़िता के बयान की प्रतिलिपि के लिए आवेदन किया था और प्रतिलिपि विभाग द्वारा जारी किए गए स्टाम्प के तहत ये प्रति दी गयी थी. पीठ ने कहा कि इसके सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर में संबंधित न्यायालय द्वारा पेश किए गए जवाब में कहा गया है कि कोर्ट की ओर से किसी को प्रति नहीं दी गयी है बल्कि ये प्रतिलिपि शाखा द्वारा दिया जाना बताया गया है.

पीठ ने कहा कि सिद्धांत रूप से अवमानना ​​याचिका में जो तर्क पेश किए गए, वह बिल्कुल सही है. पीठ ने माना कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद याचिकाकर्ता की बेटी के बयान के मामले में प्रतिलिपि के लिए आवेदन किया गया था और आरोपी को बयान की प्रति दी गयी थी.पीठ ने ये भी माना कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान की प्रति को न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में व्यापक रूप से संदर्भित किया गया था.

सीजेआई ललित की पीठ ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि संबंधित न्यायालय ने भी इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के उल्लंघन पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जैसा भी हो, हम इस बात से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि मामले के वर्तमान तथ्यों और परिस्थितियों में हमारे अवमानना ​​क्षेत्राधिकार में किसी भी कार्रवाई को शुरू करने की आवश्यकता है. यद्यपि हम इस तरह की प्रथा को स्वीकार नहीं करते हैं, हम अवमानना ​​​​में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से बचते हैं.

देश के सभी हाईकोर्ट को निर्देश
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की अधिवक्ता तान्या अग्रवाल ने कहा कि देश भर के हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए क्रिमिनल प्रैक्टिस के नियमों में सुप्रीम कोर्ट के दोनों ही फैसलों के निर्देशों के अनुरूप कोई प्रावधान नहीं किया गया है. इसके अलावा, अधिकांश हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए नियम व्यापक रूप से लिखे गए हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि इन निर्देशों की मंशा और भावना के अनुरूप भी नहीं हैं"

तान्या अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि देश के विभिन्न हाईकोर्ट को उनके द्वारा क्रिमिनल प्रैक्टिस के लिए बनाए गए नियमों में शिवन्ना उर्फ तारकरी शिवन्ना और सुश्री ए बनाम उत्तर प्रदेश के फैसले के प्रावधान शामिल करने के लिए बाध्य किया जाए.

अधिवक्ता के तर्क से सहमति जताते हुए सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने देश के सभी हाईकोर्ट को सुझाव एवं निर्देश जारी करते हुए कहा कि हम अधिवक्ता अग्रवाल द्वारा किए गए अनुरोध को मजबूत मानते हैं और सभी हाईकोर्ट को सुझाव देते हैं कि शिवन्ना उर्फ तारकरी शिवन्ना और ए बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के फैसलो में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप प्रावधानों को शामिल करते हुए क्रिमिनल प्रैक्टिस के लिए उचित संशोधन करते हुए नियम बनाए जाएं.

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