जम्मू कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कौन-कौन हुआ निराश? जानें क्या है परिसीमन का पूरा मामला

जम्मू कश्मीर में परिसीमन के खिलाफ याचिका शीर्ष अदालत में खारिज हो गई है. अदालत के इस फैसले पर कई क्षेत्रीय पार्टियों ने नाराजगी जाहिर की है. पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने क्या प्रतिक्रिया दी, आपको इस रिपोर्ट में समझाते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 13, 2023, 11:32 PM IST
  • जम्मू कश्मीर में परिसीमन के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में हुई खारिज
  • 'संसद को होता है जम्मू-कश्मीर के लिए वैधानिक निकाय के गठन का अधिकार'
जम्मू कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कौन-कौन हुआ निराश? जानें क्या है परिसीमन का पूरा मामला

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी और कहा कि इसमें कुछ भी ‘गैर-कानूनी’ नहीं है.

जम्मू कश्मीर के परिसीमन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की एक पीठ ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने से संबंधित मामले का निपटारा नहीं कर रही है, क्योंकि उससे संबंधित याचिका शीर्ष अदालत की दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है. पीठ ने जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा एवं लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं पुनर्निधारित करने के लिए परिसीमन आयोग के गठन से संबंधित केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए संविधान के अनुच्छेद तीन, चार और 239ए का संदर्भ दिया तथा कहा कि संसद को केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी तथा जम्मू-कश्मीर के लिए वैधानिक निकाय के गठन का अधिकार होता है.

पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत विचार कर रही है. अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था.

जम्मू-कश्मीर से केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को कर दिया था खत्म
केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करके जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था. शीर्ष अदालत ने परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर पिछले साल एक दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पिछले साल एक दिसंबर को सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत (Supreme Court) को बताया था कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार है.

न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने कहा कि इस फैसले से वह ‘निराश’ नहीं है और उसे अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं में जीत हासिल करने का पूरा भरोसा है.

नेशनल कांफ्रेंस ने अदालत के फैसले पर कहा- हम इस फैसले से निराश हैं
नेकां के प्रवक्ता इमरान नबी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, 'हम इस फैसले से निराश नहीं हैं. हम आश्वस्त हैं कि जब कभी शीर्ष अदालत अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई करेगी, तब हमारे तरकश में कई तीर होंगे, जिससे यह मामला हमारे पक्ष में घूम जाएगा, क्योंकि हम संविधान के दायरे के बाहर कुछ भी नहीं चाहते.'

हालांकि, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने के कोई मायने नहीं हैं, जब अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाएं शीर्ष अदालत में लंबित हैं.

महबूबा मुफ्ती का तंज- जम्मू-कश्मीर के लोग हर रोज ठगा हुआ महसूस कर रहे 
महबूबा ने मीडियाकर्मियों से कहा, 'हमने परिसीमन आयोग को शुरू में ही खारिज कर दिया था. हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या फैसला आया है.' कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई ने कहा कि उसे इस फैसले से निराशा हुई है. पार्टी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग ‘हर रोज ठगा हुआ’ महसूस कर रहे हैं.

जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जहांजैब सिरवाल ने आरोप लगाया कि परिसीमन की कार्रवाई भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए की जा रही है. अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एएनसी) के उपाध्यक्ष मुजफ्फर शाह ने कहा, 'इसमें कुछ नया नहीं है, हमें इसी फैसले की उम्मीद थी.'

उन्होंने कहा, 'मैं केवल यही कह सकता हूं कि दुर्भाग्यवश इस परिसीमन के मामले को प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा नहीं उठाया गया.'

परिसीमन आयोग की स्थापना किसी भी रूप में नहीं है 'गैर-कानूनी'
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि छह मार्च, 2020 के आदेश के तहत परिसीमन आयोग की स्थापना किसी भी रूप में ‘गैर-कानूनी’ नहीं है, जिसके जरिये केंद्र शासित प्रदेश में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. पीठ ने अपने 54 पन्नों के फैसलों में कहा, '...2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर केंद्र शासित प्रदेश को 90 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने के उद्देश्य से परिसीमन आयोग द्वारा किए गए परिसीमन/निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्समायोजन में कुछ भी अवैध नहीं है.'

यह याचिका जम्मू कश्मीर के निवासी हाजी अब्दुल गनी खान अैर मोहम्मद अयूब मट्टू ने दायर की थी. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का अनुराध करते हुए शीर्ष अदालत से कहा था कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 केंद्र सरकार को परिसीमन आयोग की स्थापना किए जाने से रोकता नहीं है.

परिसीमन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कही थी आयोग गठन करने की बात
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) ने छह मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की बात की गई थी. दोनों याचिकाकर्ताओं- हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था.

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीट सहित) करना संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है. याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गयी थी और परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत 12 जुलाई, 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में क्या-क्या कहा गया था?
याचिका में कहा गया था कि आयोग ने पांच जुलाई, 2004 के पत्र के जरिये विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के साथ दिशा-निर्देश और कार्यप्रणाली जारी की थी.

याचिका में कहा गया था, 'यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पुडुचेरी के संघ शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं में मौजूदा सीट की कुल संख्या, जैसा कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है, वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रहेगी.'

इसने छह मार्च, 2020 की उस अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया था, जिसमें केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्यों में परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

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