भोपालः मध्यप्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 31 आरोपियों को दोषी करार दिया. अदालत ने गुरुवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाया. साल 2013 में यहां पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती घोटाले का मामला सामने आया था. इसमें सीबीआई की तरफ से चार्जशीट पेश की गई थी. कोर्ट 25 नवंबर को दोषियों की सजा पर अपना फैसला सुनाएगी.
पहले होती थीं मेडिकल परीक्षाएं
पहले व्यापम का नाम व्यावसायिक परीक्षा मंडल था जिसे बाद में प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड कर दिया गया है. व्यापम की शुरुआत जनवरी, 1970 में हुई थी . इसे पहले प्री-मेडिकल टेस्ट बोर्ड के नाम से जाना जाता था. उस दौरान इसका गठन मेडिकल परीक्षाओं के आयोजन करने के लिए किया गया था. 1981 में गठित प्री-इंजिनियरिंग बोर्ड को प्री-मेडिकल बोर्ड के साथ 1982 में मिला दिया गया. दोनों को मिलाकर व्यावसायिक परीक्षा मंडल का गठन किया गया. यह बोर्ड और भी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए परीक्षाएं आयोजित करता था.
2013 में सामने आई थी गड़बड़ी
वर्ष 2000-12 के बीच पूरे मध्य प्रदेश में ऐसे लगभग 50 से अधिक मामले सामने आए, जिनमें परीक्षार्थी की जगह पर किसी और ने परीक्षा दी थी. 7 जुलाई, 2013 को पहली बार घोटाले का मामला औपचारिक तौर पर सामने आया था. इंदौर की क्राइम ब्रांच ने 20 ऐसे लोगों के खिलाफ मामला दायर किया. इन मामलों में परीक्षा देने वाले छात्र की जगह किसी और ने परीक्षा दी थी. 16 जुलाई, 2013 को घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाने वाला जगदीश सागर पुलिस की गिरफ्त में आया. 26 अगस्त, 2013 को व्यापम घोटाले की जांच एसटीएफ को सौंप दी गई. 9 अक्टूबर, 2013 को 3 महीने पहले प्री-मेडिकल टेस्ट की परीक्षा पास करने वाले 345 छात्रों का रिजल्ट रद्द कर दिया गया. 18 दिसंबर, 2013 को मध्य प्रदेश के पूर्व वरिष्ठ शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर मुकदमा दर्ज किया गया. 20 दिसंबर, 2013 को तत्कालीन भाजपा उपाध्यक्ष उमा भारती ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी.
2013 police constable recruitment scam(Vyapam):
31 accused chargesheeted by the CBI in the recruitment scam have been convicted by Court.Quantum of punishment will be announced on November 25. #MadhyaPradesh— ANI (@ANI) November 21, 2019
यहां समझें पूरा मामला
व्यापम में गड़बड़ी का बड़ा खुलासा सात जुलाई, 2013 को पहली बार पीएमटी परीक्षा के दौरान हुआ था, जब इंदौर की अपराध शाखा ने एक गिरोह को गिरफ्तार किया था. यह गिरोह पीएमटी परीक्षा में फर्जी विद्यार्थियों को बैठाने का काम करता था. तब मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले को अगस्त 2013 में एसटीएफ को सौंप दिया. हाई कोर्ट ने मामले में संज्ञान लेकर हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल 2014 में एसआईटी गठित की थी. इसकी देखरेख में एसटीएफ जांच करती रही.
9 जुलाई, 2015 को मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला हुआ और 15 जुलाई से सीबीआई ने जांच शुरू की. सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी रहे ओपी शुक्ला, बीजेपी नेता सुधीर शर्मा, राज्यपाल के ओएसडी रहे धनंजय यादव, व्यापम के नियंत्रक रहे पंकज त्रिवेदी, कंप्यूटर एनालिस्ट नितिन मोहिद्रा जेल जा चुके हैं. इस मामले में दो हजार से अधिक लोगों को जेल भेजा जा चुका है और चार सौ से अधिक अब भी फरार हैं. वहीं 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है