नई दिल्लीः 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद होने की घोषणा की थी. नोटबंदी यानी कि विमुद्रीकरण के इस फैसले को आज तीन साल हो रहे हैं. इस दौरान अलग-अलग रिपोर्टों के माध्यम से इसके फायदे तो कभी इसके नुकसान सामने रखे गए. जहां केंद्र सरकार इस फैसले को आतंक वाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बताती रही, वहीं विपक्षी दल और कुछ विशेषज्ञ इसे आर्थिक क्षेत्र व कारोबार के लिए हानिकारक बताते रहे हैं. हालांकि दोनों ही तथ्यों के केवल अलग-अलग तर्क ही लोगों के पास पहुंचे हैं, फैसले का एक निश्चित और अंतिम परिणाम और उद्देश्य नहीं सामने रखा जा सका. बहरहाल इसके जो भी कारण हों, लेकिन मुद्रा के इस बदलाव ने क्या वाकई कोई स्थिति बदली है, या फिर सब पहले जैसा ही हो गया है, डालते हैं एक नजर-
आतंकियों के नेटवर्क की टूटी कमर
नोटबंदी को लेकर सबसे बड़ा और पहला तर्क यही दिया गया था कि इससे आतंकियों की कमर टूटेगी और आतंकी घटनाओं पर लगाम कसी जाएगी. हालांकि देश के अन्य हिस्सों में होने वाले आतंकी हमलों में जरूर कमी आई है, लेकिन घाटी में आतंकवादी घटनाओं में कभी कमी तो कभी अधिकता देखी जाती रही है.
आतंकी घटनाओं और उनके नुकसान का ब्यौरा रखने वाली एक ऑनलाइन पोर्टल की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद आतंकी घटनाओं में इजाफा देखा गया है. आकड़ों के अनुसार 2016, 2017 और 2018 में 2015 के मुकाबले आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं. 2015 में जहां 728 लोग आतंकी हमले का शिकार हुए थे, वहीं इनकी संख्या 2016 में 905, 2017 में 812 और 2018 में 940 पर पहुंच गई. हालांकि इसकी वजहें राजनीतिक भी हैं.
नोटबंदी के बाद सोना बंदी की तैयारी कर रही है केन्द्र सरकार, पूरी खबर यहां पढ़िए
सुधर नहीं रहे हैं जमाखोर
एक RTI के जवाब में रिजर्व बैंक ने बताया था कि 2000 को नोट की छपाई रोक दी गई है. इसके पीछे तर्क दिया गया है कि लोग 2000 के नोट की जमाखोरी करने लगे हैं. आरबीआई ने इसे एटीएम में भी लगाने पर रोक लगाई है. नोटबंदी के दौरान कहा गया था कि लोग रुपयों की जमाखोरी कर रहे हैं, जिसके कारण बाजार में मुद्रा की कमी होती है.
लेकिन नोटबंदी के बाद नए नोटों से स्थिति सामान्य होती है लोगों ने फिर से इसकी शुरुआत कर दी है. एटीएम में भी दो हजार रुपये के नोट की कैसेट को निकाल कर 500, 200 और 100 रुपये की कैसेट लगाई जा रही है. अब यह नोट केवल बैंक शाखाओं में मिल रहा है.
डिजिटल भुगतान बढ़ा है
नोटबंदी के तीन साल बाद डिजिटल भुगतान में बढ़ावा देखने को मिल रहा है. लोग अब ऑनलाइन मीडियम के जरिये खरीदारी कर भुगतान कर रहे हैं. सरकार का कहना था कि वह नकदी का प्रचलन कम कर डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देंगे. इस दौरान कैशलेस पेमेंट व इकोनॉमी की बात की गई थी.
इस मामले वाकई बढ़त देखने को मिली है. सरकार ने इस दौरान ही डिजिटल लेनदेन के लिए यूपीआई (UPI) भीम एप लॉन्च किया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपीआई के जरिए अक्टूबर में एक अरब लेनदेन हुए हैं. UPI आज सबसे तेजी से बढ़ने वाला सिस्टम बन गया है. हालांकि नकदी की जरूरत में अब भी कोई कमी नहीं आई है. डिजिटल ट्रांजेक्शन में धोखाधड़ी लोगों को इससे दूर कर रही है.
काला धनपति अब भी सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं
नोटबंदी के दौरान बड़ी मात्रा में काला धन सामने आया था. इस दौरान सरकार का कहना था कि यह प्रक्रिया ब्लैक मनी की बढ़ती प्रवृत्ति पर चोट करेगी. लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिला. हाल ही में कर्नाटक में कल्कि महाराज के ठिकानों से पुलिस ने लगभग 500 करोड़ का काला धन पकड़ा है.
हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान गुरुग्राम में एक कार से लाखों रुपये बरामद हुए थे. 10 दिन पहले ही दिल्ली में दिवाली को लेकर जारी हाई अलर्ट के बीच मेट्रो स्टेशन से 1 करोड़ की बेनामी नकदी बरामद की गई. यह कुछ उदाहरण हैं जो कि बताते हैं कि नोटबंदी से काले धन पर खास असर नहीं पड़ा है.
सोपोर से पकड़े गए चार आतंकी, करतारपुर उद्घाटन से पहले चिंताजनक स्थिति