नई दिल्ली: देश के न्यायिक इतिहास में पहली बार कोलकोता हाईकोर्ट ने एक अभूतपूर्व फैसला देते हुए एक मां को 34 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति दी है. कोलकोता निवासी 37 वर्षिय एक मां ने अपने गर्भ में पल रहे इस गर्भ को गिराने की अनुमति तब मांगी है जब शहर के चिकित्सकों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण में स्पाइना बिफिडा होने की जानकारी दी. स्पाइना बिफिडा एक ऐसी बिमारी है जो किसी भी बच्चे के साथ जन्म से ही होती है जिसमें उसकी रीढ की हडडी ठीक से तैयार नही होती, जिसके चलते उसे जीवन भर रेंगकर चलना पड़ता है या फिर वह कभी भी चल ही नही सकता...अधिकांश चिकित्सको का मानना है ऐसे बच्चे पैदा होने के बाद भी कुछ ही सप्ताह जीवित रह पाते हैं.
देश में पहली बार मिली है अनुमति
हमारे देश में कानूनी रूप से फिलहाल 24 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की ही अनुमति दी जाती है...हाल ही में सरकार ने मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) नियम 2021 में बदलाव किया था जिसके अनुसार सरकार ने गर्भपात की ऊपरी सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह करने के लिए नियम बनाये है. 24 सप्ताह तक के गर्भ को मेडीकल बोर्ड की मंजूरी के बाद निगरानी में ही गर्भपात कराया जा सकता है...लेकिन इससे ज्यादा अवधि के गर्भ के गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति जरूरी है....ऐसे मामलो में हाईकोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करता है....इसमें भी महिला की मेडीकल स्थिती को बोर्ड द्वारा जांच करने और उसके जीवन की सुरक्षा निश्चित किये जाने के बाद ही अनुमति दी जाती है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दी थी 33 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति
कोलकोता हाईकोर्ट के फैसले से पूर्व देश में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 33 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति दी थी..अगस्त 2021 में एक 20 वर्षिय युवती ने अपने गर्भ में पल रहे भ्रूण के गर्भपात की अनुमति इस आधार पर मांगी थी कि भ्रूण के मस्तिष्क में कई तरह की समस्याए थी जो उसके एक सामान्य जीवन को बेहद कठिन बना देती...कोलकोता हाईकोर्ट का ये फैसला अब तक के सबसे ज्यादा अवधि के गर्भ को गिराने की अनुमति देने का बन गया है....
किसे मिल सकती है अनुमति
मानसिक रूप से बीमार महिलाओं, भ्रूण में ऐसी कोई विकृति या बीमारी हो जिसके कारण उसकी जान को खतरा हो या फिर जन्म लेने के बाद उसमें ऐसी मानसिक या शारीरिक विकृति होने की आशंका हो जिससे वह गंभीर विकलांगता का शिकार हो सकता है, सरकार द्वारा घोषित मानवीय संकट ग्रस्त क्षेत्र या आपदा या आपात स्थिति में गर्भवती महिलाओं को भी शामिल किया गया है.
यह नए नियम मार्च में हाल ही में पारित मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) नियम 2021 के तहत अधिसूचित किए गए हैं. पुराने नियमों के तहत, 12 सप्ताह (तीन महीने) तक के भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए एक डॉक्टर की सलाह की जरूरत होती थी और 12 से 20 सप्ताह (तीन से पांच महीने) के गर्भ के मेडिकल समापन के लिए दो डॉक्टरों की सलाह आवश्यक होती थी.
नए नियमों के अनुसार, भ्रूण में ऐसी कोई विकृति या बीमारी हो जिसके कारण उसकी जान को खतरा हो या फिर जन्म लेने के बाद उसमें ऐसी मानसिक या शारीरिक विकृति होने की आशंका हो जिससे वह गंभीर विकलांगता का शिकार हो सकता है, इन परिस्थितियों में 24 सप्ताह के बाद गर्भपात के संबंध में फैसला लेने के लिए राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा.
मेडिकल बोर्ड क्या करेगा
किसी महिला के गर्भपात के मामले में मेडीकल बोर्ड की ये तय करेगा कि मां सुरक्षित रहने पर ही उसका गर्भपात किया जाये...अगर कोई महिला उसके पास गर्भपात का अनुरोध लेकर आती है तो उसकी और उसके रिपोर्ट की जांच करना और आवेदन मिलने के तीन दिनों के भीतर गर्भपात की अनुमति देने या नहीं देने के संबंध में फैसला सुनाना है.बोर्ड का काम यह ध्यान रखना भी होगा कि अगर वह गर्भपात कराने की अनुमति देता है तो आवेदन मिलने के पांच दिनों के भीतर पूरी प्रक्रिया सुरक्षित तरीके से पूरी की जाए और महिला की उचित काउंसिलिंग की जाए.
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